-महेश राठी
मेरी खाली जेब टटोलकर
जब वह अनपढ़ रहने का श्राप देता है,
तो मैं विकास से डरता हूं,!
इठलाकर, इतराकर चलता तो हूं,
चमचमाती काली लंबी सड़क पर
मगर विकास के टोल हंटर से डरता हूं!
यूं मैं विकास तो चाहता हूं,
मगर,
बेसुध बीमारों की कतार से,
लालच की हथेली फैलाकर
जब वह सपनों के दाम मांगता है!
तो विकास मुझे चिढ़ाता है!
उजाड़कर मेरे जंगल
बदनीयती खोद देती है पहाड़,
मुस्कराती है मेरी लाचारी पर!
मेरी हथेली से झपटकर रोटी
छीनकर छत
मुझे फेंक देती है किसी मैदानी तंबू में
तो मुझे विकास घिनौना लगता है!
मै घबराता हूं!
विकास-विकास चीखते
दंगई के नाखूनों में फंसे मांस की बू से!
मैं डरता हूं,
उस साजिश से
जो लाश के ढ़ेरों,
उजड़े घरों की कतारों के पीछे,
विकास की ललचाती तस्वीर रखकर
मुझे फंसाना चाहती है,
एक भूखे चूंहे की तरह!
मेरे लिए विकास,
उस नौजवान के सपनों की छटपटाती लाचारी है
जो पूरे काम की चैथाई पगार पाता है!
नदी को बदबूदार नाले में बदलने की
अमिट कहानी है, विकास!
जंगलों के लुटने का,
पहाड़ों के दरकते जाने का
लालची मुहावरा है विकास!
चिडियों की अंतिम छटपटाहट
गिद्धों तक के भी खात्मे की साजिश है, विकास!
महानगरीय चैराहों पर बढ़ती,
भिखारी बच्चों की भीड़ है विकास!
अडानी-अंबानी की तिजोरी की गुलाम
बड़बोली, बदजुबान कुतर्की राजनीति है विकास!
शहरी नाले पर झोपड़ी की विवशता है विकास!
फुटपाथ पर सोते लोगों के अंक में उछाल,
शेयर बाजार के साथ,
कईं परिवारों की आखिरी डूब है विकास!
विकास एक बीमारी है,
झूठ को सच,
सच को अफवाह कहने की!
विकास एक लत है,
कर्ज पर जीने,
और गुमान में रहने की!
दूसरे के लिए कमाते जाना,
कुछ ना कहना, सब सहना!
झुकती, टूटती मजदूर की पीठ पर रखी
रोज भारी होती साहूकार की तिजोरी है, विकास!
हे, विकास!
अडानी-अंबानी की तिजोरी के कर्ज की नींव पर,
हम नही खड़े करेंगे अपने सपनों के महल!
अब बंद कर दो तुम अपना छल,
मैं तुम्हे हक ना दूंगा,
मेरे सपनों की उस लूट का!
जिसके लिए,
चन्द्रशेखर आजाद ने गोली खाई!
रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक सूली चढ़े!
मेरा प्यारा दोस्त, भगत!
हंसते-हंसते शहीद हो गया!
मेरा सबसे लाड़ला साथी,
चे, जालिमों की गोलियों का शिकार हुआ!
मेरी खाली जेब टटोलकर
जब वह अनपढ़ रहने का श्राप देता है,
तो मैं विकास से डरता हूं,!
इठलाकर, इतराकर चलता तो हूं,
चमचमाती काली लंबी सड़क पर
मगर विकास के टोल हंटर से डरता हूं!
यूं मैं विकास तो चाहता हूं,
मगर,
बेसुध बीमारों की कतार से,
लालच की हथेली फैलाकर
जब वह सपनों के दाम मांगता है!
तो विकास मुझे चिढ़ाता है!
उजाड़कर मेरे जंगल
बदनीयती खोद देती है पहाड़,
मुस्कराती है मेरी लाचारी पर!
मेरी हथेली से झपटकर रोटी
छीनकर छत
मुझे फेंक देती है किसी मैदानी तंबू में
तो मुझे विकास घिनौना लगता है!
मै घबराता हूं!
विकास-विकास चीखते
दंगई के नाखूनों में फंसे मांस की बू से!
मैं डरता हूं,
उस साजिश से
जो लाश के ढ़ेरों,
उजड़े घरों की कतारों के पीछे,
विकास की ललचाती तस्वीर रखकर
मुझे फंसाना चाहती है,
एक भूखे चूंहे की तरह!
मेरे लिए विकास,
उस नौजवान के सपनों की छटपटाती लाचारी है
जो पूरे काम की चैथाई पगार पाता है!
नदी को बदबूदार नाले में बदलने की
अमिट कहानी है, विकास!
जंगलों के लुटने का,
पहाड़ों के दरकते जाने का
लालची मुहावरा है विकास!
चिडियों की अंतिम छटपटाहट
गिद्धों तक के भी खात्मे की साजिश है, विकास!
महानगरीय चैराहों पर बढ़ती,
भिखारी बच्चों की भीड़ है विकास!
अडानी-अंबानी की तिजोरी की गुलाम
बड़बोली, बदजुबान कुतर्की राजनीति है विकास!
शहरी नाले पर झोपड़ी की विवशता है विकास!
फुटपाथ पर सोते लोगों के अंक में उछाल,
शेयर बाजार के साथ,
कईं परिवारों की आखिरी डूब है विकास!
विकास एक बीमारी है,
झूठ को सच,
सच को अफवाह कहने की!
विकास एक लत है,
कर्ज पर जीने,
और गुमान में रहने की!
दूसरे के लिए कमाते जाना,
कुछ ना कहना, सब सहना!
झुकती, टूटती मजदूर की पीठ पर रखी
रोज भारी होती साहूकार की तिजोरी है, विकास!
हे, विकास!
अडानी-अंबानी की तिजोरी के कर्ज की नींव पर,
हम नही खड़े करेंगे अपने सपनों के महल!
अब बंद कर दो तुम अपना छल,
वरना, मैं नोच दूंगा,
तुम्हारे मुंह से हर सुनहरी नकाब को!
शुरूआती कुल्हाड़ी से लेकर एटम बम तक,
अपने पसीने से बने सारे हथियार लेकर,
मैं उड़ा दूंगा तुम्हारी धज्जियां!
तुम्हारे मुंह से हर सुनहरी नकाब को!
शुरूआती कुल्हाड़ी से लेकर एटम बम तक,
अपने पसीने से बने सारे हथियार लेकर,
मैं उड़ा दूंगा तुम्हारी धज्जियां!
मैं तुम्हे हक ना दूंगा,
मेरे सपनों की उस लूट का!
जिसके लिए,
चन्द्रशेखर आजाद ने गोली खाई!
रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक सूली चढ़े!
मेरा प्यारा दोस्त, भगत!
हंसते-हंसते शहीद हो गया!
मेरा सबसे लाड़ला साथी,
चे, जालिमों की गोलियों का शिकार हुआ!
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