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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

विवादों के बूते प्रचार पाने की लालसा

महेश राठी 
उत्तर प्रदेश में सत्ता पाने की कांग्रेसी महत्वाकांक्षा कानून व्यवस्था और चुनावी आचार संहिता को गंभीर चुनौती दे रही है। अभी रॉबर्ट वाड्रा, सलमान खुर्शीद और बेनी प्रसाद वर्मा का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने भी कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखा दिया। हालांकि कांग्रेस इसे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के इशारे पर प्रशासनिक भेदभाव का मामला बताकर लाभ लेने की कोशिश कर रही है, लेकिन यह सरासर कानून व्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए स्थापित संवैधानिक संस्थाओं को युवराजी अंदाज में धता बताने का मसला है। कानून-व्यवस्था के उल्लंघन का यह मामला कानपुर में राहुल गांधी के रोड शो के कारण दर्ज हुआ है। पहले से तय राहुल के इस रोड शो के लिए प्रशासन से अनुमति मांगी गई थी और प्रशासन ने कुछ बदलाव के साथ रोड शो की अनुमति दे भी दी थी। पर राहुल गांधी ने रोड शो शुरू करते हुए न तो प्रशासन द्वारा बताए गए रूट का सम्मान किया, न ही अपने द्वारा बताए गए रूट को ही माना, बल्कि मनमाने ढंग से रोड शो अहिरवां एयरपोर्ट से शुरू कर दिया। अब इस हठधर्मिता और मनमानेपन पर कांग्रेस के प्रवक्ताओं और नेताओं के तर्क भी विचित्र हैं। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी इसमें लोकतंत्र की मजबूती देखते हुए कह रहे हैं कि वैध प्रचार अभियान निष्पक्ष लोकतांत्रिक अधिकार का बुनियादी हिस्सा है। अब सवाल यह उठता है कि वैधानिकता का क्या अर्थ है? क्या अपने चुनाव प्रचार के लिए प्रशासनिक अनुमति लेना और प्रशासन के दिशा-निर्देशों को मानना कानून सम्मत काम है या प्रशासन को ठेंगा दिखाते हुए अराजक तरीके से मनमर्जी करना कानून सम्मत लोकतंत्र को सशक्त करने वाला काम है। इसी कांग्रेस की केंद्र में बैठी सरकार ने भ्रष्टाचार और काले धन के सवाल पर हो रहे आंदोलनों के साथ हाल के दिनों में जो व्यवहार किया, वह सर्वविदित है। लोकपाल के सवाल पर टीम अन्ना को आंदोलन की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट तक में गुहार लगानी पड़ी। लोकपाल या काले धन के सवाल पर आंदोलन करने वाले लोगों से आपकी सहमति या असहमति हो सकती है, लेकिन विरोध करने के उनके लोकतांत्रिक अधिकार का हनन करने का किसी भी सरकार के पास अधिकार नहीं है। तमाम घोटालों में घिरी केंद्र सरकार का लोकतांत्रिक रवैया कम से कम पिछले दो सालों से तो पूरा देश देख ही रहा है। सरकार चलाने वाली पार्टी से ऐसी अराजकता कोई अस्वाभाविक भी नहीं है। हालांकि यह मामला उत्तर प्रदेश प्रदेश में सत्ता के लिए कांग्रेस की राजनीतिक अराजकता या पार्टी के युवा महासचिव द्वारा वर्तमान राजनीति में स्थापित और लगातार दोहराए जा रहे दोहरे मानकों का ही नहीं है, बल्कि यह एक अति विशिष्ट व्यक्ति की सुरक्षा से जुड़ा मसला भी है। राहुल गांधी देश के उन चुनिंदा राजनेताओं में से हैं, जिन्हें जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा हासिल है। ऐसे अति विशिष्ट व्यक्ति के लिए रूट और कार्यक्रम की अनुमति देने से पहले स्थानीय प्रशासन को कई अहम बिंदुओं का ध्यान रखना होता है। ऐसे में अगर कोई राजनेता प्रशासन की अनुमति को ठेंगा दिखाता है तो निश्चित ही यह एक बेहद गैरजिम्मेदाराना रवैया कहा जाएगा। अब प्रदेश के कांगेसी नेताओं से लेकर राष्ट्रीय प्रवक्ताओं तक सभी इस मामले की गंभीरता को समझे बगैर राहुल गांधी के इस कृत्य को न्यायोचित बताने पर तुले हैं। दरअसल, राज्य में 21 सालों से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस की कई ऐसी आकांक्षाए और विवशताएं हैं, जो उसे किसी भी हद तक जाने का कारण दे रही हैं। कांग्रेस जानती है कि केंद्र में अपने दम पर सत्ता में आने का कोई भी रास्ता उत्तर प्रदेश में फतेह के बगैर संभव नहीं है। इस तथ्य को समझकर ही राहुल गांधी और उनके राजनीतिक गुरु ने अपना पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश पर केंद्रित कर दिया है और राहुल गांधी इस स्तर तक इस अभियान में लिप्त हो चुके हैं कि वह अब खुद उनके और पूरी कांग्रेस के लिए सम्मान की बड़ी लड़ाई बन चुका है। राहुल और टीम प्रचार और मीडिया की अहमियत को जानती है। इसीलिए खबरों और विशेषकर विवादास्पद खबरों में बने रहने के लिए समय-समय पर कुछ अलग करते रहना उनके लिए जरूरी है। इसके लिए बेशक शिबली कॉलेज के गेस्ट हाउस में रहने से लेकर सपा के वादों की लिस्ट फाड़ने और आचार संहिता के उल्लंघन का रास्ता उन्हें अपनाना पड़े। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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