गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010
राजनीति का औजार है आतंक
आतंकवाद से गठजोड़ पर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुर्शरफ के बयान से पाकिस्तान और उसके आतंकवाद से सम्बंधों पर फिर से बहस छिड़ गई है। असल में दुनिया में आज जितना आतंकवाद चर्चित है उतना ही पाकिस्तान और उसकी गुप्तचर संस्था आईएसआई भी चर्चाओं में है। 9/11 के बाद विश्व राजनीति में भी आतंकवाद को लेकर नए समीकरण बन रहे है। हालांकि आतंकवाद, उसके लक्ष्य और सीमाएं जितनी प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ती है उससे कहीं अधिक उसकी सीमाएं और मकसद परोक्ष अर्थात छुपे हुए है। आईएसआई एशिया महाद्वीप में आतंकवादी संगठनों को संसाधन मुहैया कराने वाली एक गुप्तचर संस्था के रूप में कुख्यात हो चुकी है। यह एजेंसी अमेरिका के आतंकवाद विरोधी अभियान में सीआईए की प्रमुख सहयोगी है और वर्तमान आतंकवाद विरोध से भी कही आगे दोनों के आपसी सहयोग का एक लम्बा और विवादास्पद इतिहास रहा है। दुनिया में अपने विरोधी देशों के लिए कठिनाइयां पैदा करने की मुहिम में सीआईए का मुख्य सम्पर्क आईएसआई रहा है। दरअसल आईएसआई एशिया व दुनिया में अस्थिरता फैलाने व ’बांटो और राज करो‘ की एंग्लो-अमेरिकन मुहिम का मुख्य औजार है। सीआईए द्वारा मुस्लिम आतंकी संगठनों के इस्तेमाल से अराजकता व अस्थिरता फैलाने के अनेक उदाहरण एशिया के कई देशों में देखे जा सकते है। सबसे पहले ब््िराटिश गुप्तचर संस्था ’एम 16‘ ने पचास के दशक में ’मुस्लिम ब्रादरहुड‘ नामक संगठन के माध्यम से मिा में इस अभियान की शुरुआत की। जिसमें बाद में सीआईए प्रमुख सहयोगी बनकर शामिल हुआ और इस अभियान का मुख्य सूत्रधार बन बैठा। ‘80 के दशक में सीआईए-आईएसआई गठजोड़ बनने तक मुस्लिम ब्रादरहुड ही एशिया में अस्थिरता फैलाने का अमेरिकी औजार रहा। ब््िराटिश गुप्तचर एजेंसी के एक पूर्व एजेंट जॉन कॉलमैन द्वारा जारी एक रिपोर्ट ने मुस्लिम ब्रादरहुड और सीआईए व एम16 के सम्बंधों का खुलासा किया। आईएसआई मध्य एशिया, भारत और मध्य पूर्व में अस्थिरता फैलाने और एंग्लो-अमेरिकन साम््राज्यवादी लक्ष्यों की पूर्ति का प्रमुख हथियार रही है। सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान में अलकायदा और तालिबान को प्रशिक्षण, तथा आर्थिक और सांगठनिक सहायता देकर सीआईए- आईएसआई गठजोड़ ने उन्हें दुनिया के सर्वाधिक खतरनाक संगठनों के रूप में विकसित किया। वह सीआईए ही थी जिसने अफगानिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को धन और हथियार मुहैया कराए और उन्हें प्रशिक्षण शिविरों तक पहुंचाने का काम आईएसआई ने किया। आतंकवादियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें ड्रग्स का कारोबार सिखाने वाली भी सीआईए ही थी जिसके लिए सीआईए ने उन्हें आईएसआई के जरिए एक मिग विमान भी मुहैया कराया। अफगानिस्तान में रूसी सेनाओं के दखल से शुरू हुई इस मुहिम को सोवियत संघ के विघटन के बाद भी सीआईए और आईएसआई ने जारी रखा। सीआईए-आईएसआई के गठबंधन का अस्थिरता फैलाने का यह सिलसिला अभी तक कायम है। लंदन के एक अखबार ’डेली टेलिग्राफ‘ ने 2007 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि अमेरिका ईरान में अस्थिरता फैलाने के लिए आईएसआई का सहयोग ले रहा है। अलकायदा, आईएसआई और सीआईए में अभी तक एक अपरोक्ष सम्पर्क और रिश्ता है। अमेरिकी एजेंसियों और आतंकी संगठनों के बीच यह मित्रता फिलिपींस से लेकर सीरिया तक फैली हुई है, वहीं दूसरे महाद्वीप भी एंग्लो- अमेरिकन साम््राज्य की इन युक्तियों से अछूते नहीं हैं। लेकिन पिछले कुछ वष्रो से अमेरिका आतंक के खिलाफ अफगानिस्तान में लगातार युद्धरत है और इस बाबत वह भारत की चिंताओं को भी तवज्जो दे रहा है। दरअसल अमेरिका की यह चिंता अनायास नहीं है। एकध््राुवीय अमेरिकी संकल्पना को चीन की बढ़ती ताकत और एशिया में बनते नए समीकरणों ने गड़बड़ा कर रख दिया है। दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते दखल और पाकिस्तान से उसकी बढ़ती नजदीकियां अमेरिकी चिंता का विषय है और चीन को संतुलित करने के लिए वह भारत को एक स्वाभाविक सहयोगी के रूप में देख रहा है, इसीलिए भारत की चिंताओं के साथ अपने को खड़ा दिखाना उसकी राजनीतिक विवशता है। परंतु वास्तविकता यह है कि आजादी के बाद कभी अमेरिका को भारत में सीधा दखल करने का मौका कभी नहीं मिला था, जो आज उसे अपने पैदा किए आतंकवाद के नाम पर मिल रहा है। दुनिया में आतंकवाद विरोध की अगुवाई करने वाला देश अमेरिका आज भी चेचेन्या, झयांगयांग और ईरान में पनपने वाले आतंकवाद को सहायता और समर्थन दे रहा है एवं कश्मीर पर भी अभी तक उसका रुख स्पष्ट नहीं है। विडम्बना यह है कि हम उसकी बयानबाजी से अति उत्साहित होकर उससे ही सहायता की उम्मीद कर रहे है। आ महेश राठी मुद्दा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें