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शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

मोदी सरकार को मिला पुलिसिया चाणक्य


सीबीआई के महाभारत के बीच में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल एकबार फिर से चर्चाओं में है। डोभाल इस पूरे मामले में सरकार को फजीहत से बचाने और सीबीआई चीफ वर्मा और मोदी के लाडले अस्थाना के बीच सुलह सफाई के लिए फिर से मैदान में उतरे हैं। इससे पहले डोभाल मीटू मामले में फंसे एम जे अकबर के खिलाफ बने माहौल के बीच सरकार को फजीहत से बचाने के लिए मैदान में उतरे थे। अब डोभाल की भूमिका को देखकर लगता है कि वह देश की सुरक्षा नही बल्कि मोदी सरकार की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय सलाहकार बने हैं। जिस प्रकार विदेश नीति से लेकर राजनीतिक मामलों में अजीत दाभोल का दखल बढ़ा है उससे हमेशा विवादों में रहने वाले दाभोल को मोदी सरकार के नये चाणक्य के रूप में पेश किया जा रहा है। 

दरअसल, दाभोल की काम करने की शैली और नरेन्द्र मोदी को ठीक उसी प्रकार के व्यक्ति की आवश्यकता दाभोल को मोदी का विश्वसनीय बनाती है। दाभोल एक पुराने मंझे हुए आईबी अधिकारी रहे हैं और इंटेलिजेंस एजेंसिया दुनिया के किसी भी देश की हों उनका काम और काम करने का ढ़ंग कानून के दायरे से अक्सर बाहर होता है। या कहें किसी हद तक उनका तरीका गैर कानूनी भी रहता है। अमेरिकी एजेंसी सीआईए इसका जहां बड़ा उदाहरण है तो वहीं मोसाद, आईएसआई के कारनामें भी दुनिया के विभिन्न देशों की इंटेलिजेंस एजेंसियों के असली कारनामों और उनके असली काम की गवाही देती हैं। असल में इन इंटेलिजेंस एजेंसियों को कभी भी अपने अथवा कथित तौर पर दुश्मन देश के कानून की परवाह रहती ही नही है। उन्हें अपने देश की सत्ता में बैठे अपने मालिकों के वर्गीय हितों को पूरा करना होता है। और इसमें भी यदि आईबी अधिकारी अजीत दोभाल जैसा अतिसक्रिय व्यक्ति हो तो वह अपने कारनामों से अपने मालिकों का चहेता बन जाता है और वह केवल उस समय राजनीतिक भूमिका में आता है जब उसके मास्टर के पास विश्वसनीय राजनेताओं का सरासर अभाव रहता है और उसके मास्टर को अपने राजनीतिक सहयोगियों पर हमेशा शंका बनी रहती है। 
इसी अवसर का लाभ आज अजीत दोभाल को मिल रहा है और इसी के कारण एक पुराना पुलिस अधिकारी आज ना केवल राजनेताओं वाली भाषा बोल रहा है और काम कर रहा है बल्कि अपने आपको मोदी के चाण्क्य के रूप में भी पेश करने की कोशिश कर रहा है। यहां मामला केवल एम जे अकबर अथवा सीबीआई में महाभारत के प्रकरणों का ही नही है। इससे पहले भी बल्कि शुरूआत से ही अजीत दाभोल मोदी सरकार के लिए इस प्रकार के कुटनीतिक और राजनीतिक काम करते रहे हैं। बैंकाक में पाकिस्तान के एनएसए से गुपचुप मीटिंग हो अथवा मोदी की ट्रंप से पहली मुलकात अथवा डोकलाम में चीन का दखल दोभाल विदेश नीतियों से जुड़े सारे कामों में सक्रिय दिखाई पड़े हैं। बेशक इसके लिए चाहे मोदी ने  विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री की भूमिका को ही सीमित क्यों नही कर दिया हो। 

हालांकि अजीत दोभाल की भूमिका पर पहली बार सवाल नही उठ रहे हैं। आईबी में काम करते हुए भी उनकी भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं। उत्तर पूर्व में अपनी नियुक्ति के समय उन्होंने एक अलग ही इतिहास रच डाला था। उनके रहते ही ऐसा पहली बार हुआ कि आइजोल में एयरफोर्स ने अपने ही नगरिकों पर बमबारी की। हालांकि आईबी में जाने से पहले उनकी नियुक्ति केरल के थल्लशेरी में हुई थी जहां उनके कार्यकाल में थल्लशेरी का 1971-72 का कुख्यात सांप्रदायिक दंगा हुआ था। वैसे उस समय के उनके वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना था कि उन्होंने दंगे को रोकने में काफी अच्छी भूमिका निभायी थी। आईबी में आने के बाद उनके नागा विद्रोहियों से रिश्ते भी काफी चर्चा का विषय रहे थे। एक समय सेना के हवलदार रहे और बाद में प्रसिद्ध नागा नेता के रूप में जाने गये लालडेन्गा और उनके छह करीबी सेनापतियों से भी उनके बढ़िया रिश्ते उत्तर पूर्व में रहते हुए बताये जाते हैं। उनके इन रिश्तों को लेकर काफी किस्से कहे सुने जाते हैं। और ऐसा नही है कि उनके रिश्ते केवल उत्तर पूर्व के विद्रोहियों से ही रहे हों खालिस्तान के अलगवादियों से उनके रिश्तों की कहानियां हैं। पाकिस्तान में भी उन्होंने सात साल गुजारे हैं और वह स्वयं भी अपनी उपलब्धियों की कहानियां सुनाते हैं। हालांकि उनको जानने वाले अथवा उनके समकालीन दूसरे लोग उनकी कहानियों पर सवाल भी खड़े करते रहे हैं। यहां तक भी कहा जाता है कि अपने इन्ही रिश्तों और कम करने के तरीके के कारण वह अपने एक पूर्ववर्ती राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के निगरानी राडार पर भी थे। 

दाभोल की कहानियों की मौलिकता पर और उनके किस्सों के उपर बेशक सवाल उठते रहे हों परंतु यह तय है कि उनकी कार्यशैली में कभी भी वह पारदर्शिता नही रही है जिसकी एक लोकतांत्रिक प्रणाली में आवश्यकता होती है। हालांकि कईं लोग उनकी इस शैली को उनकी संघ से करीबी और उसके साथ वैचारिकी प्रतिबद्धता से भी जोड़कर देखते हैं। क्योंकि संघ की कार्यप्रणाली भी ठीक इसी प्रकार की रहस्यात्मकता से भरपूर मानी जाती है। संघ की सदस्यता से लेकर विभिन्न जन संगठनों से उसकी संबद्धता तक सभी इसी प्रकार कानून से परे और अपारदर्शी होता है। 

मौजूदा दौर में मोदी सरकार में जिस प्रकार सारी शक्तियां सिमटकर दो तीन हाथों में चले जाने अथवा पूरी तरह से पूरी सत्ता सिमटकर नरेन्द्र मोदी में समाहित हो जाने की चर्चाएं राजनीतिक हलकों में होती रही हैं। उससे मोदी की कार्य प्रणाली का पता चलता है। ऐसी अपारदर्शी और केन्द्रित सत्ता के राजनेता को हमेशा एक ऐसे औजार की जरूरत रहती है जो गुपचुप तरीके से इस सत्ता को मजबूत करने के लिए हरेक कानूनी, गैर कानूनी काम करने में माहिर हो। मोदी की यही आवश्यकता एक निरंकुश और बेलगाम पुलिस वाले को अपना चाणक्य बनाने की आवश्यकता को जन्म देती है। और मनमर्जी से कुछ भी करने वाला यह एक पुलिसिया अधिकारी इसी आवश्यकता को पूरी कर रहा है। इसीलिए वह अपने मास्टर का चाणक्य बन रहा है।  

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