पृष्ठ

शनिवार, 13 नवंबर 2010

रोज़ मरती है रुचिका यहाँ

एक नौकरशाह और राजनीति के गठजोड़ की कुटिल और ढीठ मुस्कुराहट आखिर जीत ही गई ! सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने अपने सत्ता के नाजायज इस्तेमाल से दो मासूम हत्याओं के दोषी आइपीएस अधिकारी राठौड़ को जमानत पर रिहा कर दिया ! ये उस दोस्ती की मिशाल है जो हर खाकी वर्दी के बीच होती है और उसका पथपरदर्शक और संरक्षक हमेशा राजनेता होता है ! यही दोस्ती अपनी बेटी  जैसी चौदह साल की लड़की के साथ अश्लीलता की मानसिकता को तैयार करती है और खाकी को बचाने वाली खादी की जरूरत भी ! रुचिका और उसके भाई आशू की मौत इस अश्लील गठजोड़ की जिन्दा मिशाल हैं ! १९९० में रुचिका छेड़छाड़ मामले से लेकर अभी तक हरियाणा में अभी तक सभी दलों की सरकार रह चुकी है और उनमे एक ही समानता थी राठौर से दोस्ती और उसका बचाव हुकुम सिंह की सरकार ने उसका केस दबाया, भजनलाल ने उसे तरक्की देकर डीजीपी बनाया और उसकी करतूतों के लिए राठौर को राष्ट्रपति पदक की सिफारिश की जिसे अंजाम तक हुड्डा ने पंहुचाया !  अब कोर्ट के आदेश पर होने वाली सीबीआई जाँच कहती है की आशू की मौत में राठौड़ का कोई हाथ नहीं है और गिरहोत्रा परिवार को प्रताड़ित करने में भी राठौड़ की कोई भूमिका नहीं है  !
                इस देश की व्यवस्था भी बड़ी ही अजीब है जब भी कोई पुलिस वाला जुर्म करता है तो हमेशा उसकी जाँच दूसरा पुलिसवाला ही करता है ! अब सीधी बात है बचाव किसका होगा और जाँच के नाम पर दोहरा कहर कौन झेलेगा यही दोहरा कहर झेल रहे है रुचिका और आशू के पिता एस सी गिरोह्त्रा और इस कहर को वो रोज़ झेल रहे हैं हर रोज़ ! गिरोह्त्रा का परिवार एक सम्रद्ध माध्यम वर्गीय परिवार था मगर एक नौकरशाह की घर्णित एवं अश्लील मानसिकता ने इस परिवार को पूरी तरह तबाह कर दिया और सीबीआई बेशर्मी के साथ कहती है यह शहरी पशु निर्दोष है ! दरअसल सीबीआई की आज देश में कोई विश्वसनीयता ही नहीं बची है यदि उसकी किसी मामले में कोई विश्वसनीयता है तो अपने पुलिस अधिकारियो को बचाने और नेताओं के इशारे पर तत्परता से काम करने में ! परन्तु अब समय आ चूका है कि नागरिक समाज को इस पर कोई फैसला करना ही होगा ! रुचिका मामले कि जाँच दो स्तर पर होनी चाहिए पहले एक न्यायिक जाँच होने चाहिए जो पूरे मामले में पुलिस राठौड़ के एक मातहत और सहयोगी विभाग के तोर पर हो दुसरे देश के प्रबुद्ध नागरिक मिल कर अपनी एक स्वतंत्र जाँच आयोग का गठन हो जो इस पूरे मामले में पुलिस और राजनीति कि भूमिका कि व्यापक जाँच हो ! इस आयोग में स्वामी अग्निवेश, प्रशांत भूषण, अरुणा रॉय, हर्षमंदर और अरविन्द केजरिवार सरीखे लोगो को शामिल किया जा सकता है ! अब प्रतिनिधियों के इस लोकतंत्र को जनभागीदारी के लोकतंत्र कि ओर ले जाने का समय आ चूका है जिसमे इस लोकतंत्र कि जवाबदेही आम नागरिको को प्रति निर्धारित कि जा सके और कोई राठौड़ किसी रुचिका की मौत का कारण ना बन सके ! यह एक माध्यम वर्गीय सम्रद्ध परिवार की तबाही की कहानी है सोचिये ऐसे कितने गरीब परिवार होंगें जिनकी बर्बादी के किस्से दुनिया जन ही नहीं पाई ! नागरिको के प्रति पहली और अंतिम प्राथमिकता रखने वाली व्यवस्था ही एक सही नागरिक समाज का निर्माण कर सकता है और नगरिको के हितों को सर्वोच्च मानने वाला जनवाद ही सच्चा जनवाद हो सकता है !

1 टिप्पणी:

  1. हमसब के मुस्कान के लिए राठोड जैसे की मुस्कान का बना रहना खतरे की घंटी से कम नहीं......वैसे भी इस देश और समाज में भेड़ियों की संख्या भयानक रूप से बढ़ रही है....

    जवाब देंहटाएं