महेश राठी
चुनाव आयोग ने असाधारण ऐतिहासिक कार्रवाई करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के खिलाफ राष्ट्रपति को एक शिकायती पत्र लिख डाला है। राष्ट्रपति ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए आगे की कार्रवाई के लिए चुनाव आयोग की शिकायत को प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दिया। कुल मिलाकर इस प्रकरण ने उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति का पर्दाफाश कर दिया है। दरअसल, केंद्रीय मंत्री और संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग के बीच टकराव के लिए कांग्रेस भी जिम्मेदार लगती है। क्योंकि हाल के घटनाक्रमों से लगता है कि कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक के लिए सलमान खुर्शीद को मुस्लिमों के नए नायक और हमदर्द के रूप में पेश कर रही है। बहरहाल, इस पूरे प्रकरण में एक तरफ मुस्लिम हितों के लिए फांसी पर चढ़ जाने की फिल्मी संवाद अदायगी है तो भाजपा के सक्रिय विरोध की राजनीतिक स्टंटबाजी भी। उस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर कि यह प्रशासनिक नहीं, सियासी मामला है, खुर्शीद के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने की आशंकाओं और कांग्रेस की निगाह में इस मामले की रणनीतिक अहमियत को रेखांकित कर दिया है। इस मामले की शुरुआत 8 जनवरी को फर्रुखाबाद में सलमान खुर्शीद के दिए एक बयान से हुई। सलमान खुर्शीद ने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस जीतती है तो पिछड़े वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण में अल्पसंख्यक उप-कोटे को 4.5 प्रतिशत से बढ़ाकर नौ प्रतिशत कर देगी। असल में फर्रुखाबाद सदर की मुस्लिम बहुल सीट से सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद उम्मीदवार हैं, जिनके चुनाव प्रचार में ही उन्होंने अल्पसंख्यक आरक्षण बढ़ाने का बयान दे डाला था। इसकी शिकायत भाजपा ने चुनाव आयोग से की। इस शिकायत को संज्ञान में लेते हुए चुनाव आयेग ने 9 फरवरी को खुर्शीद को फटकार लगाते हुए ऐसी हरकत दोबारा न दोहराने की नसीहत दे डाली। खुर्शीद ने फिर भी अपना रवैया नहीं बदला और बयानबाजी जारी रखी। खुर्शीद ने इससे भी आगे बढ़कर चुनाव आयोग को चुनौती देने के अंदाज में कह दिया किया कि चाहे मुझे फांसी पर लटका दो, मैं गरीब मुसलमानों के पक्ष में आवाज उठाता रहूंगा। अभी तक पिछड़े वर्ग के लिए निर्धारित आरक्षण में अल्पसंख्यकों की भागीदारी नौ प्रतिशत बढ़ाने की वकालत करने वाली राजनीति को अचानक सिर्फ मुस्लिम अल्पसंख्यकों तक सीमित करके कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जाहिर कर दिया है। कांग्रेस और सभी राजनीतिक दल राष्ट्रीय राजनीति में उत्तर प्रदेश और प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं के वोट की अहमियत से भलीभांति परिचित हैं। उत्तर प्रदेश में 18 से 20 प्रतिशत के करीब मुस्लिम मतदाताओं की संख्या राज्य की कम से कम 165 सीटों के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। प्रदेश में सपा और बसपा के अपने-अपने निश्चित वोट बैंक हैं, लेकिन कांग्रेस की विडंबना यह है कि न तो उसका वहां कोई निश्चित वोट बैंक है और न ही मजबूत सांगठनिक आधार। बड़ी मुस्लिम आबादी वाले इस राज्य में कोई सर्वमान्य मुस्लिम चेहरा भी कांग्रेस के पास नहीं है, जो मुस्लिम आबादी को अपनी ओर खींचकर उसे निर्णायक ढंग से वोटों में बदल सके। ऐसे नेता की तलाश और जरूरत का पता दिग्विजय सिंह के उस बयान से भी चल जाता है, जिसमें उन्होंने सपा से नाराज चल रहे आजम खां से बात करने की इच्छा जताई थी। इस मामले में कोई बात बनती न देखकर पार्टी ने अगली रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इसी के तहत अगला कांग्रेसी दांव बाटला हाउस पर सलमान खुर्शीद द्वारा सोनिया गांधी के भावुक हो जाने के संबंध वाला दिया गया बयान था। सलमान खुर्शीद और कांग्रेस अच्छी तरह चुनाव आयोग की सीमाओं और उस पर अपनी पकड़ को जानते हैं। इसी कारण वह आयोग से ऐसा टकराव मोल लेने के मूड में हैं, जिसमें घाटा कम से कम हो और राजनीतिक फायदे की संभावना ज्यादा हो। यदि कांग्रेस का यह दांव चला तो सलमान खुर्शीद कौम के लिए कुर्बानी देने वाले एक मुस्लिम चेहरे के रूप में उभरकर पार्टी के लिए मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कर सकते हैं। बहरहाल, मुस्लिम आरक्षण की यह राजनीति लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम करने वाली संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने के अलावा कुछ नहीं करेगी, जो आखिरकार भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होगा।
चुनाव आयोग ने असाधारण ऐतिहासिक कार्रवाई करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के खिलाफ राष्ट्रपति को एक शिकायती पत्र लिख डाला है। राष्ट्रपति ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए आगे की कार्रवाई के लिए चुनाव आयोग की शिकायत को प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दिया। कुल मिलाकर इस प्रकरण ने उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति का पर्दाफाश कर दिया है। दरअसल, केंद्रीय मंत्री और संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग के बीच टकराव के लिए कांग्रेस भी जिम्मेदार लगती है। क्योंकि हाल के घटनाक्रमों से लगता है कि कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक के लिए सलमान खुर्शीद को मुस्लिमों के नए नायक और हमदर्द के रूप में पेश कर रही है। बहरहाल, इस पूरे प्रकरण में एक तरफ मुस्लिम हितों के लिए फांसी पर चढ़ जाने की फिल्मी संवाद अदायगी है तो भाजपा के सक्रिय विरोध की राजनीतिक स्टंटबाजी भी। उस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर कि यह प्रशासनिक नहीं, सियासी मामला है, खुर्शीद के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने की आशंकाओं और कांग्रेस की निगाह में इस मामले की रणनीतिक अहमियत को रेखांकित कर दिया है। इस मामले की शुरुआत 8 जनवरी को फर्रुखाबाद में सलमान खुर्शीद के दिए एक बयान से हुई। सलमान खुर्शीद ने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस जीतती है तो पिछड़े वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण में अल्पसंख्यक उप-कोटे को 4.5 प्रतिशत से बढ़ाकर नौ प्रतिशत कर देगी। असल में फर्रुखाबाद सदर की मुस्लिम बहुल सीट से सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद उम्मीदवार हैं, जिनके चुनाव प्रचार में ही उन्होंने अल्पसंख्यक आरक्षण बढ़ाने का बयान दे डाला था। इसकी शिकायत भाजपा ने चुनाव आयोग से की। इस शिकायत को संज्ञान में लेते हुए चुनाव आयेग ने 9 फरवरी को खुर्शीद को फटकार लगाते हुए ऐसी हरकत दोबारा न दोहराने की नसीहत दे डाली। खुर्शीद ने फिर भी अपना रवैया नहीं बदला और बयानबाजी जारी रखी। खुर्शीद ने इससे भी आगे बढ़कर चुनाव आयोग को चुनौती देने के अंदाज में कह दिया किया कि चाहे मुझे फांसी पर लटका दो, मैं गरीब मुसलमानों के पक्ष में आवाज उठाता रहूंगा। अभी तक पिछड़े वर्ग के लिए निर्धारित आरक्षण में अल्पसंख्यकों की भागीदारी नौ प्रतिशत बढ़ाने की वकालत करने वाली राजनीति को अचानक सिर्फ मुस्लिम अल्पसंख्यकों तक सीमित करके कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जाहिर कर दिया है। कांग्रेस और सभी राजनीतिक दल राष्ट्रीय राजनीति में उत्तर प्रदेश और प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं के वोट की अहमियत से भलीभांति परिचित हैं। उत्तर प्रदेश में 18 से 20 प्रतिशत के करीब मुस्लिम मतदाताओं की संख्या राज्य की कम से कम 165 सीटों के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। प्रदेश में सपा और बसपा के अपने-अपने निश्चित वोट बैंक हैं, लेकिन कांग्रेस की विडंबना यह है कि न तो उसका वहां कोई निश्चित वोट बैंक है और न ही मजबूत सांगठनिक आधार। बड़ी मुस्लिम आबादी वाले इस राज्य में कोई सर्वमान्य मुस्लिम चेहरा भी कांग्रेस के पास नहीं है, जो मुस्लिम आबादी को अपनी ओर खींचकर उसे निर्णायक ढंग से वोटों में बदल सके। ऐसे नेता की तलाश और जरूरत का पता दिग्विजय सिंह के उस बयान से भी चल जाता है, जिसमें उन्होंने सपा से नाराज चल रहे आजम खां से बात करने की इच्छा जताई थी। इस मामले में कोई बात बनती न देखकर पार्टी ने अगली रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इसी के तहत अगला कांग्रेसी दांव बाटला हाउस पर सलमान खुर्शीद द्वारा सोनिया गांधी के भावुक हो जाने के संबंध वाला दिया गया बयान था। सलमान खुर्शीद और कांग्रेस अच्छी तरह चुनाव आयोग की सीमाओं और उस पर अपनी पकड़ को जानते हैं। इसी कारण वह आयोग से ऐसा टकराव मोल लेने के मूड में हैं, जिसमें घाटा कम से कम हो और राजनीतिक फायदे की संभावना ज्यादा हो। यदि कांग्रेस का यह दांव चला तो सलमान खुर्शीद कौम के लिए कुर्बानी देने वाले एक मुस्लिम चेहरे के रूप में उभरकर पार्टी के लिए मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कर सकते हैं। बहरहाल, मुस्लिम आरक्षण की यह राजनीति लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम करने वाली संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने के अलावा कुछ नहीं करेगी, जो आखिरकार भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होगा।
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