महेश राठी
आतंकवाद और आतंकवादी घटनाएं भारत के लिए कोई नई बात और घटना नहीं है, परंतु मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद पूरे देश में दहशत और क्षोभ का माहौल था। मुंबई हमले के बाद जितना आतंकवाद चर्चित रहा है, उतना ही पाकिस्तान और उसकी गुप्तचर संस्था आईएसआई भी चर्चाओं में है। भारतीय राजनीति में आतंकवाद, आईएसआई और पाकिस्तान के विरोध को लेकर एक उग्र राष्ट्रवाद का वातावरण बना हुआ है। हालांकि आतंकवाद के लक्ष्य और सीमाएं जितनी प्रत्यक्ष दिख रही हैं वास्तविकता में इसकी सीमाएं और मकसद परोक्ष तौर पर ज्यादा हैं। 26/11 हमले के सूत्रधार और उनके मंतव्य जितने स्पष्ट हैं उतने ही उलझे हुए भी हैं।। पाकिस्तान की जमीन से रची गई इस हमले की साजिश को अंजाम तक पंहुचाने वालो में से एक कसाब जिंदा सबूत के तौर पर हमारे पास है, मगर प्रमुख कड़ी डेविड कोलमेन हेडली अभी भी भारतीय कानून की पंहुच से दूर है। हेडली इस हमले से जुड़ा ऐसा साक्ष्य है कि जिसकी भूमिका 26/11 में जितनी उजागर होती जाती है मुंबई हमले के सुत्रधारों का रहस्य उतना ही गहराता जाता है। हेडली के मुंबई हमले से संबंध की रहस्यमयी कहानी किसी मध्यकालीन तिलिस्मी कहानी से कम नही है, जिसके रहस्य की जितनी गांठे खुलती जाती हैं, उससे ज्यादा गुत्थियां अनसुलझी रह जाती हैं। दरअसल, आतंकवाद के उदय से लेकर उसके खिलाफ युद्ध तक अमेरिका के उससे बेहद रहस्यमयी और विवादास्पद रिश्ते रहे हैं। संबंधों की इन्ही कहानियों के बीच हेडली की सबसे दिलचस्प और तिलिस्मी कहानी भी है। हेडली को लेकर पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों पर अमेरिकी प्रशासन का लगातार बदलता रूख उनके त्रिकोणीय संबंधों पर संशय पैदा करता है। डेविड कोलमेन हेडली के मुंबई हमले में संलिप्तता को उसकी दो पत्नियों द्वारा उजागर किए जाने के बाद आईएसआई जहां इसे नकारता दिख रहा है वहीं अमेरिकी विदेश विभाग रक्षात्मक मुद्रा में है। हेडली की पत्नियों के रहस्योदघाटन के बाद अमेरिकी सूत्रों ने भी हेडली और आईएसआई के संबंधों की पुष्टि कर दी है। हेडली प्रकरण में आए इस नए मोड़ के बाद एफबीआई, आईएसआई और हेडली का यह त्रिकोणीय संबंध रहस्य रोमांच से भरपूर किसी फिल्मी कहानी से कम नजर नही आता है। जिसमें डबल एजेंट, अंडर कवर एजेंट और रीडेबल एजेंट का सारा हॉलीवुड मसाला सामने है, परंतु असली सूत्रधार की अभी तक कोई खबर कोई पहचान नहीं है। मुंबई हमले के पहले हेडली की मोरक्को मूल की पत्नी ने पाकिस्तान में अमेरिकी अधिकारियों को चेताया था कि हेडली आतंकवादी संगठनों के साथ मिलकर भारत पर हमले की तैयारी कर रहा है। हेडली के संबंध में कोई यह पहली और अंतिम खबर नहीं थी। इससे भी पहले उसकी अमेरिकी पत्नी ने 2005 में अमेरिकी एजेंसियों को हेडली की गतिविधियों और उसके आतंकवादी संबंधों को लेकर चेताया था। असल में यह कोई आधी-अधूरी सूचनाओं के मिलने का मामला नहीं है, जैसा कि अमेरिकी प्रशासन इसे सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है। यह एक खास मिशन पर लगे हुए अंडरकवर एजेंट को मिलने वाली सुविधा का मामला है। वरना, कोई कारण नहीं कि हेडली की पत्नी की सूचना के बाद हेडली आठ बार भारत की यात्रा करता है और अमेरिकी प्रशासन खामोश रहता है। अलकायदा और तालिबान से आईएसआई के रिश्तों के उजागर होने के बाद भी उसे अमेरिकी सहायता का जारी रहना क्या कोई रणनीतिक विवशता है या कोई छुपी हुई वास्तविकता? आतंकवाद, आईएसआई और सीआईए के इस त्रिकोण में हेडली जैसे डबल एजेंटों की अहम भूमिका का एक लंबा इतिहास है। वैसे यह भी वास्तविकता है कि अमेरिका के आतंकवाद विरोधी अभियान में आईएसआई अमेरिका की सीआईए की प्रमुख सहयोगी संगठन है और वर्तमान आतंकवाद विरोध से भी कहीं आगे दोनों संगठनों के आपसी सहयोग का एक लंबा और विवादास्पद इतिहास रहा है। मुंबई हमले में आईएसआई की भूमिका के नए व पुख्ता सबूतों के सामने आने के बाद भी अमेरिकी प्रशासन द्वारा पाकिस्तान को आतंकवाद विरोध के नाम पर दो अरब डॉलर सहायता आतंकवाद विरोध में निहित अमेरिकी हितों को उजागर कर देता है। दरअसल, यह राशि अमेरिकी संसद द्वारा पाकिस्तान की सहायता के लिए अनुमोदित साढ़े सात अरब डॉलर का एक हिस्सा भर है। यह राशि एक सुरक्षा समझौते के तहत आतंकवाद विरोध के लिए अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को पांच वर्षो में दी जानी है। हालांकि अमेरिका सहित पूरी दुनिया जानती है कि इस पैसे का कैसा इस्तेमाल होता रहा है? सच यह है कि अमेरिका के आतंकवाद विरोधी अभियान में पाकिस्तान और उसकी गुप्तचर संस्था आईएसआई अमेरिका और सीआईए के प्रमुख सहयोगी हैं। आईएसआई एशिया महाद्वीप में आतंकी संगठनों को संसाधन मुहैया कराने वाली एक गुप्तचर संस्था के रूप में कुख्यात है। आतंकी संगठनों से उसके संबंधों के कारण इस संगठन की भूमिका हमेशा संदेहास्पद रही है। दुनिया में अपने विरोधी और संभावित विरोधी देशों के लिए कठिनाइयां पैदा करने की मुहिम में सीआईए का मुख्य संपर्क पाकिस्तानी आईएसआई से रहा है। दरअसल आईएसआई एशिया व दुनिया में अस्थिरता फैलाने, बांटो और राज करो की एंग्लो-अमेरिकन मुहिम का मुख्य औजार है। मुस्लिम कट्टरपंथियों की मानसिकता को परखकर उसके इस्तेमाल की शुरुआत ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने सबसे पहले की। इसके तहत मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड़ नामक संगठन को बनाने में ब्रिटिश साम्राज्य ने अहम भूमिका निभाई। कालांतर में जो मुस्लिम आतंकी संगठनों और सीआईए व ब्रिटिश सेना के गुप्तचर संगठन एम16 के मध्य प्रमुख संपर्क सूत्र रहा। मुस्लिम ब्रदरहुड ही अलकायदा और हमास सरीखे आतंकी संगठनों की सांगठनिक और आर्थिक रीढ़ रही है। सीआईए द्वारा मुस्लिम आतंकी संगठनों के इस्तेमाल से अराजकता व अस्थिरता फैलाने के कई उदाहरण एशियाई देशों में देखे जा सकते हैं। इंडोनेशिया के कई आतंकी संगठनों के पीछे सीआईए व एम16 के प्रशिक्षित लोगों और जनरलों की भूमिका रही है। बाली बमकांड के मास्टरमाइंड अलफारुक की पहचान भी सीआईए के एक प्रशिक्षित एजेंट के तौर पर की गई थी। इंडोनेशिया के इंटेलीजेंस बोर्ड के पूर्व प्रमुख एसी मनुलंग के हवाले से टेंपो नामक पत्रिका में प्रकाशित कहानी के अनुसार अलफारूक सीआईए द्वारा भर्ती किया गया एजेंट था। एक दैनिक ने 2007 में उद्घाटित किया कि अमेरिका ईरान में अस्थिरता फैलाने के लिए आईएसआई का सहयोग ले रहा है। इसके एक माह बाद एबीसी न्यूज ने इस समाचार की पुष्टि करते हुए बताया कि पाकिस्तान के ईरान सीमा से सटे प्रांत बलूचिस्तान से जनदुल्लाह नामक संगठन का इस्तेमाल पाकिस्तान ईरान में अस्थिरता फैलाने के लिए कर रहा है। इस संगठन को धन और हथियार आईएसआई से मिल रहे हैं और सबसे विचारणीय तथ्य यह है कि इस संगठन का अलकायदा से बेहद करीबी रिश्ता है। अलकायदा और आईएसआई में अभी तक मजबूत संपर्क कायम है। आईएसआई, सीआईए और आतंकवादी संगठनों के बीच यह रणनीतिक मित्रता फिलिपींस से लेकर सीरिया और पूरे एशिया में फैली हुई है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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