पृष्ठ

बुधवार, 22 जून 2016

कैराना और यूपी को गुजरात बनाने की साजिश

महेश राठी
पिछले लोकसभा चुनावों से पहले मुज्जफ्फरनगर के सांप्रदायिक नरसंहार से यह तय हो गया था कि सांप्रदायिक धु्रवीकरण ही भाजपा और आरएसएस की जीत सुनिश्चित करने वाला उनका एकमात्र चुनावी हथियार है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा के आगामी चुनावों में भाजपा-संघ की चुनावी तैयारियां फिर से सांप्रदायिक उन्माद के द्वारा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के संकेत दे रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सहारनपुर में चुनाव अभियान की शुरूआत किये अभी एक महीना भी नही हुआ था कि भाजपा के चुनाव प्रचार की रणनीति भी उजागर होने लगी है। इलाहाबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से ठीक पहले कैराना के सांसद हुकुम सिंह ने एक सूची जारी करते हुए दावा कर दिया कि कैराना दूसरा कश्मीर बन रहा है और वहां से भयभीत हिंदू पलायन कर रहे हैं। हमेशा की तरह मोदी-शाह की जोड़ी ने इस रणनीति को अंजाम देते हुए मोदी ने इस रणनीति पर मौन धारण कर अपनी सहमति दी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने शंखनाद करते हुए घोषणा कर डाली की उ. प्र. की जनता इसे हल्के में नही लेगी। कारपोरेट नियन्त्रित मीड़िया ने भाजपा-संघ के एजेंड़े को आगे बढ़ाते हुए देश के नक्शे पर ‘‘नये कश्मीर‘‘ को दिखाकर शोर मचाना शुरू कर दिया। बेशक भाजपा और संघी गिरोह कैराना और कांधला के संदर्भ में राग कश्मीर गा रहे हों परंतु दरअसल उनकी योजना कैराना और कांधला के बहाने उत्तर प्रदेश को दूसरा गुजरात बनाने की है। कुछ वर्षों पहले तहलका के एक स्टिंग में जिस प्रकार गुजरात नरसंहार के बाद विहिप और दूसरे संघी गिरोह के नेता अहमदाबाद की मुस्लिम बस्तियों को पाकिस्तान का नाम देते और हिंदू मुस्लिम बस्तियों के बीच बंटवारा करने वाली सड़कों को पाक बार्डर बताते पकड़े गये थे अब उनकी मंशा उत्तर प्रदेश में भी हिंदू और मुस्लिमों के बीच ठीक वही विभाजन करने की है। उनकी योजना यूपी के हर शहर हर बस्ती को भारत पाकिस्तान और उनके बीच की गलियों सड़कों को सांप्रदायिक विभाजन की सीमा रेखा बना देने की है। भगवा गिरोह आने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर प्रदेश के हिंदू मुसलमानों के बीच विभाजन की स्थायी लकीर खींचकर अपनी जीत को लंबे समय के लिए सुनिश्चित करने की साजिश कर रहा है। यही कारण है कि कैराना से जो तथ्यात्मक सच्चाई सामने आनी शुरू हुई उसने भाजपा-संघ और लगातार दल बदल में माहिर भाजपाई सांसद हुकुम सिंह के झूठ की हवा ही निकाल दी परंतु फिर भी अपने झूठ को सच साबित करने के लिए भाजपा नीत केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि योजनाबद्ध तरीके से कैराना और कांधला के दौरों पर निकल पड़े।
वास्तव में हुकुम सिंह ने जो सूची जारी की वह सरासर झूठ और बेबुनियाद निकली। किसी भी पिछड़े शहर की तरह कैराना से लोगों के पलायान का कारण ना केवल एकदम आर्थिक और व्यक्तिगत सिद्ध हुआ बल्कि भाजपा सांसद की सूची में दिये गए कईं नाम ऐसे भी थे जिनकी 20 साल पहले ही मृत्यु हो चुकी थी। इसके अलावा कईं नाम इस सूची में ऐसे भी पाये गए जो 10-15 साल पहले ही शहर छोड़कर जा चुके थे। सांसद हुकुम सिंह ने 346 परिवारों की एक सूची जारी करते हुए कहा था कि एक समुदाय विशेष से मिलने वाली धमकियों और वसूली के कारण ये परिवार उनके संसदीय क्षेत्र से पलायन कर गए हैं। उन्माद पैदा करने की गरज से अपने आरोप को अधिक सनसनीखेज और मजबूत बनाने के लिए कैराना को कश्मीर बनाने की साजिश का आरोप लगाते हुए सांसद ने यह भी दावा किया था कि रंगदारी न देने पर वहां 10 लोगों की हत्या कर दी गई है। शामली जिला प्रशासन का कहना है कि हुकुम सिंह द्वारा जारी सूची उसके पास है। शामली के एसपी विजय भूषण के मुताबिक इसमें हत्या के जिन मामलों का जिक्र है उनमें सिर्फ तीन ऐसे हैं जिनका संबंध जबरन वसूली से है और पुलिस पहले ही इनमें 25 लोगों को गिरफ्तार भी कर चुकी थी। अब तक की पुलिस जांच बताती है कि सूची में शामिल चार व्यक्तियों की मौत 20 साल पहले ही हो गई थी। सूची में शमिल 13 लोग अब भी वहीं रह रहे हैं और 68 लोग बेहतर अवसरों की तलाश में कई साल पहले कैराना छोड़कर चले गए थे। जिस मुकीम काला के खौफ का हवाला देकर हुकुम सिंह ने अपराध को सांप्रदायिक उन्माद में बदलने की कोशिश की है पुलिस सुत्रों के अनुसार जब वह मुकीम काला गिरफ्तार किया गया तो उस पर 14 कत्ल का आरोप था और उसके शिकार इन 14 लोगों में केवल 3 हिंदू थे और बाकी 11 मुस्लिम समुदाय से आते थे। इसके अलावा मुकीम काला के गिरोह में कुल 12 लोग थे जिसमें से चार हिंदू और आठ मुस्लिम समुदाय से थे।
मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों में आरोपी रहे भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने जिन 21 हिंदुओं की हत्याओं की सूची जारी की है उनमें से एक भी सांप्रदायिक हिंसा या द्वेष के कारण नहीं मारे गए हैं और उनमें से कईयों की तो ढाई दशक पहले हत्याएं हुई थीं। इस सूची में दर्ज मदनलाल की हत्या 20 वर्ष पहले, सत्य प्रकाश जैन की 1991, जसवंत वर्मा की 20 साल पहले, श्रीचंद की 1991, सुबोध जैन की 2009, सुशील गर्ग की 2000, डाॅ- संजय गर्ग की 1998 में हत्याएं हुई थीं। इन सभी हत्याओं में आरोपी भी हिंदू थे। इसके अतिरिक्त हुकुम सिंह द्वारा जारी की गई सूची में 37 लोग ऐसे थे जो एक दशक से भी पहले कस्बा छोड़कर जा चुके थे और केवल 24 लोगों के ही नाम ऐसे थे जो दो या तीन साल में कैराना से गये हैं। उनके भी अधिकतर अपने व्यक्तिगत और आर्थिक कारण रहे हैं। इस सूची में कुछ नामों की पहचान नरेन्द्र धीमान ने की और उन्होंने बताया कि सूची में शामिल रामनाथ धीमान उनके पुराने पड़ोसी रहे हैं परंतु वे 10 वर्ष पहले ही कैराना छोड़कर जा चुके हैं। इसके अलावा बनवारी सुपुत्र सुमेरचन्द और पन्ना राम सुपुत्र मुख्तियार सिंह की पहचान करते हुए उन्होंने बताया कि उनकी काफी पहले मृत्यु हो चुकी है।
हालांकि कैराना में लोगों के बसने उजड़ने की एक दूसरी तस्वीर भी है। जहां भाजपा और उसके सांसद हिंदुओं के पलायान की झूठी कहानी के सहारे उन्माद पैदा करना चाहते हैं तो वहीं दूसरी तरफ कईं दर्जन ऐसे हिंदू सैनी, रोड़ और जाट परिवार भी हैं जो कैराना में आकर बस गये हैं और हरियाणा की तुलना में सस्ती जमीन खरीदकर यहां पर खेती करने के लिए लगातार आकर बस रहे हैं और उनके खेतों पर काम करने वाले लगभग सभी लोग कैराना के मुस्लिम मजदूर ही हैं। ऐसा ही एक उदाहरण भाकपा के टिकट पर दो बार पानीपत लोकसभा का चुनाव लड़ चुके माम चन्द सैनी का है। माम चन्द सैनी और उनके कईं रिश्तेदारों ने कैराना में खेती की जमीन खरीदी है और उनमें से कईं यहीं कैराना में बस गये हैं। माम चन्द सैनी अभी पानीपत में ही रहते हैं परंतु उनकी कैराना की जमीन और मकान की देखभाल कैराना के ही मुस्लिम परिवार करते हैं। उन्होंने बातचीत में बताया कि कईं बार तो उन्हें कैराना गये काफी लंबा अर्सा बीत जाता है और वे फोन पर ही कैराना में उनकी जमीन की देखभाल करने वाले मुस्लिम मजदूरों को हिदायत देकर अपना काम चला लेते हैं। इसके अलावा कैराना पलायन करने का एक दूसरा पहलू रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में मुस्लिम परिवारों का यहां से पलायन करना भी जिसके बारे में भाजपा सांसद और संघी गिरोह बेहद शातिर ढ़ंग से खामोश हैं। पानीपत की हाजी कालोनी, घोसली और बेरियों वाली मस्जिद कालोनी में सैंकड़ों मुस्लिम परिवार कैराना से आकर बसे हैं परंतु उनका जिक्र करने से सांप्रदायिक उन्माद फैलाकर वोटो का धु्रवीकरण करने का संघी समीकरण गड़बड़ा सकता है और इसीलिए सालों से कैराना के जनप्रतिनिधि चुने जा रहे हुकुम सिंह खामोश हैं। यह विचित्र विडंबना ही है कि हुकुम सिंह के अनुसार यहां कि आबादी का 85 प्रतिशत मुसलमान हैं और वो हिंदुओं को डराकर पलायन के लिए विवश कर रहे हैं और खौफ फैलाने वाले यह अल्पंसख्यक हिंदू हित चिंतक हुकुम सिंह को बार बार अपना नेता चुनते हैं। हुकुम सिंह सबसे पहले कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर यहां से विधायक चुने गये थे और कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल और भाजपा सहित कइ्र्र दलों से वे कैराना के 7 बार विधायक रहे और आजकल लोकसभा के सांसद हैं। यदि किसी भी कारण कैराना से पलायान कोई सवाल है तो यह सवाल सबसे पहले हुकुम सिंह से ही किया जाना चाहिए कि उनको विधायक, मंत्री और सांसद चुनने वाला कैराना आज भी इस कदर पिछड़ा क्यों हैं कि लोगों को वहां से रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों और शहरों की तरफ रूख करना पड़ रहा है। कैराना में ना तो कोई ऐसा बड़ा रोजगार देने वाला औद्योगिक विकास हुआ है और ना ही इस कस्बे में शिक्षा का स्तर ऐसा है कि उसे रोजगार सृजक कहा जा सके। पूरे प्रदेश में जहां शिक्षा का औसत 67 प्रतिशत से अधिक है तो वहीं कैराना औसत से 20 प्रतिशत पीछे अर्थात 47 प्रतिशत पर ही ठहरा है। महिला शिक्षा के संदर्भ में तो स्थिति और भी दयनीय है। इसके अलावा मुज्जफफ्रनगर दंगे के बाद कैराना के आसपास बसी गरीब झुग्गी बस्तियों में हजारों हजार मुसलमान नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं उन पर भी कोई टिप्पणी अथवा उनकी दुर्दशा की सूची सांसद महोदय ने कभी जारी नही की। मुज्जफफ्रनगर दंगे की चपेट में आकर कैराना के आसपास बसने वाले इन गरीब मुसलमानों की कुल आबादी 50 हजार के लगभग हैं और इनकी सुध लेने वाला कोई नही है। शामली के विभिन्न गांवों, मुज्जफफ्रनगर, कांधला और बागपत से आकर हजारों की संख्या में लोग यहां पर शरण लिये हुग हैं। रास्ते टूटे फूटे और बदहाल हैं तो बिजली और पेयजल की स्थिति भी बेहद चिंताजनक है और क्या ही त्रासदी है कि बदहाल कैराना का सांसद अपने खराब प्रदर्शन को ही सांप्रदायिक कार्ड की तरह खेलकर अपनी अपने दल की जीत की पटकथा लिखना चाहता है।  
वास्तव में असम की जीत से अभिभूत और उत्तेजित होकर भाजपा-संघ के नेता यह सांप्रदायिक आंकड़ेबाजी उ. प्र. के 2017 में होने वाले चुनावों के मद्देनजर कर रहे हैं। बेशक कैराना आजादी से लेकर अभी तक देश में होने विभिन्न सांप्रदायिक फसादों का मूक साक्षी तो रहा है परंतु सांप्रदायिक विद्वेष कभी भी कैराना की हवाओं को दूषित नही कर पाया है। कैराना हमेशा जाना गया हिंदुस्तानी संगीत पर कर्नाटकी संगीत की छाप लिये किराना अथवा कैराना घराने की ख्याल गायकी के लिए। वह ख्याल गायकी जिसकी इजाद अमीर खुसरो ने राग धु्रपद में बदलाव करके की और वह ख्याल गायकी जिसने भारत रत्न पण्डित भीमसेन जोशी, गंगूबाई हंगल, रोशनारा बेगम, हीराबाई बरोड़कर, फिरोज निजामी जैसे बड़े नाम भारतीय संगीत की दुनिया में दिये वह ख्याल गायकी कैराना के संगीत घराने की पहचान है। परंतु यह सांप्रदायिक उन्माद की भाजपाई-संघी राजनीति अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए कैराना की महान विरासत को मिटाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस कस्बे को अपने सांपद्रायिक धु्रवीकरण का अखड़ा बनाना चाहती है। बेशक अभी भाजपा-संघ की यह चाल बेनकाब हो गयी हो और कांग्रेस से अपनी राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले दल बदल में माहिर भाजपा नेता हुकुम सिंह ने इस पर यू टर्न ले लिया हो परंतु इसका अर्थ यह नही है कि भाजपा-संघ ने अपनी रणनीति बदल ली है। तथाकथित विकास और आर्थिक मोर्चे पर बुरी तरह मात खाये और आम चुनावों में अपने बड़े बड़े वादों के झूठ और चुनावी जुमला सिद्ध हो जाने के बाद मोदी-शाह की जोड़ी के पास सांप्रदायिक उन्माद के द्वारा जीतना ही एकमात्र रास्ता बचा है और वो 2017 के यूपी चुनावों तक इस प्रकार के प्रयासों को लगातार दोहराते जायेंगे। कैराना अंत नही शुरूआत है और आगामी विधानसभा चुनावों तक प्रदेश की जनता को इसी प्रकार की झूठ और अफवाहों की संघी कहानियों और उन पर ढिठाई और बेशर्मी से टिके रहकर शोर मचाने की घटनाओं का सामना करना है।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें