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शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

मदारी और मैं

महेश राठी

भीड को बरगलाते एक आदमी को रोकने के लिए मैंने उसे ना कहते हुए "न" शब्द दिखाया
मेरा ही "न" दिखाते हुए उसने कुछ लोग जोडे और उन्हें समझा दिया कि मैंने उसे नेता बताया !

मैंने समझ लिया उसका शातिरपन और उसे एक शब्द "श" दिखाया
मेरा "श" पकड वह भीड के सामने जोर जोर से चिल्लाया कहा, मैंने उसे शानदार कहा !

मैं उससे नाराज हुआ उसे मक्कार बताकर फिर एक शब्द "म" उसे दिखाया
मेरा "म" लिये वह भीड के सामने घण्टों बोला कहा, मैंने उसे महान बताया !

मुझे अफसोस था उसके फरेबी पाखण्ड पर और उसे "प" शब्द दिखा दिया
अब वह ताली पिटते भीड़ कोे समझा गया कि मैंने उसे बडा पाबन्द बताया !

मेरा आक्रोश सीमा लांघ गया, मैंने उसे कहा उन्मादी और दिखाया "उ"
वह फिर सीना पीट पीटकर और हाथ उछाल उछालकर लोगों को समझा गया, मैंने उसे नई उम्मीद कहा !

अब 2019 है,
उसे उम्मीद है मैं उसे फिर दूंगा फिर एक मौका दिखाउंगा एक नया शब्द
वह फिर बदल देगा उसके मायने, बन जायेगा दोबारा नई मिसाल !

मगर अब मैं चुपचाप, खामोश सहला रहा हूँ अपनी उंगलियां
ख़ामोशी से कर रहा हूँ इंतजार बटन दबाने का !  

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