रामलीला मैदान में बाबा का हठयोग आखिरकार शुरू हो ही गया ! गाल फुलाने और पेट पिचकने का अंतर्देशीय कारोबार करने वाले बाबा का भ्रष्टाचार किसी सौतियाँ डाह सरीखा है जिसकी नीव अन्ना ने जंतर मंतर पर बैठकर कर डाली थी ! पहले बाबा ने अपना व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य २०१४ में निर्धारित किया था, परन्तु हाय रे अन्ना हजारे तुमने तो जंतर मंतर पर बैठकर बाबा के मुद्दे को ही चुरा लिया ऐसे में बचपन से जल्दबाज बाबा ने अपने २०१४ के अभियान को २०११ में ही शुरू कर डाला ! अब बाबा की इस जल्दबाजी को समझा जा सकता है ! मेरी दिक्कत भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ाई से नहीं है उससे तो लड़ाई होनी चाहिए, भ्रष्टाचार ख़त्म भी होना चाहिए और भ्रष्टाचारियो को जेल भी जाना चाहिए ! भ्रष्टाचार पर रोक के लिए प्रभावी कानून भी बनाया जाना चाहिए यह राजनीतिक शुचिता और देश के विकास के लिए बेहद जरूरी है ! मेरा तकलीफ इस सवाल को लेकर है की भ्रष्टाचार मिटाने की इस लड़ाई को आगे कौन बढ़ाएगा कौन लडेगा और रामलीला मैदान के तमाशे को देख कर एक और सवाल खड़ा हो गया है कि इस लड़ाई का मूड क्या होगा ! क्या दस सर लगा कर मैदान में घूमने वाला मसखरा किस्म का आदमी इस लड़ाई का होरो होगा या मानसिक संतुलन को चूका हनूमान का धरती पर अकेला अधिकृत संदेशवाहक या फिर भगत सिंह का हुलिया बनाकर दुष्यंत कि एतिहासिक रचना को चिल्ला चिल्ला कर पैरोडी बनाने वाला बहरूपिया इस लड़ाई की कमान संभालेगा ! रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार विरोध के सैकड़ो नमूने मिल जायेंगे ! इस हल्के गैर गंभीर आन्दोलन के नतीजे क्या होंगे शायद इस लड़ाई के ये नायक नहीं जानते है यदि भ्रष्टाचार विरोध का यह तमाशा इसी तरीके और गिनती में बढ़ता रहा तो वो दिन दूर नहीं होगा जब भ्रष्टाचार इस विरोध को ही अपना सुरक्षा कवच बना लेगा !
इसके आलावा भी बाबा के इस आन्दोलन से कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं, सबसे पहले और सबसे बड़ा सवाल साध्वी ऋतम्भरा के आन्दोलन में जुड़ने से है ! बाबरी विध्वंश की एक दोषी जो कल तक गाँधी और अल्पसंख्यको के खिलाफ अपने विषवमन के लिए कुख्यात थी और उक्त महिला की इसी विशेषता ने उसे बीजेपी का स्टार प्रचारक बना डाला ! अपने नफरत से भरे भाषणों में अपशब्दों की हद तक जाने वाली तथाकथित साध्वी से क्या हम भ्रष्टाचार से लड़ने की आशा करेंगे ! हालाँकि देश में मीडिया के एक बड़े नाम प्रभु चावला को मेने एक चेनल पर बाबा के इस भ्रष्टाचार विरोध और साध्वी की उपस्थिति की वकालत करते सुना ! वैसे इस रामलीला मैदानी लीला का समर्थन मीडिया का एक इमानदार आदमी कर रहा है और प्रभु चावला अपने साथ बरखा और नीरा राडिया को भी ले ले तो उनके समर्थन में मजबूती आ जाएगी ! मगर साध्वी और बाबा रामदेव की इस जुगलबंदी के समर्थको को समझना चाहिए कि साम्प्रदायिकता से बड़ा भ्रष्टाचार और अपराध कोई दूसरा होता नहीं है ! भ्रष्टाचारी तो केवल एक अपराध करता है मगर साम्प्रदायिक आदमी अपराधी भी होता है और भ्रष्टाचारी भी ! साम्प्रदायिकता ऐसा मानवीय अपराध है जो अपने सहयोगी साम्प्रदायिक के भ्रष्टाचार पर खामोश रहने और साम्प्रदायिक स्वार्थ के लिए जमीं तैयार करता है और न सिर्फ भ्रष्टाचार पर बल्कि हत्याओं और बलात्कारो को करवाने और छुपाने से भी गुरेज नहीं करता है ! यहाँ तक कि इन सब कुकर्मो के लिए आगे बढ़कर योजनाये बनवाने का कम करता है ! अब मुझे हैरानी होती है साध्वी और बाबा की जुगलबंदी के समर्थक लोगो के इस मक्कार तर्क पर की साध्वी पर एतराज़ क्यों और समर्थक की प्रष्ठभूमि नहीं देखनी चाहिए ! ऐसे लोगो को समझना चाहिए कि आपकी प्रष्ठभूमि ही आपके आज का आइना होती है और वो भी नफरत कि राजनीति करने वाले लोगो की प्रष्ठभूमि जो मानवता, सौहाद्र और बंधुत्व की जन्मजात दुश्मन होती है ! जिसके लिए अपनी नफरत की सियासत के आलावा सब कुछ एक औजार से ज्यादा कुछ हो ही नहीं सकता है भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई भी ! यदि बिना प्रष्ठभूमि जाने इसी लीलाओ को जनसमर्थन मिलता रहा तो देश के सभी सुविधासम्पन्न साम्प्रदायिक और अपराधी अपने संसाधनों के बल पर देश के राजनीतिक तन्त्र को तहस नहस करके अराजकता का राज कायम कर डालेंगे !
इसके आलावा बाबा का ईमानदारी और फकीरी का तर्क भी मजेदार है ! बाबा कहते है कि उनके नाम पर देश दुनिया में न एक इंच जमीं है और न ही कोई बैंक खाता है ! व्यवस्था परिवर्तन के आधुनिक आलमबरदार जरा शुक्र मनाएं इस देश की कर व्यवस्था का जो सिर्फ आमदनी पर कर लेती है जिस दिन देश में हर आदमी के खर्च का हिसाब रख कर कर लगाना शुरू कर दिया उस दिन देश के सभी गरीब साधुओ की फकीरी की असलियत खुल जाएगी ! आप चार्टेड जहाज से घूमेंगे टापू रखेंगे दुनिया के कई मुल्को में आपकी सम्पति होगी फिर भी रहेंगे फकीर के फकीर ! वैसे देश का हर आदमी इस फकीरी का आनंद लेना चाहेगा पांच सितारा जिन्दगी के मजे और गरीबी के दावे की योग्यता एकदम सुरक्षित बिलकुल बेदाग ! ये दोहरा मापदंड गेरुवे रंग के नीचे या सफेदी के पीछे ज्यादा दिन छुप नहीं सकता है ! मैंने कई बार सोचा की बाबा के आश्रम में रह कर योगाभ्यास सीख आऊ मगर सात सौ रूपये रोज़ का कमरा मेरे बस की बात नहीं थी इसीलिए दिल्ली में एक योग टीचर से योग सीखा ! इसके आलावा आजीवन सदस्यता की बात तो में आजीवन नहीं सोच सकता, कम से कम ईमानदारी से जीते तक तो नहीं ! मेरे करीबी लोगो में जिन्हें मैं जनता हूँ कोई बाबा के योगपीठ का आजीवन सदस्य नहीं है ! क्योंकि मेरे परिचय में अधिकतर लोग इमानदार या आंशिक रूप से ईमानदारी गवाएं लोग ही है ! अब बाबा का अभियान किसके धन और किसके मन पर टिका है बाबा ही ज्यादा जानते हैं ! कम से कम दिल्ली के डेढ़ लाख बेघरो का तो इससे कुछ फायदा होने से रहा, न ही विदर्भ के आत्महत्या करते की किसानो का दर्द बाबा की लीला हारेगी क्योंकि दोनों के लिए बाबा ने आज तक कोई कार्यक्रम पेश नहीं किया है न अपने योगपीठ में उनके लिए मुफ्त कमरों का प्रावधान किया है ! तो है, ठेठ शहरी मध्यवर्गीयो के बाबा महानगरो की उस गरीब चालीस फीसदी आबादी का ही जिक्र कभी करो जो झुग्गियो में रहती है, सस्ते राशन, साफ़ पानी, सस्ते केरोसिन, सस्ती रौशनी, अच्छी शिक्षा, टिकाऊ रोज़गार के लिए और पुलिस के आतंक और अर्ध अपराधो की मार से बचते हुए जीती है ! क्या गाल फूलने पेट पिचकने के तुम्हारे कारोबार में तुम्हारे अपने राज्य के मिर्चपुर वाले वाल्मीकियो के जले घरो का कोई इलाज़ नहीं है ! तुम उन्हें बचाने और बसने वहां क्यों नहीं गए ! है परमपूज्य साधू आत्मा, क्या तुम्हारी भी कोई जाति है जिसका पक्ष लेना निर्मम हत्याओ से ज्यादा जरूरी था !
ये ठीक है की वर्तमान राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक जवाबदेही में विफल रहे है और वो अपनी साख खो चुके है साथ ही इस राजनीतिक माहौल को दुरुस्त किया जाना चाहिए ! मगर हे, मीडिया प्रेमी साधो मै एक जागरूक हिन्दुस्तानी तुमसे पूछना चाहता हूँ कि आखिर तुम्हारी राजनीति क्या है ! आजकल चर्चा जोरो पर है कि आरएसएस बीजेपी कि विफलता से परेशान होकर नए राजनीतिक विकल्प पर काम कर रही है ! कही आरएसएस के पुराने बौद्धिक गोविन्दाचार्य किसी नई संघी रणनीति के तहत तो बाबा के इस आन्दोलन के सूत्रधार और चाणक्य नहीं बन बैठे है और इसीलिये बीजेपी की पुरानी स्टार प्रचारक नए अंदाज़ में बाबा के निष्पक्ष और निर्दलीय आन्दोलन से आ जुडी हैं !
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