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शनिवार, 18 जून 2011

जिन्दा लोकतंत्र !


आम औ खास 
यूँ, सुनते हैं सबके सवाल वो 
शहर में इशारा ये,
तो क्या ?
कि चुप रहिये !

उन्हें सवालों से डर कैसा,
क्या करें, मगर 
इस दस्तूर को 
सवाल ?
सिर्फ संसद में,
सड़क पर बस चुप रहिये !

कहने को,
उनके हलक में भी है
इन्कलाब ?
क्या करे 
गले कि इस अटकन को 
बस और बस चुप रहिये !

किसी के रौंदने से मरता,
कभी का मर जाता 
जिन्दा हूँ अभी तक ?
थोडा रवायत पर टिका 
बस बस और बस कि चुप ही रहिये !

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