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गुरुवार, 18 मई 2017

लूट, प्रताड़ना और सतत जुल्म की जमीन छत्तीसगढ़

महेश राठी
रायपुरः छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार राज्य सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ उठने वाली लोकतान्त्रिक आवाजों को दबाने के लिए लगातार जन संगठनों के नेताओं और विपक्षी पार्टियों के कार्यकताओं को निशाना बना रही है। विपक्षी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं, मनवाधिकार कार्यकर्ताओं और यहां तक कि जनाधार वाले चुने हुए जन प्रतिनिधियों और लेखकों, पत्रकारों को भी लगातार राज्य प्रशासन द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। राज्य सरकार का निशाना खनिज संपदा से समृ( आदिवासी बहुल इलाके और उस इलाके के प्रभावशाली नेता हैं। पुलिस प्रशासन लगातार ऐसे नेताओं को निशाना बनाकर उन पर हमले करता हैं और ऐसे लोगों को नक्सली कहकर झूठे मामलों में फंसाया जाता  है। संभावित प्रतिरोध को कुचलने की इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा पूर्व सरपंच और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सुकमा जिले के सदस्य और दंतेवाड़ा जिले की भाकपा जिला कमेटी के पूर्व सदस्य पोडियाम पंडा की बेवजह गिरफ्तारी पुलिस द्वारा गैर कानूनी पकड और पुलिस प्रताड़ना का मामला है। पुलिस इस गैरकानूनी पकड़ और प्रताडना को तथाकथित आत्मसमर्पण के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है।
पोडियाम पंडा सुकमा के बेहद लोकप्रिय और जाने पहचाने व्यक्ति हैं, वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काम करते हैं। कई साल तक वे सरपंच रहे, आजकल उनकी पत्नी पोडियाम मुइये सरपंच हैं। वे पुलिस और प्रशासन को सहयोग देते रहे है। इनके सम्बन्ध पूर्व गृहमंत्री ननकी राम कवंर से भी रहे हैं। सीआरपीएफ के कैम्प निर्माण, स्कूल निर्माण, पीडीएस राशन दुकान, स्वास्थ्य सेवा से लेकर कलेक्टर एलेक्स मेनन के अपहण के समय भी इनकी सहायता से ही उन्हें छुड़ाया गया था। सिपाहियों के अपहरण के समय भी इनकी सहायता ली गई थी। इससे यह भी तय है कि यह हर तरफ स्वीकार्य नेता रहे हैं।
तथाकथित आत्मसमर्पण अथवा गैरकानूनी गिरफ्तारी
3 मई को पंडा मछली मारने मिनपा और चिंतागुफा गये थे, वहीं इन्हें सुरक्षाबलों ने पकड लिया। उनकी पत्नी पोडियाम मुइये ने बताया की पंडा को वहीं पर बुरी तरह पीटा गया। उनकी इतनी पिटाई की गई की वो चल भी नहीं पा रहे थे। सुरक्षा बल उन्हें हेलीकॉप्टर से कही ले गये। दूसरे दिन स्थानीय अखबार में छपा की एक बड़े नक्सली लीडर को गिरफ्तार किया गया है। उस पर 113 केस दर्ज हैं। उसी समाचार में डीआइजी सुन्दराजन ने यह कहा की उसे अभी गिरफ्तार नहीं किया गया है।
पंडा की पत्नी और दूसरे लोग मालूम करते रहे की उन्हें कहाँ ले जाया गया है, परंतु कही कुछ पता नहीं चल पाया। परिजन सुकमा थाना और चिंतागुफा थाना बार बार गये तो उन्हें बताया की वे हमारे पास नही है, हम उन्हें नही लाये हैं।
वर्तमान सरपंच और पंडा की पत्नी पोडियाम मुईये को किसी ने कहा कि वह सुकमा थाने में है उनके कपड़े लेकर चले जाओ। दस मई को इनका परिवार कपड़े लेकर सुकमा थाने गया की उनसे मिलवा दीजिये। थाने में कहा गया की वो यहाँ नही है, लेकिन उसके कपडे हमे दे दो। यह लोग कपड़े देकर वापस घर आ गये। इसका मतलब यही हुआ की वो उस समय वहीँ थे।
सामान्य कानून तो यही है की किसी को भी गिरफ्तार किया जाये तो उसकी सूचना उनके परिवार को दी जाये। परंतु पोडियम पंडा के परिवार को एक सप्ताह से भी अधिक बीत के बाद भी कोई सूचना नही दी गई। पोडियाम पंडा की पत्नी मुइये, भाई कोमल, बच्चे और परिजन बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाने बिलासपुर हाईकोर्ट पहुचे। उन्होंने याचिका लगाई जगदलपुर लीगल ऐड ग्रुप के माध्यम से 12 मई को पुलिस को नोटिस हुआ। उच्च न्यायालय ने पुलिस को 15 मई तक अपनी स्थित स्पष्ट करने का नोटिस किया।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के नोटिस के बाद पुलिस में खलबली मच गई। जन प्रताड़ना के लिए कुख्यात छत्तीसगढ़ पुलिस ने पंडा के भाई कोमल और परिजनों पर डराने धमकाने और मारपीट करने का दौर शुरू कर दिया। याचिका वापस लेने के लिए पुलिस द्वारा तरह तरह का दबाव मारपीट और धमकाने का सिलसिला चलता रहा।
हाईकोर्ट में याचिका के जबाब में पुलिस ने कहा की पोडियाम पंडा ने किया सरेंडर याचिका वापस नही होते देख बाद सुकमा पुलिस में हडबडाहट फैल गई। 12 मई की रात को ही पंडा का भाई कोमल बिलासपुर से सुकमा गया था। 13 को पहुंचते ही उसे पुलिस ने पकड़ लिया, पंडा के बड़े भाई को भी पकड़ा गया और उन्हें पोडियाम पंडा के पास एसपी आफिस ले जाया गया।
अब तीनों पर दबाब डाला गया कि कैसे भी पंडा की पत्नी को कहो कि केस वापस ले लिया जाये। पंडा के भाई के घर से फोन को पुलिस लेकर आई और उससे फोन करवाया गया। पुलिस ने पंडा की पत्नी से संपर्क करने के लिए उनके वकील को फोन किया और फोन पर पंडा के भाई से वकील से कहलवाया गया कि भाभी से बात करवाओ, जब बात की तो कहा कि केस वापस ले लो, भाई ने सरेंडर कर दिया है, तुरंत वपस घर आ जाओ .थोडी देर बाद उसी फोन से पंडा ने बात की उसने भी वकील से यही कहा की दीदी मैंने सरेंडर कर दिया है 9 मई को। मेरी पत्नी को वापस सुकमा भेज दो। वकील ने कहा भी कि तुम यही बात यहाँ आ कर कह दो, वो मेरी क्लाईंट हैं, वो जैसा कहेंगी में वही करूंगी। वो मेरे पास नहीं हैं। वह आयी थी और काम के बाद वापस चली गयी हैं। दोनों फोन एसपी सुकमा के कार्यालय से किये गये और उन्हें डिक्टेट करके यह सब कहलवाया गया। उसके बाद दो बार और फोन आये। 15 शाम को पंडा के भाई ने आकर बताया की उसने और पंडा ने पुलिस के सामने पुलिस की बतायी हुई बात को ही कहा था। उन दोनों ने शाम  को पुलिस ने छोड दिया। क्योंकि पुलिस को आशंका थी कि पंडा के भाई को छुड़ाने के लिए भी याचिका दाखिल हो सकती है।
पुलिस ने 15 मई को हाईकोर्ट में आशानुसार यही बताया की पोडियाम पंडा ने आत्मसमर्पण कर दिया है और हम आत्मसमर्पण नीति के अनुसार व्यवस्था करेंगे। पोडियम अभी तक भी पुलिस की कैद में ही है और पुलिस भाकपा के कार्यकर्ता को बेवजह नक्सली बताने पर अमादा है।
आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीष कुंजाम ने भी बयान देकर कहा की पंडा का नक्सलियों से कोई लेना देना नहीं है और वह उनकी पार्टी भाकपा के सदस्य और दंतेवाडा के पूर्व जिला कमेटी सदस्य हैं।
दरअसल पोडियम पंडा की यह दर्दनाक दास्तान छत्तीसगढ़ पुलिस प्रशासन की करतूतों की एक ऐसी मिसाल है जिसे छत्तीसगढ़ पुलिस आदिवासी इलाकों में राज अंजाम देती है। पोडियम की कहानी एक व्यक्ति की कहानी नही छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके के हरेक आदिवासी के जीवन ऐसा डर है जिसके साये प्रत्येक आदिवासी हर पल जीता है। ना जाने कब सुरक्षा बलों के जवानों का दिल उनका शिकार करने के लिए मचल उठे और बेवजह मारपीट के बाद कब उसे नक्सली घोषित कर दिया जाए। पंडा की पूरी कहानी यही है कि पंडा को मछली मारते हुये पुलिस ने पकडा, मारा पीटा, दस दिन तक उनके परिवार को नही बताया जब परिवार हाईकोर्ट पहुचा तो उसे दबाब डाल कर आत्मसमर्पण करवाकर हमेशा के लिये नक्सली बना दिया।
कारण सिर्फ इतना की वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभावशाली नेता और आदिवासियों में बेहद लोकप्रिय थे। और जनवादी प्रतिरोध की संभावित प्रभावशाली आवाज थे और उन्हें इससंभावना की कीमत चुकानी पडी। यही मौजूदा छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों की वास्तविकता है, जो असहमति के जनवादी अधिकारों और संभावित प्रतिरोध की प्रभावशाली आवाजों को दबाने के लिए निरंतर प्रताड़ना और सतत जुल्म के हमलों की जमीन बनकर रहा गया है।
बस्तर संयुक्त संघर्ष समिति ने भी पोडियम पंडा को न्याय दिलवाने की मांग के लिए एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया जिसमें बस्तर संयुक्त संघर्ष समिति,छत्तीसगढ़ की ओर से सी. आर बकशी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, संजय पराते ;मार्क्ससवादी कम्युनिस्ट पार्टीद्ध, संकेत ठाकुर ;आम आदमी पार्टीद्ध, डॉ. लाखन सिंह ; पीयूसीएलद्ध पोडीयाम मुइए ;पंडा की पत्नीद्ध पोडियाम कोमल सिंह ;पंडा का भाईद्ध आदि ने उपस्थित रहकर प्रेस के सामने अपनी बात रखी व मीडिया के साथियों के सवालों का जवाब भी दिया।  उन्होंने बताया कि माननीय हाईकोर्ट द्वारा भी शासन से पूछा गया कि शासन ने किस कानून के तहत पांडा को इतने दिनों तक रक्खा है. इससे साफ पता चलता है कि किस प्रकार से आत्मसमर्पण नीतियों का दुरुपयोग करते हुए, फर्जी आत्मसमर्पण कराया जा रहा है।
अतः बस्तर संयुक्त संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ यह भी मांग रखती है, कि उपरोक्त पूरे प्रकरण से एक बार फिर से छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की नक्सलियों के लिए बनाई गयी, आत्म्सम्पर्पण नीतियों का दुरूपयोग किया जाना साफ दिखाई दिया है। जैसा कि हम सभी जानते है कि अब तक मात्र 3 प्रतिशत आत्मसमर्पण सही हुए हैं एंसा माना गया है और ज्यादा से ज्यादा आत्मसमर्पण के फर्जी मामले सामने आये हैं, जो कि अब किसी से भी छिपे नही है। अतः इसके लिए कुछ खास कड़े कदम सरकार को उठाने चाहिए। जिससे फर्जी आत्मसमर्पण पर रोक लगाईं जा सके। संयुक्त बस्तर संघर्ष समिति यह भी मांग करती है कि यदि किसी भी मामले में कोई भी फर्जी आत्मसमर्पण का मामला सामने आता है, तो ऐसे फर्जी आत्मसमर्पण कराने से सम्बंधित अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही भी सरकार व विभाग द्वारा की जानी चाहिये।

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