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बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

बातों का मसीहा और बेरूखी की रानी

            देश की राजनीति के युवराज का दौरा फिर से शुरू हो गया और मेरी फ़िक्र भी ! राहुल का किसी का दुःख दर्द बाँटने जाना ऐसा नहीं है कि कोई बुरी बात है और वो भी मेरे अपने प्रदेश उत्तर प्रदेश का जब वो ख्याल करते हैं तो मुझे ख़ुशी ही होनी चाहिए मगर क्या करूँ उनके दर्द बाँटने से बढ़ने वाले दर्द का इतिहास इतना दर्दनाक है कि मेरे फ़िक्र करने की मजबूरी हर कोई समझ सकता है ! शीलू सारिका से मिलकर राहुल सचमुच दर्द से भर उठे और बोला कि यूपी में ये क्या हो रहा है ! दोनों मासूम लड़कियों के दर्द से स्वाभविक है कि किसी भी मानव मन में दर्द और आक्रोश उठेगा ही, राहुल को भी गुस्सा आया ! उन्होंने दोनों पीड़ित लड़कियों को भरपूर साहयता करने का वचन भी दे डाला मगर अफ़सोस तो इस बात का है कि उनके ऐसे साहयता के वचनों का सहारा पकड़ कर तो कई दलित परिवार वर्षो से दिल्ली जाने वाली सड़क पर निगाहे बिछाये बैठें हैं ! हो सकता है कि ऐसे वचनों के पूरा नहीं हो पाने का ठीकरा शायद वो प्रदेश की मायावती सरकार पर फोड़ दे परन्तु उस हरयाणा को क्या कहेंगें जहाँ सरकार भी उन्ही की है और वो वहां भी साहयता का वचन देकर चले आये थे ! आपको मिर्चपुर याद होगा जहाँ के वाल्मीकि परिवार आज भी अपनी सुरक्षा को लेकर कोर्ट कचहरी के चक्कर कट रहे हैं ! मिर्चपुर कांड के फ़ौरन बाद ही राहुल गाँधी वहां घूम आये थे मगर बेचारे युवराज ने प्रदेश में अपनी सरकार होने के बावजूद भी मिर्चपुर के वाल्मीकियों को वचन के आलावा कुछ नहीं दिया ! वैसे उनकी इस अदा में भी एक समाजवादी रुझान साफ दिखाई देता है कि किसी भी प्रदेश में सरकार अपनी हो या परायी वो वचन और आश्वासन के आलावा कुछ नहीं देते और ये उनकी दरियादिली है कि सबसे ज्यादा वचन उन्होंने यूपी को दिए हैं, बेवफा यूपी को जो इतने वचनों के बाद भी एक बार सरकार बनवाने का सुख नहीं दे रही है और दूसरी तरफ उस मायावती को कुर्सी पर चिपकाये हुए है जो ना दुखियो का हाल पूछने आती हैं और ना ही वचन देने !
                  राहुल के वचनों का गवाह ऐसा नहीं है कि यूपी और हरियाणा ही है ! विदर्भ कि कालावती अरे नहीं कलावती आपको याद होगी उसको भी राहुल ने वचन दिया था ! खैर उसने तो वचन का मान नहीं रखा राहुल कि पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ ही परचा दाखिल कर दिया वचन का भी ख्याल नहीं किया अरे बड़े लोगो का तो वचन ही काफी होता है एक जिन्दगी बिताने के लिए ! वो तो गनीमत है कि किसी तरह नाम वापस कराया नहीं तो लेने के देने पद जाते रह रहकर वो वचनों को ही कोसती ! खैर मेरी फ़िक्र इसीलिए भी ज्यादा है कि मेरा प्रदेश वचन देने वालो और लोगो के दर्द पर बेरुखी वालो के बीच फंस कर रह गया है ! राहुल को वचन देते रहने कि लत पड़ गयी है और प्रदेश की मुख्यमंत्री हैं कि बलात्कार पीड़ित लड़की के शहर का दौरा करने के बाद भी पीडिता को देखने की फुर्सत नहीं मिली है ! अब इन दो जनता के हमदर्दों को क्या कहें की एक की पार्टी ने मेरे प्रदेश के लोगो को पांच दशक तक उन्ही नारों और तरीको से बेवकूफ बनाया जिनको उनका युवराज फिर दोहरा रहा है और दूसरी तरफ नई हमदर्द है जो बेरूखी और वचनों के पांच दशक के कीर्तिमान को वह पांच साल में तोड़ देना चाहती हैं ! खैर यह मुख्यमंत्री के शहंशाही अंदाज का शायद यह भी एक पहलू हो मगर मेरा बेचारा प्रदेश तो वचनों के मसीहा और बेरुखी की रानी के बीच फंसकर रह गया ना !

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