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बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

सीबीआई के महाभारत में बाहर आ रहा है मोदी सरकार का कीचड

जिस प्रकार से सीबीआई के स्पेशल निदेशक राकेश अस्थाना को बचाने के लिए मोदी सरकार मैदान में उतरी है और अपने आप को निष्पक्ष दिखाने के लिए सीबीआई के नंबर 1 और नंबर 2, दोनों को छुट्टी पर भेजकर अस्थाना को बचाने का प्रयास किया जा रहा है उससे मोदी सरकार के आखिरी दिनों में मोदी सरकार का सारा कीचड सड़क पर आता दिखाई पड़ रहा है। 

मोदी सरकार की इस कार्रवाई पर राहुल गांधी समेत पूरे विपक्ष ने हमला बोलते हुए मोदी पर सीधे आरोपों की झडी लगा दी है। कांग्रेस अध्यक्ष और लगभग पूरे विपक्ष ने एक सुर में आरोप लगाया है कि सीबीआई चीफ ने एजेंसी के अधिकारियों को राफेल मामले में सबूत जुटाने के आदेश दे दिये थे जिस कारण से उनकी छुट्टी कर दी गयी है। 

आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के विवाद में दोनों को छुट्टी पर भेजे जाने की बात सरकार के वकील सह वित्तमंत्री अरूण जेटली ने कही है। परंतु सवाल यह उठता है कि सीबीआई के नंबर 1 और नंबर 2 को तो आपने छुट्टी पर भेज दिया परंतु अस्थाना के मामले में सीबीआई द्वारा बनाई गयी जांच टीम को कालेपानी की सजा क्यों दे दी गयी है। ध्यान रहे, इस मामले की जांच कर रहे जांच अधिकारी का बस्सी का भी सरकार ने अन्डमान तबादला कर दिया है। यहां तक कि पूरी की पूरी जांच टीम को हटा दिया गया है। इससे साफ जाहिर है कि सरकार की नीयत मामले को ईमानदारी से सुलझाने की नही बल्कि अस्थाना को बचाने की अधिक जान पड़ती है। 

छुट्टी पर भेजे के जाने के बाद जिस तरह से आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है उससे साफ जाहिर है कि मामला अभी और पेचीदा होने वाला है। ध्यान रहे, कि सरकार द्वारा अवकाश पर भेजे जाने के बाद आलोक वर्मा ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। जिस पर कार्ट शुक्रवार को सुनवाई करने वाला है। यदि वर्मा को इसमें कोई राहत मिलती है और उन्हें कोर्ट बहाल कर देता है तो सरकार के लिए बड़ी मुसीबतों की शुरूआत हो सकती है। 

सरकार ने कहा है कि निष्पक्ष जांच के लिए दोनों को हटाया गया है। और जेटली ने सीवीसी का हवाला देते हुए कहा कि सीवीसी की सिफारिश पर दोनों को हटाया गया है। परंतु यहां सरकार और सीवीसी दोनो की नीयत पर भी सवाल उठते हैं। राकेश अस्थाना के खिलाफ सीवीसी और पीएमओ के पास अर्से से शिकायते हैं दोनों ने उस पर क्या कार्रवाई की और क्यों कोई जांच नही करायी। मोदी के करीबी और चहेते माने जाने वाले अस्थाना को जब स्पेशल निदेशक नियुक्त किया गया था तभी जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाये थे। यहां तक कि वह इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक भी चले गये थे। परंतु सकरार ने फिर भी अस्थाना की नियुक्ति की। बाद में आलोक वर्मा ने भी अस्थाना की नियुक्ति पर सवाल उठाये थे। यहां तक कि उन्होंने अस्थाना के खिलाफ सीवीसी को भी लिखा था। अब जो सीवीसी निष्पक्षता की बात करते हैं उनकी नियुक्ति के समय भी उनकी नियुक्ति पर सवाल उठ चुके हैं। और ध्यान रहे कि सहारा-बिडला डायरी केस में रिश्वत दिये जाने को मामले को बंद करने वाले यही सीवीसी थे। याद रहे, सहारा-बिडला डायरी मामले में मोदी का नाम सीधे तौर पर लिप्त था। बावजूद इसके कि नीचे के अधिकारियों ने इस मामले में जांच की आवश्यकता बतायी थी मौजूदा सीवीसी ने इसकी जांच की जरूरत को खत्म कर दिया था। अब मोदी के पंसदीदा वही सीवीसी निष्पक्षता की बात कर रहे हैं। 

जहां तक राकेश अस्थाना की बात है वह चारा घोटाले में लालू को फंसाने वाले और गोधरा में गुजरात की मोदी सरकार को बचाने वाले अधिकारी के बतौर जाने जाते हैं। अब जिस प्रकार से तमाम शिकायतों के बावजूद अस्थाना का बचाव इस सरकार ने किया है उससे जाहिर है कि यह सरकार अस्थाना को बचाने के लिए यह तमाम कसरत कर रही है। उसकी निष्पक्षता का राग ही अस्थाना को बचाने के लिए है। 

परंतु आलोक वर्मा की तत्परता और कोशिशों को देखकर लगता है कि वह सरकार से दो दो हाथ करने के मूड में जान पडते हैं। यदि वर्मा ने सरकार द्वारा अस्थाना को बचाने की लड़ाई में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो मोदी सरकार के आखिरी दिनों में मोदी सरकार का साढ़े चार साल का जमा हुआ सारा कीचड़ निकलकर बाहर आ जायेगा। 

पूरे मामले में यह भी ध्यान देने की बात है कि सीबीआई चीफ ने अस्थना के खिलाफ छह मामलों में एफआईआर दर्ज करायी है। और बदले में अस्थाना ने जो सतीश सना के बयान के हवाले से आलोक वर्मा को फंसाने की कोशिश की है वह शुरूआती दौर में ही कोर्ट में ध्वस्त हो जायेगा। यह बयान दिल्ली में दर्ज कराया दिखाया गया है और जिस तारीख में यह रिश्वत मामले का बयान दर्ज कराया गया है उस तारीख में बयान देने वाला सना दिल्ली में था ही नही। इसके अलावा सना उसी कुरैशी नेटवर्क का आदमी है जिससे मोदी रिश्वत खाने के केस में अस्थाना पर एफआईआर हुई है। बहरहाल, मामला पूरी तरह से साफ है कि मोदी और उनकी सरकार उस अस्थाना को बचाने का प्रयास कर रही है जिस पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं और जिसमें मोदी को गोधरा से लेकर गुजरात दंगों की जांच तक में कई बार लाभ दिया है। 

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