महेश राठी
फासीवाद नए रूप में किस भयावह तरीके से सिर उठा रहा है, इसका उदाहरण हम नॉर्वे की त्रासदी के रूप में पिछले दिनों देख ही चुके हैं। जो नॉर्वे दुनिया भर में अपनी उदार छवि और शांतिपरक कोशिशों के कारण जाना जाता है, वहां मानवीयता को दहला देने वाली इस तरह की घटना हुई। जाहिर है, वह घटना भारत समेत पूरी दुनिया के लिए चेतावनी है। उस जघन्यतम घटना को अंजाम देने वाले आंद्रे बेहरिंग ब्रिविक की पहचान एक ईसाई दक्षिणपंथी अतिवादी के रूप में की गई। यह पश्चिमी जगत में तेजी से फैल रही नव नाजीवादी और नस्लवादी घृणित मानसिकता का शिक्षित और नवीनतम चेहरा है। फेसबुक और ट्वीटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर सक्रिय पश्चिमी ओस्लो के धनवानों की बस्ती में रहनेवाला यह व्यक्ति जैविक खेती की एक कंपनी का संचालन करता है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि मुसलिम विरोधी बयानबाजी करनेवाले इस व्यक्ति ने नरसंहार के लिए अपने व्यक्तिगत संसाधनों का इस्तेमाल किया था।
पिछली शताब्दी के तीस के दशक में उभरे फासीवादी, दक्षिणपंथी अतिवाद और वर्तमान नव फासीवाद और नव नाजीवाद की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि में कई समानताएं हैं। दोनों दौर का आर्थिक विकास जहां सामाजिक-आर्थिक विषमताओं को बढ़ाने वाला है, वहीं लगातार आर्थिक मंदी से पैदा विसंगतियां और चुनौतियां भी एकसमान हैं। यह भूमंडलीकृत विकास का एक ऐसा मॉडल है, जिसमें विकास के तमाम बड़े दावों के बावजूद बेरोजगारी और आर्थिक, सामाजिक विषमताएं तेजी से बढ़ी हैं। बेरोजगारी और विषमताओं का यह फैलाव ही दरअसल दुनिया के कई हिस्सों में दक्षिणपंथी अतिवादी उभार का कारण बन रहा है। आव्रजन नीतियों, उदारवाद, वामपंथी समरूपता का विरोध और विदेशी नागरिक विरोधी जेनोफोबिया ऐसे विचार हैं, जो दुनिया के सभी दक्षिणपंथियों में समान रूप से दिखाई देते हैं। मानवीय सोच की यही संकीर्णता अंतत: ब्रिविक जैसी मनोदशा वाले व्यक्तित्व का निर्माण करती है, और इस तरह के कई व्यक्तित्वों का संगठित होना ही नए सामाजिक संघर्षों और समाज में विस्फोटक स्थितियों का कारण बनता है।
पिछले कुछ वर्षों में आवारा पूंजी के खगोलीय प्रसार के कारण पश्चिमी दुनिया में बढ़ती मंदी और बेरोजगारी ने दक्षिणपंथी रूझानों को चरम पर पहुंचा दिया है, जिस कारण यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी देशों के लिए नव फासीवाद और नव नाजीवाद एक गंभीर चुनौती बन चुका है। हालांकि अधिकतर यूरोपीय देशों में ऐसी घृणित मानसिकता के खुले प्रचार पर रोक है, परंतु अभिव्यक्ति की आजादी के कारण अधिकतर दक्षिणपंथी-चरमपंथी अमेरिका में वेबसाइट बनाकर अपनी विचारधारा का प्रसार करते हैं। ब्रिटेन के टोरी, ऑस्ट्रिया में फ्रीडम पार्टी, बेल्जियम का ब्लड, लैंड, हॉनर और फैथफुल संगठन, बोस्निया-हर्जेगोविनिया का बोस्निया मूवमेंट ऑफ नेशनल प्राइड इन्हीं दक्षिणपंथी रूझानों के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा फ्रांस, यूनान, एस्तोनिया, क्रोएशिया, रूस में भी दक्षिणपंथियों की संख्या बढ़ती जा रही है। विचित्र यह है कि हिटलर को हरानेवाले सोवियत संघ के पतन के बाद महाशक्ति की हैसियत गंवा चुके रूस के नौजवानों के एक बड़े हिस्से में आज हिटलर और स्वास्तिक के प्रति दीवानगी देखी जा रही है।
एक विडंबना यह भी है कि उदार और जनवादी अर्थव्यवस्थाओं का खुलापन ही नव फासीवाद और नव नाजीवाद जैसी दक्षिणपंथी-अतिवादी मानसिकता के लिए आधार तैयार कर रहा है। वर्तमान आर्थिक उदारवादी नीतियां तो दक्षिणपंथी विचारधारा के लिए सबसे अधिक उर्वर सिद्ध हो रही हैं। भूमंडलीय विकास की अंतर्देशीय जरूरतों के कारण वर्तमान दौर व्यवहार में राष्ट्र-राज्यों की अवधारणा के टूटने का समय है, जिस कारण राष्ट्रीय गौरव की परंपरागत अवधारणा के समर्थकों में बैचेनी और आक्रोश स्पष्ट देखा जा सकता है। भाषा, संस्कृति और अपनी पौराणिक गौरव-गाथाओं पर संकट से आहत और उद्वेलित संकीर्ण राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी व्यवस्था की स्थापना का सपना बुन रहे हैं और इस घृणित सपने के कुत्सित प्रयास केवल पश्चिमी दुनिया में ही नहीं, बल्कि अपने देश में भी जारी हैं।
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