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रविवार, 6 जनवरी 2013

इंडिया से खपा संघी भारतवंशियों की व्यथा कथा !

संघ प्रमुख मोहन भागवत की दिल्ली गैंगरेप केस पर बयानबाजी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है तो वही भाजपा भी अपने वास्तविक मुखिया के बचाव में उतरने में कोई कोर कसर नहीं रख रही है ! असल में दिल्ली की इस दर्दनाक घटना ने संघ और भाजपा की परम्परागत मर्दवादी फासीवादी सोच को दुनिया के सामने उजागर कर दिया है ! हालाँकि इसे एक बड़ी विडंबना ही कहा जायेगा की जब सारा देश महिलाओं की सुरक्षा और उनके खिलाफ बढती हिंसा को लेकर चिंतित है तो वही सुबह से देश के अधिकतर पार्को में कब्जा जमा लेने वाले इन अर्धनग्न वर्दीधारियों की यह जमात पूरे मुद्दे को इंडिया और भारत के बेतुके विवाद में फंसा देना चाहती है ! इस रूढ़ मानसिकता के यह स्वयम्भू मसीहा औरतो की मर्यादा की तो तमाम लक्ष्मण रेखाए खीचना चाहते है परन्तु अपने पुरुष दिमाग की वासनात्मक बीमारियों और विक्षप्तता पर कुछ नहीं कहना चाहते है ! यह इनके साम्प्रदायिक संस्कारों की गूज है जो देश की एक मासूम बेटी के घिनोने कत्ल पर भी अपनी बीमार मानसिकता दिखाने से बाज़ नहीं आ रही है !
वैसे यह पहली बार नहीं है जब इन्होने अपना यह रंग दिखाया है ! याद करके बताये, विधानसभा में चलते सत्र के दौरांन कौन लोग थे जो मोबाइल पर पोर्न फिल्म देखते पकडे गए ! सोचिये, जो लोग चलते सत्र के दौरान लोकतंत्र के मंदिर में बैठकर इतनी करतूत कर सकते है, वह बंद कमरों या घरों में क्या गूल खिलाते होंगे ! वास्तव में औरत को दोयम दर्जे की बनाकर रखना ही इनकी वैचारिक विरासत है ! अभी हाल ही में श्रीमन भागवत का दूसरा ब्यान बताता है कि औरतों का काम आदमी की सेवा करना है और आदमी का काम औरात को पालना है और औरत यदि अपने काम को सही से पूरा नहीं कर पाती है तो आदमी उसे छोड़ सकता है ! और इसे श्रीमन भागवत एक सामाजिक समझोता कहते है ऐसा समझौता जिसमे सारे अधिकार आदमी के पास है! सेवा करवाने से लेकर रोजाना शारीरिक दुर्वयवहार करने तक ! माने कि औरत घर का एक जरूरी और कीमती सामान है जिसे आदमी अपनी जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल कर सकता है! और जब चाहे उसे नकारा बताकर छोड़ भी सकता है ! सभी धार्मिक ठेकेदारों और धर्म के नाम पर अपनी राजनितिक दूकान चलाने वालो की तरह ब्राह्मणवादी संघी दूकानदारों की भी यही मानसिकता है ! ढोल, शूद्र, नारी सब ताडन के अधिकारी !
असल में हिन्दू धर्म के यह स्वयंभू संघी ठेकेदार पौराणिक रूप से एकदम ठीक है ! जब इनका पूजनीय देवता इंद्र एक ऋषि गौतम का वेश धारण करके उनकी पत्नी पत्नी अहिल्या के साथ बलात्कार करता है और उस बलात्कार की सजा भी बलात्कार का शिकार अहिल्या ही पाती है ! इसके बाद अहिल्या की मुक्ति भी राम के पैर से छूने पर ही होती है ! उस राम के जिसने ना अपनी पत्नी के साथ न्याय किया न ही शूद्र शम्बूक के साथ ! अब राम और इंद्र को पूजनीय मानने वाले उनके अनुयायियों से क्या आशा की जा सकती उनके सपनो का हिन्दुस्तान ही यही है ! औरत की अस्मत को लूटने वाले का दोष नहीं बल्कि औरत को दोष और सजा भी औरत को कि गुनाह औरत का है उसने ही लक्ष्मण रेखा लांघी होगी ! उस लक्ष्मण को भी कोई दोष नहीं जो माँ समान भाभी को छोड़कर चला गया और भाई के आदेश की भी अवहेलना की ! अब युगों युगों से एक बलात्कारी इंद्र को पूजनीय मानने वाली और बलात्कार का शिकार अहिल्या को सजा देने वाली विचारधारा को क्या कहे ! श्रीमन भागवत को ठीक इसी समय उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर की उस घटना की निंदा करना याद नहीं रहा जहा पंचायत ने एक औरत के बलात्कार का 1.50 लाख मुआवजा देने का फरमान सुनाया ! दरअसल यही संघी मानसिकता का सच है कि वह देश में ऐसी पंचायतो का ही राज कायम करना चाहती है ! जहा वासना और विष घुले दिमाग औरतो और समाज के वंचित तबको की अस्मत से खिलवाड़ करते रहे और संघियों की पंचायते उनपर मुआवजे के कम्बल डालकर उन्हें ढकती रहे ! वैसे इनका इतिहास ऐसी ही घटनाओं और करतूतों का इतिहास है ! इनके दो गुजराती शूरवीर बाबू बजरंगी और माया कोडनानी इनके ऐसे ही दो ऐतिहासिक पात्र है! जिनको बचाने के लिए संघ और भाजपा ने धरती आसमान एक कर दिया ! गुजरात नरसंहार में इन दोनों शूरवीरो पर संघी इतना आत्ममुग्ध हुए कि माया कोडनानी को तो इन्होने मंत्री ही बना डाला ! गैंगरेप केस में चीख चीखकर गुनाहगारों फांसी की मांग करने वाली इनकी महिला नेत्रिया सुषमा से लेकर स्मृति, शाइना तक सभी खामोश थी और खामोश रहेंगी क्योंकि बाबू बजरंगी, माया कोडनानी और दारा सिंह ही इनके असली हीरो है ! ये औरतें कम और लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा कुर्सियों की चाह अधिक है !
अब श्रीमन भागवत की व्यथा को समझा जाना चाहिए दिल्ली गैंगरेप केस के अभियुक्तों में संघी हीरो बनने  की आपार क्षमताए छूपी है और इंडिया वाले है कि उन्हें फंसी टांगने पर तुले है! अब यह जघन्य काण्ड हुआ भी दिल्ली में है जहां की पुलिस बेशक भ्रष्ट हो निक्क्म्मी हो उसमे गुजरात पुलिस जितनी अपने सहयोगियों और नायको को बचाने की योग्यता नहीं है ! यदि यहाँ संघ की राजनितिक शाखा भाजपा या मोदी का राज होता तो नतीजे कुछ और ही होते और श्रीमन भागवत अपने संभावित नायको को बचाकर गुजरात अथवा उड़ीसा जैसे काण्ड रचवा पाते ! फिर भी भागवत कोशिशो के बारे में यही कहा जा सकता है ! जय हो अपराधी हितरक्षक , जय हो बलात्कारी ध्वजधारक तेरी जय हो !

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