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शनिवार, 6 नवंबर 2010

सबका सिपाही

सबका सिपाही

सिपाही भाई,
मिर्चपुर फिर आना
दम तोड़ते प्रतिरोध की
बेबसी की पिकनिक पर
आना तुम, अब
कलावती पर,
ख़त्म हो गई
तुम्हारी कलाबाजियों के बाद
विदर्भ की मरती ख्वाहिशों का
फिर तमाशा देखने
तुम आना
सिपाही  भाई,
फिर सजा है
बुंदेलखंड के
लुटे सपनो का बाज़ार
तुम्हारे लिए
सिपाही भाई,
तुम पहरेदार हो
हर विरोधी की जमीन के
मगर
काश, सिपाहीगिरी
कुछ काम आ पाती
कश्मीर की
नौजवान मौतों के,
आदिवासियों के सिपाही
तुम क्यूँ खड़े नहीं हुए
आबरू लूटा चुकी
मणिपुरी औरतों के साथ
तुम नज़र भी तो नहीं आए
खम्मम में
शहीद हुए किसानो के बीच
तुम्हारे घर के चारो ओर
फूटपाथ पर सोते डेढ़ लाख
दिल्ली के बेघरों से
क्या बैर है
तुम्हारी सिपाहीगिरी को
और, सिपाही भाई
तुम्हारी ख़ामोशी से
आज तक खुश है
मधु कोड़ा
तमिलनाडु के कई बड़े परिवार
तुम्हारे घर के सन्नाटे से
अपने सुख की चादर सिलते हैं
आज भी,
सिपाही भाई,
तुम्हारी सिपाहीगिरी से
ऐन्ठें हैं आजकल
पुराने राजनेताओं के
नए नौनिहाल कई
तुम सचमुच,
सबके सिपाही हो !

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