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सोमवार, 24 जनवरी 2011

एकता नही एकरूपता यात्रा

तिरंगा हम सबकी देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम की भावना का प्रतीक है ! इस झंडे के सम्मान का एहसास देश के हर नागरिक के दिल और दिमाग में है, परंतु अफ़सोस उन लोगो और उनकी सोच पर होता है जो हर जगह अपनी राजनीतिक रोटियां सकने का इंतजाम कर ही लेते है और आज उनके इस कारोबार का निशाना देश के सम्मान का प्रतीक तिरंगा भी बन गया है ! वैसे इन देशभक्तों की करतूत पर हैरानी की ज्यादा जरूरत नहीं है क्योंकि इन्होने अपने कारोबार की खातिर तो अपने भगवान को भी नहीं छोड़ा अब देश और उसके झंडे की क्या बात ! कमाल इस बात का है कि इन देशभक्तों को झंडा फैहराने कि याद तब नहीं आई जब ये भाजपाई इन्ही उमर अब्दुल्ला को दिल्ली में लाल बत्ती दे कर राजग सरकार में केबिनेट मंत्री बनाये   घूम रहे थे ! उस समय अनुराग ठाकुर की ठकुराई और भारतीयता गहरी नींद सो रही थी और सनातन प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवानी की याददास्त में भी शायद कुछ राजनीतिक गड़बड़ हो गयी थी कि उनको भी देश के सम्मान को बढ़ाना और बचाना याद नहीं आया ! खैर तुलसीदास के बाद या उनसे भी पहले रामध्वजाधारी से ऐसी गड़बड़िया अक्सर होती रहती है यही उनके चरित्र का एतिहासिक गुण है ! १९२७ में जन्मे लाल कृष्ण आडवानी को १९४७ तक एक दिन भी तिरंगा उठाने और फैहराने का जोश नहीं आया शायद उनकी राजनीति में ६० साल की उम्र के बाद जोश आने की परम्परा  है ! यदि ऐसा है तो वो अनुराग को क्यों भरी जवानी में बिगाड़ रहे हैं ! मुरली मनोहर जोशी को भी तो यह जोश आने की प्रेरणा उन्होंने बुढ़ापे में ही दी थी ! वैसे जरूरत के समय तिरंगा नहीं उठाने का उनका और उनके मूल संगठन आरएसएस आधारभूत वैचारिक गुण रहा है तभी १९२५ से १९४७ तक एक दिन भी इन देश भक्तों ने इस तुच्छ और खराब काम को नहीं किया क्योंकि इससे आज़ादी की लड़ाई मजबूत होती और देश में एकता का माहौल बनता जिससे इनको और इनकी राजनीति को तकलीफ होती ! अब देश के आज़ाद होने पर यही तिरंगे के सबसे बड़े पैरोकार बने फिरते हैं और फैहराते भी वहां हैं जहाँ अपनी सियासी रोटियां सिक सकें वर्ना तो श्रीनगर में वहां का मुख्यमंत्री हर १५ अगस्त और २६ जनवरी पर तिरंगा फैहराता ही है ! सम्मान की प्रतीक टोपी से लेकर अंतर्वस्त्रों तक अमेरिकी झंडा टांकने का शौक रखने वालो को आज तिरंगे की इतनी फ़िक्र क्योंकर हो रही है !
               ऐसा नहीं कि अलगाववाद और अलगाववादी भावनाओ का असर केवल जम्मू कश्मीर में ही है और देश कि एकता अखंडता को केवल वहीँ के कुछ लोगो से चुनौती मिल रही है उत्तर पूर्व के लगभग हर राज्य की यही परेशानी है, मगर उसपर भाजपाई देशभक्ति खामोश है ! आप नेपाल जो की एक आज़ाद देश है जाना चाहे तो आप बगैर किसी परमिट और वीजा के जा सकते है, मैं जब नेपाल गया था तो मेरे पास कोई पहचान पत्र भी नहीं था और हम ३० लोगो का एक समूह मधुबनी के जय नगर से जनकपुर में रात को बारह बजे दाखिल हुए थे, बगैर किसी पहचान पत्र और परमिट वीजा के ! मगर उत्तर पूर्व में कुछ राज्यों की हालत ऐसी है कि वहां आप बगैर पहचान पत्र और परमिट के दाखिल नहीं हो सकते हैं ! मणिपुर ऐसा ही एक राज्य है आप सड़क के रास्ता से जायेंगे तो आपको गुवाहटी में यह परमिट लेना होगा अपने पहचान पत्र को दिखा कर और हवाई रास्ते से जाते हैं तो एअरपोर्ट से यह परमिट लेना होगा, लेकिन भाजपा की देशभक्ति है की करवट ही नहीं लेती है ! क्योंकि वहां वोटों की गोलबंदी के लिए वहां मुसलमानों का बहुमत नहीं है बहुमत तो हिन्दुओं का है और अपनों के तो सौ गुनाह माफ़ अलगाववाद भी ! २००१ में तो मणिपुर में इस देशभक्त पार्टी ने बहदुरी के कई कीर्तिमान स्थापित कर डाले सत्ता के लालच में अपनी राजग की सहयोगी समता पार्टी की सरकार ही गिरवा दी जिससे हालत ऐसे बिगड़े कि कानून को लोगो ने ताक पर रख दिया और अलगाववादियों की समनांतर सरकार चली और सभी राजनीतिक पार्टियों की गतिविधियाँ तक भी बंद हो गई और यही बहदुर देशभक्त पार्टी थी जो दफ्तर पर सामने ताला लगा कर पिछले दरवाजे से अपना कारोबार करती थी ! अब ऐसे अलगाववाद पर कोई प्रतिक्रिया नहीं ना ही तिरंगा यात्रा और तो और अलगाववादियों ने हिंदी और हिंदी फिल्मो पर रोक लगा रखी है मगर क्या मजाल किसी ब्रांडेड देशभक्त पार्टी के जवान या बूढ़े नेता को  जोश आये हिंदी सेंसर है तो अपने ही लोगो के हाथ ! देशभक्ति में भी जब तक साम्प्रदायिक एंगल ना हो तो वो देशभक्ति भी किस काम की  !
               इनका झंडा एकता का नहीं एकरूपता का है ! क्योंकि एकता विविधताओं, अलग अलग विचारो, अलग सोच, संस्कृति, भाषाओँ, अलग नस्लों और विरोधों एवं सहमतियों के साथ आने और साथ चलते जाने से बनती है एक जैसे तो बिना आत्मा और जीवन के मुर्दा शरीर भी नहीं होते फिर जिन्दा साँस लेते लोग भला एक कैसे हो सकते है ! मगर झूठे और भरमाने वाले नारों से वोट बनाने वाले ये लोग कहाँ समझेंगे की एकता क्या होती है ! एकता यात्रा के नाम पर देश की एकता को खतरे में डालने वाले ये तो यह भी नहीं सोचना कहते कि भारत के साथ आने का फैसला करने के बाद जब पहली बार इसी लाल चौक पर जवाहर लाल नेहरु और शेख अब्दुल्ला ने जनसभा कि थी तो लाखों लोगो ने येही तिरंगा फैहराया था ! आज क्या हुआ कि उसी झंडे के खिलाफ कुछ लोग इकठ्ठा हो रहे है राजनीति कर रहे हैं कुछ तो जरूर इस बीच में गलत हुआ है जिसे ठीक करने सुधारने की जरूरत है ! मैं फिर अपनी बात दुहराता हूँ कि जब राजग सरकार थी और फारूक अब्दुल्ला मुख्यमत्री थे तो इस परम देश भक्त पार्टी ने क्यूँ तिरंगा लाल चौक पर फैहराने की जिद नहीं पकड़ी क्योंकि इनकी देशभक्ति जो मौका देख कर उमड़ती है जानती थी कि दिल्ली में इनकी गद्दी चली जाएगी अब गद्दी से बड़ा राजनेताओं के लिए देश होता नहीं है ! यही बात उमर अब्दुल्ला की भी है जिन्होंने पिछली संसद में बेहद भावुक भाषण देते हुए अपनी धर्मनिरपेक्षता का सीना ठोक कर ऐलान किया मगर वो भूल गए कि पिछली संसद में इन्ही साम्प्रदायिकों की सरकार में वो मंत्री थे ! अब इन पुराने दोस्तों की लड़ाई में देश निशाने पर है इस एकता यात्रा से यात्रा चलाने वाला और रोकने वाला दोनों का फायदा होगा मगर नुकसान गर किसी एक का होगा तो वो केवल देश का होगा ! वोट वालो के वोट जुडेंगें मगर देश बंटेगा !

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