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शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

कहीं शोर में खो न जाए न्याय की आवाज!



भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम की एक और आवाज खामोश हो गई। जन लोकपाल बिल के लिए शुरू होने वाले अन्ना के आंदोलन के पहले ही दिन १६ अगस्त को कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता और मध्य प्रदेश में सूचना की सिपाही के तौर पर पहचानी जाने वाली शहला मसूद की आवाज हमेशा के लिए शांत कर दी गई। भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनक्रांति की आहट से हताश भ्रष्ट व्यवस्था द्वारा सवालों के लिए हमेशा सचेत रहने वाली शहला मसूद की हत्या महज एक आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या नहीं, इसके कई राजनीतिक निहितार्थ हैं। यह हत्या उस राज्य में हुई है जहां देश के सबसे बड़े विपक्षी दल की सरकार है। इससे कई सवाल खड़े हो गए हैं।

यह घटना एक ऐसी अहिंसक जनक्रांति से भ्रष्ट व्यवस्था की घबराहट को रेखांकित करती है, जिसमें न किसी के अधिकारों के अतिक्रमण का दुस्साहस है न ही कोई अनावश्यक आक्रामकता है यदि कुछ है तो सवाल और जनवादी पारदर्शिता के लिए जानकारी की चाह। अब यह बात अलग है कि इस क्रांति की व्यापकता व पंहुच जिस गति से देश के हर हिस्से में दस्तक दे रही है, आरटीआई कार्यकर्ताओं पर उसी तेजी से हमले भी बढ़ रहे हैं। शहला मसूद मध्य प्रदेश के सार्वजनिक जीवन में इंडिया अगेंस्ट करप्शन एवं आरटीआई कार्यकर्ता के तौर पर ऐसा नाम था जो राज्य सरकार के कई विभागों में घबराहट एवं परेशानी का सबब था। उन्होंने आरटीआई कानून का प्रयोग कई अनियमितताओं को उजागर करने में किया जिसमें पन्ना टाईगर रिजर्व में तेजी से घटती चीतों की संख्या और अभयारण्य में व्याप्त अनियमितताएं उनका एक उल्लेखनीय योगदान रहा। घटती टाईगर संख्या और अनियमितताओं को लेकर उन्होंने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखकर उनका ध्यान इस ओर आकृष्ट करने का काम भी किया। इसके अलावा भ्रष्टाचार की लड़ाई की यह प्रमुख सिपाही फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइटस पर भी खासी सक्रिय थी।

दरअसल आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले लगातार बढ़ते जा रहे और इन हमलों में हताहत हुए कार्यकर्ताओं का आंकड़ा एक दर्जन को पार कर चुका है। ये सूचना कार्यकर्ता समाज के ऐसे नाम हैं जिन्होंने आरटीआई कानून का सहारा लेकर अनेक स्तरों पर सरकारी संस्थाओं के भ्रष्टाचार से लेकर भू-माफिया के घोटालों व राजनीतिक अनियमितताओं को उजागर किया है। परंतु निरंतर जारी इन हमलों एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के बीच शहला मसूद की हत्या आरटीआई के माध्यम से सत्ता को आम आदमी तक पहुंचाने के इन आंदोलनकारियों के प्रयासों की सुरक्षा का प्रश्न जरूर छोड़ती है।

वास्तव में सूचना अधिकार अधिनियम एक ऐसा प्रावधान है जो वर्तमान सरकारी ढांचे के भीतर रहकर ही काम करता है। इसके लिए अलग से कोई स्वायत्त विनियामक संस्था नहीं है जो इन प्रयासों का बचाव कर सके। वास्तव में यह जनवाद के विकास की एक बेहद त्रासद एवं जटिल अवस्था है जिसमें सूचना अधिकार कानून को उसी तंत्र में रहकर काम करना है जिसकी अनियमितताओं को उजागर करने का दायित्व पूरा करने के लिए उसका निर्माण हुआ है। जटिलता यह कि वर्तमान शासन प्रणाली के भीतर रहकर स्वायत्तता को न केवल बनाए रखते हुए वरन मजबूत करते हुए व्यवस्था को दुरुस्त और साफ करने की जिम्मेदारियों को पूरा करना है। राज्य और केंद्र के सूचना आयोगों में नियुक्ति की कोई आयोग की अपनी कोई स्वायत्त व्यवस्था नहीं है, इसलिए उनको नियुक्त करने वाला तंत्र हमेशा उन्हें प्रभावित करता है।

इसके अतिरिक्त आरटीआई के तहत भ्रष्टाचार को उजागर तो किया जा सकता है, मगर उस भ्रष्टाचार को ठीक करने अथवा दंडित करने के लिए कोई विनियामक संस्था नहीं है। किसी विनियामक व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाली संस्था की आवश्यकता ही अंततोगत्वा एक मजबूत लोकपाल की आवश्यकता का आधार तैयार करती है।

यह निर्विवाद सत्य है कि आरटीआई एक ऐसा लोकतांत्रिक औजार है जो शासन प्रणाली से अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को मिटाते हुए आम आदमी में जागरूकता का प्रसार करता है। सूचना अधिकार अधिनियम के पीछे का दर्शन स्पष्ट है सरकारी कार्यप्रणाली में खुलापन और पारदर्शिता लाकर जनतंत्र की मजबूती के लिए नागरिकों का सशक्तिकरण करते हुए शासन और विकास में उनकी भागीदारी बढ़ाना। सूचना प्राप्ति की यही सरलता और परिवर्तन की मौन पदचाप व्यवस्था में स्थापित भ्रष्ट तंत्र के लिए बौखलाहट का कारण बन रही है। भ्रष्ट तंत्र की इसी घबराहट ने सूचना की एक और सिपाही का बलिदान ले लिया है परंतु इस हादसे की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई के जिस अन्ना आंदोलन का शहला मसूद एक अहम हिस्सा थीं आज उसी आंदोलन के शोर में शहला के लिए न्याय की आवाज डूबती दिखाई पड़ रही है।

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