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मंगलवार, 20 मई 2014

कबाड़ होते सपने !

                    -------महेश राठी

अजीब तो है ,
मगर झूठ नहीं
इस दौर में
सपनों का कबाड़ हो जाना !
किसी का,
सोच में सुराख कर देना !
उत्पाद की तरह से
रोप देना उन्मादी नारे,
थोप देना झूठी मोहक तस्वीर!
सपनों का,
कबाड़ होना ही तो है !
सपनों के मर जाने सा,
खतरनाक होता है,
यूं सपनों का कबाड़ हो जाना!
कबाड़ में,
ढूंढते रह जाना यथार्थ
महकती सुर्ख नई भोर को,
उंगली की नर्म पोरों से
कभी ना छू पाना !
सचमुच,
अजीब तो है,
झूठ नहीं मगर,
सपनों का कबाड़ हो जाना ! 

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