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शनिवार, 7 मई 2011

इस आतंक पर क्यूँ दुनिया खामोश है



ओसामा बिन लादेन मारा गया ! अमेरिका की इस कार्यवाही पर हिदुस्तान का पूरा मीडिया और राजनीति किस कदर उत्साहित हो कर अमेरिका की शान में कसीदे पढ़ रही है वह देश की सत्ता की गुलामी पसंदगी का अनूठा और बेमिसाल नमूना है ! इस अमेरिका परस्ती में देश के बड़े बड़े संपादको से लेकर पत्रकार तक आतंक के इस रचनाकार की करतूते भूल गए है, या कहे की तबाही के इस खैरख्वा की लाजवाब साजिशों में ही अपनी जिन्दगी की खुशियों के समझोते की राह देखते है ! 
                                   आतंक के खिलाफ अमेरिकी जंग में वो दर्द दब नहीं सकता जिसको आज अफगानिस्तान के बेगुनाह मासूम बच्चे, औरते, और आदमी बेवजह भुगत रहे हैं ! ७० के दशक के आखिरी सालो में तरक्की का सपना बुनने वाला देश आज सैकड़ों साल पुराने कबायली दौर में पहुँच चूका है ! आतंक के खिलाफ अमेरिकी जंग के पास क्या कोई जवाब है उस औरत के सवाल का जो अस्सी के दशक में स्कूल कालेज की राह पकड़ कर डॉक्टर, अध्यापक या इंजीनियर बनना चाहती थी ! कभी दुनिया की तरक्की से दो चार होने की कोशिश करने वाले जिस देश ने तीस साल पहले हवाओ में मोटरों की गंद को पहचानना सीख लिया था आज      
फिर से उस मुल्क की सवारी गधा है शायद यह अमेरिकी तरक्की की नई इबारत नई भाषा है ! इस अमेरिकी आतंक का गवाह ऐसा नहीं कि अफगानिस्तान अकेला देश है, पडोसी इराक की कहानी इससे भी भयानक और दर्दनाक है ! दो बाप बेटो की सनक और तेल के लिए एक देश का जनून क्या शक्ल ले सकता है इसका सबसे बुरा उदहारण इराक ही है ! शांति और जनवाद के स्वयम्भू निर्यातक एक देश ने कम से १४ लाख लोगो को अपनी तेल की भूख और वैश्विक दादागिरी का शिकार बना डाला और दुनिया के विकास के इतिहास में एक खास मुकाम रखने वाले देश की दुर्दशा पर दुनिया की ख़ामोशी भी हैरान करने वाली और अफसोसजनक है ! पडोसी देशो में इराक के विस्थापितों की बड़ी तादाद अमेरिकी शांति और जनवाद की पोल खोलती है ऐसा शांति और जनवाद जो क्रूरता और बर्बरता को अपनी अच्छाई पर गर्व करने का मौका देता है ! इराक कभी भी उन कट्टरपंथियों का ठिकाना नहीं रहा जो अपनी खातूनो को परदे में रखना चाहते है ! इराक की औरते डॉक्टर, अध्यापिका, इंजीनियर और प्रबंधक सभी पदों पर काम करती थी मगर आज वही औरते अपने बच्चो को स्कूल  
भेजने या खुद बहार निकलने से भी डरती है शायद यही शांति और जनवाद का नया अमेरिकी चेहरा है ! इसके आलावा इराक में अमेरिकी फौजों की ज्यादतियों की भी अनगिनत कहानिया मौजूद है जिसमे लाचार अपंग लोगो के क़त्ल से लेकर मासूम औरतों के बलात्कार तक की मिसाले सामने है ! कई मामलो में जाँच भी चल रही है मगर इसे न जाने कितने मामले है जो जाँच की दस्तक भी नहीं दे पाए ! तेल भंडार रखने वाले अरब दुनिया के सभी मुल्को की कहानी कमोबेश इसी तरह की और ये देश अन्ततोगत्वा अमेरिकी कब्जे की साजिश का शिकार बने हुए है ! अमेरिका ने मुस्लिम कट्टरपंथियों की मानसिकता और कबीलाई जातीयता की खूबियों को समझ उनका इस्तेमाल अपने हितो को पूरा करने के लिए किया है, कही अपनी कठपुतली सरकारे बना कर कही आतंकवाद या तानाशाही के खिलाफ शांति और जनवाद की जंग छेड़कर !
                               अमेरिका का अपना वर्चस्व बनाये रखने का यह नायब फार्मूला केवल अरब दुनिया में ही लागू नहीं हुआ है लातिन अमेरिका से लेकर अफ्रीका, एशिया और पूर्वी यूरोप के कई देश अमेरिका की तबाही की रणनीति के गवाह रहे है और आज भी है कोसोवा और बोस्निया में इस रणनीति ने बर्बरता की सारी हदे पार कर ली जहाँ न सिर्फ मासूम बच्चो को जिन्दा जलाया गया बल्कि उन्हें माँ के गर्भ में भी नहीं बक्शा गया जिनसे हिंदुस्तान के कायरो ने सबक लेकर तथाकथित गुजरात गौरव नरेंद्र मोदी के चेलो ने भी दुहराया ! आतंकवाद को पालने और प्रशिक्षित करने का यह अमेरिकी खेल दुसरे विश्वयुद्ध के बाद से लगातार जारी है मिश्र में मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ कदम ताल करके अमेरिका नासिर पर १९५४ जानलेवा हमला करवाया फिर उसी ब्रदरहुड की साहयता से सीरिया की बाथ पार्टी के वामपंथी गुट को सत्ता से बेदखल करा दिया ! इतिहास के हर पन्ने पर अमेरिकी साजिशो की ऐसी बेहिसाब स्याह इबारते हैं ! निकारागुवा की प्रगतिशील सरकार को पलटने के लिए कोंट्रा आतंकियों की मिसाल दुनिया के सामने है और लातिन अमेरिका में खून खराबे के आलावा कोंट्रा के आतंकियों को ड्रग्स का कारोबार भी अमेरिका ने सिखाया और केवल सिखाया ही नहीं उसके लिए देश के खजाने से धन भी मुहैया कराया ! ऐसे खुलासे कोंट्रा के करीबी सहयोगी पनामा के उप स्वास्थ्य मंत्री और अन्य कई नेताओ ने किये जिसे बाद में अमेरिका के सीनेटर जान केरी की जाँच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में उजागर किया ! अब दुनिया में हर कोने में अपने करतूतों से तबाही मचाने वाले देश से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की उम्मीद करने वाले लोग या तो बेहद नासमझ है या अमेरिकी साजिश के सहयोगी हैं ! अमेरिका एक देश की संप्रभूता का मजाक उड़ाकर लादेन का क़त्ल कर सकता है मगर लश्करे तैयबा के हफीज पर खामोश रहेगा जैश ए मोहम्मद के मसूद अजहर की उसे परवाह नहीं है लखवी और दाउद को वो शायद जनता भी नहीं या मुंबई में मरने वाले हिदुस्तानियो की जान की कीमत ९/११ के मरने वालो से कम है ! इसी तर्ज़ पर चेचन्या का आतंकवाद भी अमेरिका के मन को भाता है और अफ्रीका की ६० प्रतिशत से ज्यादा आतंकवाद और जंग की   शिकार मासूम जनता भी इस देश अमेरिका के लिए कोई मायने नहीं रखती है क्योंकि इस सारी जंग के पीछे अमेरिकी रणनीति ही है ! दुसरे विश्वयुद्ध से लेकर अभी तक अफ्रीका, लातिन अमेरिका, वियतनाम, एशिया के मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया तक तीन करोड़ से ज्यादा बेगुनाह लोग अमेरिकी खुनी हवस का शिकार हो चुके है ! लादेन जैसे खूंखार आतंकवादी हालत के चलते या गुमराह होकर इस खुनी राह पर चले होंगे मगर इस आदतन  खुनी और आतंकवादी साम्राज्य से इतनी हमदर्दी क्यूं आतंक के इस खुनी खेल पर ख़ामोशी क्यूँ !
यह मेरा नहीं इराक, वियेतनाम, निकारागुवा, उगांडा, सोमालिया, इथोपिया, सूडान, कोलम्बिया, पनामा, हांडूरस, बोलीविया, अफगानिस्तान के करोडो मासूम लोगो का सवाल है !

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