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सोमवार, 9 मई 2011

जो है उससे बेहतर चाहिए



महेश राठी
आर्थिक और समाजिक बदलावों के अनुरूप भारतीय राजनीति और लोकतंत्र भी एक व्यापक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। सरकारी लोकपाल विधेयक और जन लोकपाल विधेयक की टकराहट से लोकतंत्र के विकास की यह अनुगूंज स्पष्ट सुनाई देने लगी है। भ्रष्टाचार के मुद्दे से शुरू हुआ राजनीतिक शुचिता का यह संघर्ष बेशक अरब जगत के संघर्षों से अलग हो, मगर इनमें अंतर्निहित समानताओं को समझे बगैर इन बदलावों के राजनीतिक अर्थशास्त्र को समझना मुश्किल होगा।
वास्तव में भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह संघर्ष मानव विकास की एक स्वाभाविक कड़ी है। औद्योगिक युग की इस राजनीतिक व्यवस्था में आई शिथिलता और ठहराव को गति देने और विकसित करने की आवश्यकता ही इन लोकतांत्रिक सुधारों की पटकथा लिख रही है। यह संघर्ष औद्योगिक क्रांति के बदले उत्पादन तरीकों से जन्मी राजनीतिक चेतना के फलस्वरूप यूरोप में शुरू हुए पुनर्जागरण के पुनरावृत्ति की तरह है, जिसने 18वीं सदी के अंतिम दशकों में अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांति के माध्यम से आजादी की घोषणा का इतिहास रच दिया था। यह औद्योगिक क्रांति की मशीनी दुनिया से आगे ज्ञान आधारित सूचना समाज के बदले हुए सामाजिक, सांस्कृतिक एवं जीवन मूल्यों का उत्तर-आधुनिक, उत्तर-औद्योगिक युग है। इस उत्तर-औद्योगिक युग के समाज और राजनीति की जहां अपनी नई परिभाषाएं हैं, वहीं राजनीति और समाज को बदलने की नई शैली भी है। सूचना युग के इस नए पुनर्जागरण के नारे और नायकों में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में विविधताएं हो सकती हैं, परंतु इनमें विशेषाधिकार एवं सुविधासंपन्न शासक वर्ग के प्रति विद्रोह की समानता है। दरअसल प्रभुत्ववाद और केंद्रीकरण औद्योगिक विकास की स्वाभाविक विशेषताएं हैं, जो प्रतिनिधि लोकतंत्र एवं नौकरशाही की प्रभुत्ववादी व केंद्रीकृत सत्ता के रूप में इस युग में भी परिलक्षित होती हैं। लोकतंत्र में सत्ता प्राप्ति के साथ उत्तरदायित्व भी बढ़ता है, लेकिन अगर लोकतंत्र में समयानुकूल विकास न हो, तो उत्तरदायित्व की यह भावना खत्म होती जाती है। ऐसा नहीं है कि लोकतंत्र की इस शिथिलता का केवल सत्ताधारी दल ही शिकार हैं, बल्कि सभी राजनीतिक दल इसके शिकार हैं।
औद्योगिक युग की राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती देने वाले ज्ञान आधारित सूचना युग की अपनी विशेषताएं हैं, जो कई अर्थों में पिछले दौर से अलग हैं। सूचना प्रौद्योगिकी ने स्थापित अवधारणाओं को बदलते हुए जहां समय और स्थान में एक सिकुड़न पैदा की, वहीं कार्य स्थान और उसकी प्रकृति में भी आधारभूत परिवर्तन किया है। उत्पादन की नई प्रक्रिया में औद्योगिक युग का सर्वहारा पर्यवेक्षक की भूमिका में आ रहा है, तो बड़े-बड़े कारखानों में होनेवाला उत्पादन नए युग में व्यक्ति केंद्रित हो रहा है। अब बड़े कारखाने और उत्पादन केंद्र महज एसेंबलिंग का ठिकाना भर बनकर रह गए हैं। उत्पादन के औजारों और तरीकों में बदलाव का प्रभाव समाज, संस्कृति और राजनीति पर भी व्यापक रूप से दिखाई देना शुरू हो गया है।
वर्तमान प्रतिनिधि लोकतंत्र वाला समाज जहां निर्धारित लक्ष्यों वाला प्रतिक्रियात्मक समाज है, वहीं नया सूचना समाज प्रोएक्टिव और प्रयोगात्मक है। वह लीक पर चलते हुए अनुशासन के चाबुक से पिटने की अपेक्षा गलतियां करने और उन्हें समझते हुए गलतियों में सुधार की संभावनाओं वाला समाज है। यह स्थापित वर्जनाओं के टूटने और आजादी के नए मानदंडों और संस्थानों के बनने का दौर है। संक्रमण के हर दौर की तरह इस दौर का नेतृत्व भी नए युग के नवोदित मध्यवर्ग के पास ही है। यही कारण है कि अन्ना हजारे का जितना समर्थन सड़क पर था, उससे कहीं ज्यादा इंटरनेट पर दिखाई पड़ा। यही स्थिति अरब देशों के जास्मिन रेवोल्यूशन में भी दिखाई दी, जिसकी शुरुआत उस टूनीशिया से हुई, जहां सबसे बड़ा सूचना समृद्ध नवोदित मध्य वर्ग है। मानव विकास का इतिहास अभी उस दौर में नही पहुंचा है, जहां वर्गहीन, दलहीन राजनीति की कल्पना की जा सके। इसीलिए एक बेहतर राजनीतिक विकल्प ही वर्तमान कलुषित व्यवस्था को बदल सकता है। बगैर विकल्प के पूरी राजनीति को खारिज करना अराजकतावादी तर्क से ज्यादा कुछ नहीं होगा।
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