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शुक्रवार, 18 मई 2012

जन आकांक्षा और कट्टरपंथी महत्वाकांक्षा

अरब जगत 
महेश राठी


बहुरंगी जनवादी क्रान्तियों के रंग में रंगा अरब अब मोरक्को से लेकर अफगानिस्तान तक एक अंनत अशान्ति और संघर्ष की भूमिका में बदल गया है। आजादी, जनवाद, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता के लुभावने नारों से शुरू हुए जन आंदोलनों की परिणति कट्टरपंथी इस्लामिक शक्तियों के राजनीतिक प्रभुत्व में हो रही है। ट्यूनीशिया के बाद मिस्र, लीबिया और बाकी अरब दुनिया में लगातार कट्टरपंथी राजनीति काबिज हो रही है। अरब देशों की जनवादी आकांक्षाओं के साथ एकजुटता दिखाने वाली कट्टरपंथी ताकतों में सबसे संगठित और सक्रिय मुस्लिम ब्रदरहुड ने लगातार जनवादी और धर्मनिरपेक्ष होने के दावे किए हैं परन्तु अरब दुनिया के इतिहास में हाल तक अपनी विवादास्पद भूमिका के कारण विवादित रहा यह संगठन चाहे कितना ही जनवादी और आधुनिक होने का दावा करे, मगर यह निर्विवाद है कि उसकी आधुनिकता उसकी साम्प्रदायिक संकीर्णता का मुखौटा भर है। अब तक मुस्लिम ब्रदरहुड की धर्मनिरपेक्षता से लेकर लैंगिक समानता की परिभाषाओं और इस्लामिक शरीया कानून पर आधारित अलग इस्लामिक अरब दुनिया के लिए प्रतिबद्धताओं में कुछ भी नहीं बदला है। अब मुस्लिम ब्रदरहुड की प्रतिबद्धताओं और अरब दुनिया की नवोदित मध्यम वर्गीय आकांक्षाओं का विरोधाभासी संबध जहां मध्यम वर्ग को उसके महत्वाकांक्षी क्रान्ति के सपने के चोरी हो जाने के अहसास से भर रहा है, वहीं कट्टरपंथी महत्वाकांक्षाओं से टकराव की नई जमीन भी तैयार कर रहा है। पिछले दिनों इस टकराव और नवोदित जनवाद की असहिष्णुता उस समय उजागर हो गई जब उन्होंने ट्यूनीशिया में कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय पर आक्रमण किया और शिया संप्रदाय के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया। जनवादी आकांक्षा और कट्टरपंथी महत्वाकांक्षाओं का यह नया संघर्ष मध्यपूर्व के लिए नई अस्थिरता, नई रचनात्मक तबाही का दौर शुरू कर रहा है। ऐसा दौर, जिसमें धर्मांधता की तबाही भी है और जनवाद स्थापना की रचनात्मक कोशिश भी। रचनात्मक तबाही पर आधारित नये या वृहत्तर मध्यपूर्व की यह संकल्पना अनायास या स्वाभाविक घटना भर नहीं बल्कि बरसों पहले तैयार एंग्लों अमेरिकन रणनीति का क्रियान्वयन है जिसकी सार्वजनिक अभिव्यक्ति पश्चिमी रणनीतिकारों द्वारा गाहे-बगाहे होती रही है। 2006 में तेल अबीब में अमेरिकी विदेश सचिव कोंडोलिजा राइस ने इस नई वृहत्तर मध्यपूर्व की संकल्पना को प्रभावी ढंग से दुनिया के सामने पेश किया। राइस द्वारा घोषित नये मध्यपूर्व की योजना के केन्द्र में एंग्लो अमेरिकन इस्रइली सैनिक और रणनीतिक भूमिका ही थी। मोरक्को से लेकर अफगानिस्तान तक अशान्ति, अस्थिरता और हिंसा में डूबे नए मध्यपूर्व की वाशिंगटन में तैयार यह परियोजना सबसे पहले राइस ने तेल अबीब में सार्वजनिक की थी। विडम्बना यह है कि विकास की भूमंडलीय अवधारणा के रचयिता और दुनिया के कंजव्रेटिव राजनीतिक चिंतकों की मध्यपूर्व के संसाधनों एवं राजनीति पर प्रभुत्व जमाने की इस नई ‘रचनात्मक तबाही’ या ‘रचनात्मक अस्थिरता’ का मुख्य आधार वही जनवादी नारे हैं, जिनकी गूंज मोरक्को से लेकर अफगानिस्तान तक आज पूरे नए मध्यपूर्व में सुनी जा रही है। अमेरिकी विश्लेषक विलियम इंग्डालह 7 फरवरी 2011 को प्रकाशित अपने आलेख ‘ मिस्र क्रान्ति: एक रचनात्मक तबाही’ में इस योजना को रेखांकित कर चुके हैं। दरअसल मुस्लिम ब्रदरहुड जहां इस एंग्लो अमेरिकन रणनीति का पुराना औजार रहा है, वहीं जनवाद के लिए अरब देशों में सक्रिय गैर सरकारी संगठनों से भी अमेरिकी संगठनों और प्रशासन के करीबी रिश्ते रहे हैं। अमेरिका में नेशनल ऐंडोवमेंट फॉर डेमोक्रेसी नामक संगठन और फ्रीडम हाउस का उपयोग अरब दुनिया में जनवादी आंदोलनों को मजबूत करने के लिए किया गया। अरब दुनिया में जनवाद के इन आंदोलनकारी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित और प्रेरित करने का काम करने में उपरोक्त अमेरिकी संगठन और वाशिंगटन स्थित फ्रीडम हाउस की अहम भूमिका रही है। यही कारण था कि ऐसे ही जनवाद चाहने वाले मिस्री प्रतिनिधिमंडल की मेजबानी मई 2009 में स्वयं हिलेरी क्ंिलटन ने फ्रीडम हाउस में की थी। अरब में जनवाद के लिए सक्रिय गैर-सरकारी संगठनों और अमेरिकी प्रशासन की यह जुगलबंदी केवल मिस्र तक सीमित नहीं है। इसके तार यमन, सीरिया, इराक, जॉर्डन और सऊदी अरब सहित पूरे अरब जगत में ही नहीं फैले हैं बल्कि नेशनल ऐंडोवमेंट फॉर डेमोक्रेसी का यह जनवादी अभियान लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशिया सहित पूरे संसार में जारी है। प्रभुत्व कायम करने की एंग्लो अमेरिकन रणनीति में नेशनल ऐंडोवमेंट फॅार डेमोक्रेसी की सार्थकता संगठन के पहले मुखिया एलेन विंस्टिन के एक बयान से उजागर हो जाती है। विंस्टिन ने 1991 में एक साक्षात्कार में कहा था कि आज की दुनिया में एनईडी की वही भूमिका और काम है जो आज से 25 साल पहले सीआईए का था। एंग्लो अमेरिकी रणनीति में मुस्लिम ब्रदरहुड की हमेशा से अहम भूमिका रही है। पचास के दशक में मुस्लिम ब्रदरहुड का उपयोग घोर साम्राज्यवाद विरोधी मिस्र सरकार को गिराने के षडयंत्र और राष्ट्र प्रमुख नासिर की हत्या के प्रयास में किया गया। इसके बाद मुस्लिम ब्रदरहुड को मिस्र में प्रतिबंधित करते हुए देश से बेदखल कर दिया गया। उसके बाद ब्रदरहुड का ठिकाना सीरिया बना जहां उसने अस्सी के दशक में वाम रुझान वाली बाथ पार्टी को वर्तमान दक्षिणपंथी आकार देने में अहम भूमिका अदा की। अलकायदा से लेकर हिज्जबुल्लाह तक दुनिया के दुर्दांत आतंकी संगठनों की स्थापना में मुस्लिम ब्रदरहुड और सीआईए के गठजोड़ की भूमिका सर्वविदित है। आज अरब देशों में मुस्लिम ब्रदरहुड की मजबूत शाखाएं कट्टरपंथी रुझानों को हवा दे रही हैं। मजे की बात यह है कि तमाम आलोचनाओं के बावजूद अमेरिका और मुस्लिम ब्रदरहुड का संबंध कायम है। अमेरिका के खिलाफ सभी तरह की बयानबाजी और अभियान के बावजूद अमेरिका समर्थित ईराक की संयुक्त गठबंधन सरकार में मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता तारिक अल हाशिमी उप राष्ट्रपति हैं। 2010 में इसी संगठन के बड़े नेता अल जवादेर ने अमेरिका की यात्रा की थी जो पूरी तरह से अमेरिकी प्रशासन द्वारा प्रायोजित बतायी गयी। इसके अलावा 2011 में मिस्र में अमेरिकी राजदूत ने भी मुस्लिम ब्रदरहुड के मिस्र स्थित मुख्यालय में जाकर संगठन के नेतृत्व से मुलाकात एवं बातचीत की। दरअसल अमेरिकी रणनीतिकारों की यही विषेशता है कि वो दुनिया के बदलते मिजाज और समीकरणों से भी अपने हितों की रक्षा की योजनाएं तैयार कर लेते हैं चाहे उसके लिए बेशक आजादी और जनवाद की आकांक्षाओं का सहारा लेना पड़े या किसी देश की क्रान्ति की आत्मा का रंग ही क्यों न चुराना पड़े।

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