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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

राम मोहम्मद सिंह आज़ाद



भारतीय क्रांतिकारी विरासत के कई जगमाते सितारों के बीच राम मोहम्मद सिंह आज़ाद का नाम जहाँ बलिदान की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति है वहीं यह क्रांतिकारी विरासत की साम्प्रदायिक सद्भाव की मूल भावना की अनूगूंज भी है ! जलियावाला बाग नरसंहार के रचियता जनरल डायर का इंग्लैंड जाकर संहार करने वाले राम मोहम्मद सिंह आज़ाद ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के इतिहास में एसा कारनामा किया जिसकी कोई दूसरी मिसाल दुनिया में कोई दूसरी नहीं हो सकती है !
                 २६ दिसम्बर १८९९ को जन्मे राम मोहम्मद सिंह का नाम शेर सिंह था ! पंजाब प्रान्त के संगरूर जिले के सुनाम गाँव के एक गरीब किसान परिवार में सरदार तेहाल सिंह के घर में जन्म हुआ था ! सरदार तेहाल सिंह पास के गाँव के रेलवे क्रोसिंग पर एक मामूली चोकीदार की नौकरी करते थे ! उनकी माता का निधन १९०१ में और पिता का इंतकाल १९०७ में हो गया जिस कारण शेर सिंह और उनके भाई मुक्त सिंह को सेन्ट्रल खालसा अनाथालय, पुतलीघर अमृतसर में २४ अक्टूबर १९०७ में शरण लेने पड़ी यही पर शेर सिंह का नाम बदल कर उधम सिंह कर दिया गया ! यही पर उधम सिंह ने १९१८ में मेट्रिक पास करने के बाद १९१९ में अनाथालय छोड़ दिया ! १३ अप्रेल १९१९ को जलियावाला बाग हत्याकांड हुआ ! दरअसल जलियावाला बाग में डॉ. सत्य पल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के खिलाफ एक आम सभा का आयोजन किया गया था जिसमे उधम सिंह अपने दोस्तों के साथ गर्मी में पानी पिलाने का काम कर रहे थे ! यही वह मौका था जिसने उधम सिंह का जीवन बदल कर रख दिया और जिस नरसंहार का बदला लेने के लिए राम मोहम्मद सिंह आज़ाद ने पूरे २१ साल इतजार किया ! इस नरसंहार में सरकारी आंकड़े के अनुसार ३७९ लोग मारे गए जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय और दुसरे स्वतंत्रता सेनानियों के अनुसार यह आंकड़ा १००० से अधिक १३०० के आसपास था वहीँ उस समय अमृतसर सिविल अस्पताल के डॉ. स्मिथ के अनुसार मरने वाले लोगो की संख्या १८०० के आसपास थी ! जलियावाला बाग के कुए से ही १२० से ज्यादा लाशे निकाली गयी थी ! अंग्रेजी बारूद और धुंए के बीच हुए इस कत्लेआम के उधम सिंह ने बेहद ख़ामोशी के साथ इस नरसंहार के बदले की शपथ ली ! इसके बाद अपनी शपथ पूरी करने के लिए उधम सिंह जहाँ क्रांतिकारियों की कतार में शामिल हुए तो वहीँ अफ्रीका और नैरोबी के रास्ते उन्होंने १९२० - २१ में अमेरिका जाने की कोशिश की मगर नाकामयाब हुए और १९२४ में वापस भारत आ गए और उसी साल अमेरिका पंहुचे जहाँ वो सोहन सिंह भकना की ग़दर पार्टी में शामिल हुए ! तत्पश्चात १९२७ में शहीदे आज़म भगत सिंह के आदेश पर वो वापस भारत लौट आये ! ३० अगस्त १९२७ को उधम सिंह गैर लाइसेंसी हथियारों और ग़दर पार्टी की प्रचार सामग्री के साथ पकडे गए जहाँ से वो २३ अक्टूबर १९३१ को रिहा हुए ! मगर इस बीच उन्होंने भगत सिंह और चन्द्र शेखर आज़ाद जैसे जाबांज क्रांतिकारियों को खो दिया था ! उसके बाद उधम सिंह लौटकर अपने गाँव आ गए मगर यहाँ स्थानीय पुलिस ने उन्हें लगातार परेशान करना जारी रखा जिस कारण वो गावं छोड़ कर अमृतसर वापस आ गए और यहाँ पर राम मोहम्मद सिंह आज़ाद नामक साइन बोर्ड पेंटर की दूकान शुरू की ! इसके बाद भी उधम सिंह ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ जारी रखी और इसी क्रम में वह कश्मीर और बाद में जर्मन व् १९३४ में इंग्लैंड पंहुचे जहाँ उनका ठिकाना ९ अडलेर स्ट्रीट पर था !
      अंत में वह समय आ पंहुचा जिसका उधम सिंह ने २१ सालों तक इंतज़ार किया था ! १३ मार्च १९४० को डायर एक आम सभा को संबोधित करने कोक्स्टों हाल में आया ! सभा में जैसे ही जनरल डायर भारत के सचिव जेटलैंड से बात करने के लिए खड़ा हुआ उधम सिंह ने रिवाल्वर निकाल कर डायर पर गोली दाग दी ! जनरल डायर मौकास्थल पर ही मारा गया ! भारत में इस घटना पर तरह तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की गयी आजादी की लड़ाई के बड़े नेताओं में केवल नेताजी सुभाष चन्द्र बोश ही अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने उधम सिंह की तारीफ़ की ! उधम सिंह ने देश की आजादी की लड़ाई में हिन्दू मुस्लिम सिख एकता को रेखांकित करने के लिए अपना नाम बदल कर राम मोहम्मद सिंह आज़ाद रख लिया था और कहा था कि यही मेरा असली नाम व् पहचान होगी और जो इसे बदलने कि कोशिश करेगा वह मुझे गली देने का काम करेगा ! आइए हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई के उस दीवाने और क्रांतिकारी परम्परा के अद्भुत जाबांज को याद करे जिसका असली नाम राम मोहम्मद सिंह आज़ाद था ! 

1 टिप्पणी:

  1. क्रांतिकारी ऊधम सिंह जी का असली परिचय प्राप्त हुआ। देश को इन शहीदों पर हमेशा गर्व रहेगा।

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