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शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

एक के बदले दस सर की असली राजनीति

महेश राठी

आठ जनवरी 2013 को जम्मू-कश्मीर के पास कृष्णा घाटी में मथुरा निवासी सेना के लांस नायक हेमराज  शहीद हो गए। पाकिस्तानी फौज ने उनके साथ एक और जवान सुधाकर सिंह का सिर कलम कर दिया था। उसके बाद हेमराज की शहादत पर राजनीति का मोर्चा खुल गया। आज के प्रधानमंत्री और उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर सुषमा स्वराज, जनरल वी के सिंह से लेकर भाजपा का हरेक छोटा बडा नेता शहीद हेमराज की शहादत पर बयानबाजी करने वाला बयान बहादुर बन बैठा था। शहीदों के साथ नाइंसाफी की बातें की गयी एक के बदले दस सर लाने के जुमले गढ़े गये और गरमा गरम उकसावे वाले भाषणों की देशभर में बाढ़ सी आ गयी। परंतु बयान बहादुरों की सरकार को पांच साल होने को हैं और हेमराज की शहादत को छह साल बीत गए है लेकिन शहीद हेमराज और उनका परिवार आज भी मदद के लिए दर दर भटक रहा है। देशभक्त नेताओं के वादे जुबानी जमाखर्च और उनकी सरकार के वादे बस कागजों पर ही है।

शहीद हेमराज की पत्नी धर्मवती और उनके तीन बच्चे बीते छह साल से एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन अब तक न तो उन्हें सरकारी नौकरी मिली है और न ही पेट्रोल पंप यहां तक की मथुरा के कैंट इलाके के जिस क्वार्टर में हेमराज की विधवा अपने बच्चों समेत रह रही हैं, उसे भी खाली करने के नोटिस मिलन लगे हैं। लगता है कि शहीद हेमराज के परिवार के साथ देशभक्ति के ठेकेदारों की करतूत यदि ज्यादा उजागर हो गयी तो हो सकता है कि सजा के तौर पर उनके परिवार को सरकारी क्वार्टर से बाहर ही कर दिया जायेगा।


हेमराज की शहादत को छह साल बीत गये और ऐसा नही है कि उनकी विधवा धर्मवती ने सरकार के  सामने अपनी फरियाद करने की कोशिश नही की है। शहीद की विधवा धर्मवती ने सभी देशभक्त नेताओं और राज्य के मंत्रियो से लेकर देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह तक से भी फरियाद की और दफ्तरों के चक्कर काट काटकर वह अब थक चुकी हैं। उनका कहना है कि आने जाने का भाड़ा लग जाता है मगर काम होता नहीं। लिहाजा अब घर बैठ गए हैं। यह वही शहीद हेमराज हैं, जिनकी शहाद पर नरेंद्र मोदी से लेकर सुषमा स्वराज ने चुनावी भाषणों में एक के बदले पाकिस्तान से दस सिर लाने के दावे किए थे।  हेमराज की शहादत के बाद बीजेपी ने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। जमकर इस मुद्दे पर राजनीति भी हुई। लेकिन देशभक्ति के ठेकेदार मोदी की सरकार शहीद हेमराज के परिवार को भूल चुकी है। यहां तक कि हेमराज की विधवा धर्मवती ने तीन बार पीएम मोदी से मिलने की कोशिश की परंतु उन्हें वक्त तक नही दिया गया। और तो और मथुरा से सांसद हेमामालिनी भी कभी हेमराज के गांव में नही आयी।


यही नहीं सरकार से मिले 25 लाख रुपए में 10 लाख रुपए का फर्जीवाड़ा भी उनकी पत्नी के साथ हो चुका है। जब सेना का जवान बनकर आया एक व्यक्ति झांसा देकर दस लाख रुपये लेकर फरार हो गया था। हेमराज की पत्नी की पेंशन इतनी नहीं है कि उससे तीन बच्चों की पढ़ाई हो सके। यह खबर पाकर एक समाजसेवी संगठन ने परिवार के मेडिकल और बेटी की पढाई का खर्चा उठाने का निर्णय लिया है। मीरा श्री चेरिटेबल की मेंबर नंदनी सहरावत ने कहा कि जब हम इनके गांव गए तो हमने देखा कि पेंशन से कैसे तीन बच्चों को पढ़ाया जा सकता है, बहुत दिक्कत होती है मैं औरत हूं समझती हूं। इसलिए हमने खर्चा उठाने का फैसला किया है। यही नहीं हर साल हेमराज की शहादत दिवस 8 जनवरी को उनके गांव में मनाया जाता है उसका खर्च भी हेमराज की पत्नी खुद वहन करतीं हैं।

नंदनी सहरावत ने देशभक्ती की राजनीति करने वाले नेताओं की हरकत का बेहद शर्मनाक किस्सा बताया। उन्होंने कहा कि जब वह हेमराज के गांव गयी तो देखा कि 8 जनवरी को हेमराज की शहादत दिवस का सारा खर्च धर्मवती खुद ही वहन करती हैं और उनके खर्च पर बनाये गये बडे स्टेज पर चढ़कर नेता लंबे लंबे भाषण ठोककर चले जाते हैं। यहां तक कि शहीद की विधवा के पैसे से इस समारोह में बनने वाले पकोडे, समोसे और चाय, पानी पीकर और सरकार की वादा खिलाफी और दगाबाजी पर खामोश रहकर हेमराज की शहादत को भुनाने के लिए ये नेता नये जोशीले भाषण पेलकर चुपचाप निकल जाते हैं।

सशस्त्र सेना के एक शहीद से दगाबाजी की यह कहानी केवल हेमराज के परिवार से वादाखिलाफी की ही नही यह डायरेक्टोरेट आफ एक्स सर्विसमैन वेलफेयर की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खेडे कर रही है। शहीद हेमराज के परिवार को भटकते देख पूर्व सैनिकों में भी खासी नाराजगी है। असल में, डायरेक्टोरेट आफ एक्स सर्विसमैन वेलफेयर की स्थापना पूर्व सैनिकों की मदद के लिए हुई थी, मगर इस संगठन का संचालन कोई फौजी नही करते हैं बल्कि वहां आईएएस अफसर कब्जा जमाकर बैठे हैं, उन्हें शहीदों और सैनिकों के परिवारों से क्या लेना-देना। और उन्हें न सैनिकों की शहादत का पता है और ना ही उसके बाद शुरू होने वाली उनके परिवारों की समस्याओं का। बहरहाल, हेमराज की शहादत पर राजनीति देशभक्ति की ठेकेदारी करने वाली राजनीति का एक शर्मनाक और भयावह चेहरा है। हेमराज मामले में राजनीति केवल शहीदों को इंसाफ दिलाने के नाम पर खोखली नारेबाजी और जुमलेबाजी तक सीमित नही थी बल्कि इस राजनीति ने हेमराज और शहीद सुधाकर के सर कटने की दर्दनाक और दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी को भी अपने सियासी फायदे के लिए इस्तेमाल कर डाला और एक के बदले दस सर का जुमला गढ़ा और उसे सत्ता मिलने तक खूब बेचा और सत्ता में आने के बाद मानो कह दिया हो कि शहीदों के सर-धड सब भाड में जायें।

शहीद का परिवार केंद्र और राज्य सरकार की उपेक्षा से बेहद नाराज है। परिवार वालों का कहना है कि जिस बेटे ने मुल्क की सुरक्षा के लिए दुश्मनों से लड़ते हुए सिर तक कटा दिया, उसकी ऐसी उपेक्षा से हम टूट चुके हैं। केंद्र और प्रदेश सरकार ने हेमराज की शहादत के बाद जो वादे किए थे वो एक भी पूरा नहीं किया। परंतु जिन सरकारों से शहीद हेमराज का परिवार नाराज है, खफा है उनके लिए फिर से जुमले गढ़ने और जवानों की लाशों को बेचने का मौसम आ गया है। फिर भाषण हो रहे हैं, जुमले गढ़े जा रहे हैं। नेताओं से लेकर घटिया टीवी ऐंकर तक सभी युद्धोन्माद फैलाने में जान झौक रहे हैं। 2014 के चुनाव की तैयारी में शहीद हेमराज और शहीद सुधाकर के सर दांव पर थे तो 2019 की तैयारी में 44 लाशें और उनके क्षत विक्षत शरीर चुनावी बिसात पर हैं। जो कल तक हेमराज और सुधाकर के सर बेचने की सियासत में वकील थे, वो आज बेशक पुलवामा में गिरी लाशों के गुनहगार हों मगर लाशें बेचने के फन में वो इतने माहिर हैं कि हर लाश उनके फायदे का ही सौदा बन जाती है। 

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