महेश राठी
भ्रष्टाचार विरोधी पहले इंटरपोल ग्लोबल कार्यक्रम में सीबीआई निदेशक के खुलासे के बाद विदशों में जमा कालाधन फिर से चर्चाओं के केंद्र में है। सीबीआई निदेशक ने कहा कि देश के बाहर काला धन जमा करने वालों में भारत शीर्ष पर है। यह खुलासा कोई चौंकाने वाला नहीं है, इससे पहले भी इस प्रकार के खुलासे होते रहे हैं। परंतु देश की प्रमुख जांच एजेंसी के निदेशक द्वारा खुलासा किए जाने से इसकी अहमियत बढ़ जाती है।
सीबीआई निदेशक के आंकड़ों के स्रोतों पर बेशक सवाल उठ रहे हों, परंतु इस पूरे प्रकरण में कई सवाल ऐसे हैं, जिन पर राजनीतिक हलकों से लेकर देश की जांच एजेंसी तक में खामोशी है। सबसे बड़ा सवाल इस काले धन को अर्जित करने के तरीकों का है तो वहीं दूसरा मुख्य सवाल इस धन की वापसी को लेकर है। ये ऐसे सवाल हैं, जो विकास की वर्तमान अवधारणा के काम करने के तरीकों और उसके अपने हितों की पूर्ति की रणनीतियों को भी उजागर करते हैं।
दरअसल, सरकार इस पूरे मामले को शुरू से ही कर चोरी के मामले की तरह प्रायोजित करती रही है, जो कि उचित नहीं है। अब सीबीआई के निदेशक ने भले थोड़ी सनसनी पैदा की हो, मगर उन्होंने भी इसे कर संबंधी खामियों से ही जोडऩे की कोशिश की है। परंतु यह आमदनी के स्रोतों और उस धन की लगातार अवैध गतिविधियों में संलिप्तता से जुड़ा सवाल है, जो लगातार देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालता रहा है। ऐसी काली कमाई को वापस लाने के लिए सरकार ने एक पांच सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की थी, परंतु सरकार ने न तो यह स्पष्ट किया कि ऐसी काली कमाई वालों को क्या सजा दी जाएगी और इस काली कमाई को वापस लाने की क्या कार्ययोजना होगी।
काले धन के इस मुद्दे से निपटने के लिए विशेषज्ञों की एक बहुविषयक उच्च स्तरीय समिति बना दी थी। यह समिति काली कमाई का पता लगाने और उसके समाधान के लिए काम करेगी। सरकार की घोषणाएं प्रथम दृष्टया काफी बेहतर जान पड़ती थीं। हालांकि माफी योजना की संभावनाओं का इशारा देकर सरकार ने इस बहुविषयक विशेषज्ञ समिति की दिशा का संकेत भी दे दिया था। इसके अलावा सरकार ने आयकर विभाग की आठ अंतरराष्ट्रीय टीमों के गठन की घोषणा भी की थी, जो दुनिया के अलग-अलग टैक्स हेवन देशों में भारतीयों के काले धन की खोज करने का काम करेगी। वैसे सरकार की इन सारी कवायदों का यदि तार्किक विश्लेषण करें तो इस कार्यवाही की वास्तविकता आसानी से समझी जा सकती है। वास्तव में सरकार विपक्ष एवं न्यायपालिका के दबाव में कार्यवाही करते हुए दिखना चाहती है, ताकि बाद में बहुविषयक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति की संस्तुतियों का हवाला देकर एक सार्वजनिक माफी योजना लागू की जा सके। दरअसल, सरकार के बताने की कार्यशैली छिपाने का ही तर्क अधिक जान पड़ती है।
दरअसल सरकार का कालेधन पर रवैया काफी संदेहास्पद रहा है, प्रारंभ में सरकार ने आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के दिशा-निर्देशों और अंतरराष्ट्रीय संधियों का हवाला देकर कालेधन के खातेदारों के नाम नहीं उजागर करने की विवशता जाहिर की, तदुपरांत सरकार एक आसान शिकार हसन अली के अलावा किसी पर भी कार्यवाही करने से बच रही है।
यह भूमंडलीय विकास की विशेषता है कि वह पूरी अर्थव्यवस्था को काम, परिश्रम और उत्पादन की वास्तविक अर्थव्यवस्था से इतर वित्तीयकरण की ऐसी प्रणाली की तरफ ले जाती है जिसमें जमाओं पर ब्याज, सट्टेबाजी से मुनाफा कमाने के अलावा कुछ भी नहीं होता है।
नवउदारवादी नीतियों की यही विशेषता है कि वह अपने हितों की पूर्ति के लिए अर्थव्यवस्था को भ्रष्ट बनाता है। अब कालेधन पर सरकार की भविष्य की योजनाओं से स्पष्ट है कि वह देश के हितों को नुकसान पहुंचाकर कमाई गई दौलत और उसे कमाने वाले अपराधियों को बचाना तो चाहता ही है, साथ ही उसके पुनर्निवेश की राह भी खोलना चाहता है। परंतु इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भ्रष्टाचार का यह पुनर्निवेश देश को महाभ्रष्टाचार की नई संरचनाओं के अलावा कुछ नहीं दे सकेगा।
भ्रष्टाचार विरोधी पहले इंटरपोल ग्लोबल कार्यक्रम में सीबीआई निदेशक के खुलासे के बाद विदशों में जमा कालाधन फिर से चर्चाओं के केंद्र में है। सीबीआई निदेशक ने कहा कि देश के बाहर काला धन जमा करने वालों में भारत शीर्ष पर है। यह खुलासा कोई चौंकाने वाला नहीं है, इससे पहले भी इस प्रकार के खुलासे होते रहे हैं। परंतु देश की प्रमुख जांच एजेंसी के निदेशक द्वारा खुलासा किए जाने से इसकी अहमियत बढ़ जाती है।
सीबीआई निदेशक के आंकड़ों के स्रोतों पर बेशक सवाल उठ रहे हों, परंतु इस पूरे प्रकरण में कई सवाल ऐसे हैं, जिन पर राजनीतिक हलकों से लेकर देश की जांच एजेंसी तक में खामोशी है। सबसे बड़ा सवाल इस काले धन को अर्जित करने के तरीकों का है तो वहीं दूसरा मुख्य सवाल इस धन की वापसी को लेकर है। ये ऐसे सवाल हैं, जो विकास की वर्तमान अवधारणा के काम करने के तरीकों और उसके अपने हितों की पूर्ति की रणनीतियों को भी उजागर करते हैं।
दरअसल, सरकार इस पूरे मामले को शुरू से ही कर चोरी के मामले की तरह प्रायोजित करती रही है, जो कि उचित नहीं है। अब सीबीआई के निदेशक ने भले थोड़ी सनसनी पैदा की हो, मगर उन्होंने भी इसे कर संबंधी खामियों से ही जोडऩे की कोशिश की है। परंतु यह आमदनी के स्रोतों और उस धन की लगातार अवैध गतिविधियों में संलिप्तता से जुड़ा सवाल है, जो लगातार देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालता रहा है। ऐसी काली कमाई को वापस लाने के लिए सरकार ने एक पांच सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की थी, परंतु सरकार ने न तो यह स्पष्ट किया कि ऐसी काली कमाई वालों को क्या सजा दी जाएगी और इस काली कमाई को वापस लाने की क्या कार्ययोजना होगी।
काले धन के इस मुद्दे से निपटने के लिए विशेषज्ञों की एक बहुविषयक उच्च स्तरीय समिति बना दी थी। यह समिति काली कमाई का पता लगाने और उसके समाधान के लिए काम करेगी। सरकार की घोषणाएं प्रथम दृष्टया काफी बेहतर जान पड़ती थीं। हालांकि माफी योजना की संभावनाओं का इशारा देकर सरकार ने इस बहुविषयक विशेषज्ञ समिति की दिशा का संकेत भी दे दिया था। इसके अलावा सरकार ने आयकर विभाग की आठ अंतरराष्ट्रीय टीमों के गठन की घोषणा भी की थी, जो दुनिया के अलग-अलग टैक्स हेवन देशों में भारतीयों के काले धन की खोज करने का काम करेगी। वैसे सरकार की इन सारी कवायदों का यदि तार्किक विश्लेषण करें तो इस कार्यवाही की वास्तविकता आसानी से समझी जा सकती है। वास्तव में सरकार विपक्ष एवं न्यायपालिका के दबाव में कार्यवाही करते हुए दिखना चाहती है, ताकि बाद में बहुविषयक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति की संस्तुतियों का हवाला देकर एक सार्वजनिक माफी योजना लागू की जा सके। दरअसल, सरकार के बताने की कार्यशैली छिपाने का ही तर्क अधिक जान पड़ती है।
दरअसल सरकार का कालेधन पर रवैया काफी संदेहास्पद रहा है, प्रारंभ में सरकार ने आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के दिशा-निर्देशों और अंतरराष्ट्रीय संधियों का हवाला देकर कालेधन के खातेदारों के नाम नहीं उजागर करने की विवशता जाहिर की, तदुपरांत सरकार एक आसान शिकार हसन अली के अलावा किसी पर भी कार्यवाही करने से बच रही है।
यह भूमंडलीय विकास की विशेषता है कि वह पूरी अर्थव्यवस्था को काम, परिश्रम और उत्पादन की वास्तविक अर्थव्यवस्था से इतर वित्तीयकरण की ऐसी प्रणाली की तरफ ले जाती है जिसमें जमाओं पर ब्याज, सट्टेबाजी से मुनाफा कमाने के अलावा कुछ भी नहीं होता है।
नवउदारवादी नीतियों की यही विशेषता है कि वह अपने हितों की पूर्ति के लिए अर्थव्यवस्था को भ्रष्ट बनाता है। अब कालेधन पर सरकार की भविष्य की योजनाओं से स्पष्ट है कि वह देश के हितों को नुकसान पहुंचाकर कमाई गई दौलत और उसे कमाने वाले अपराधियों को बचाना तो चाहता ही है, साथ ही उसके पुनर्निवेश की राह भी खोलना चाहता है। परंतु इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भ्रष्टाचार का यह पुनर्निवेश देश को महाभ्रष्टाचार की नई संरचनाओं के अलावा कुछ नहीं दे सकेगा।
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