महेश राठी
रोजगार की तलाश में देश छोड़ने को विवश प्रवासी मजदूरों को अक्सर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस संदर्भ में अंगोला में फंसे 1200 भारतीय श्रमिकों की भी ऐसी ही दर्दनाक कहानी है। इन भारतीय कामगारों की दयनीय स्थिति वास्तव में दुनिया भर में फैले भारतीय प्रवासी मजदूरों के बदतर हालात को बताता है। बगैर पासपोर्ट और वीजा के बडी संख्या में अधर में लटके इन भारतीय मजदूरों की हालत का पता जब दुनिया को चला तो सब हैरान रह गए। मध्य पूर्व और अफ्रीका के कई देशों में ऐसे असहाय भारतीय प्रवासियों की असंख्य दर्दनाक कहानियां हैं जो भारतीय दूतावासों की संवेदनहीनता के कारण अभी तक अज्ञात ही हैं। इस घटना की सबसे बडी त्रासदी यह है कि अंगोला की राजधानी से 300 किलोमीटर दूर सूंबे नामक कस्बे के सीमेंट प्लांट में फंसे इन भारतीय श्रमिकों की दास्तान मीडिया और नेताओं के कारण चर्चा का विषय तो बन गई परंतु अंगोला में स्थित भारतीय दूतावास को वहां फंसे अपने देश के 1200 नागरिकों की दयनीय हालत का पता नहीं चल पाया। इन मजदूरों में आंध्र प्रदेश, गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों के कामगार शामिल थे जिनके लिए गुजरात सरकार, बिहार सरकार और हैदराबाद में भाकपा महासचिव सुधारक रेड्डी ने अपने स्तर पर आवाज उठाया और केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की। वास्तव में यह घटना रोजगार की तलाश में विदेशों का रुख करने और वहां भारतीय प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा को तो रेखांकित करती ही है, साथ ही कबूतरबाजी के उस नेटवर्क को भी उजागर करती है, जो विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर लोगों को येन-केन-प्रकारेण विदेश में धकेल कर निश्चिंत हो जाता है। अंगोला में रोजगार की तलाश में पहुंचे इन श्रमिकों में बड़ी संख्या में वह लोग थे, जो पर्यटन वीजा पर अंगोला गए थे। वीजा की अवधि समाप्त होने पर इनके पयर्टन वीजा को वर्क वीजा में परिवर्तित करने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई जो खासी लंबी प्रक्रिया थी और उसमें छह महीने तक का समय लग सकता था। इस अवधि में उनको आसानी से कोई काम भी मिल पाना कठिन था और वह वापस अपने देश भी नहीं आ सकते थे, क्योंकि उनका पासपोर्ट भी जब्त हो चुका था। स्वाभाविक है, ऐसी स्थिति में यह भारतीय बेरोजगार और असहाय हो चुके थे। इसके आलावा एक दूसरी स्थिति भी थी, जिसमें अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत कर्मचारियों से सीमेंट प्लांट के प्रबंधकों ने उनके पासपोर्ट छीनकर उनको असहाय कर दिया। इस स्थिति में स्वतंत्र घूमने के कारण कम से कम 200 ऐसे भारतीय नागरिकों को 50 से 60 की संख्या में कमरेनुमा जेलों में कैद कर दिया गया। बाद में इसमें से प्रत्येक समूह में 10-15 लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह बिगड़ गया। अंगोला में स्थित भारतीय दूतवास ने पहल के तौर पर जहां 50 लोगों के पहले जत्थे को स्वदेश रवाना किया, वहीं संुबे सीमेंट प्लांट में कार्यरत भारतीयों से वापस काम पर लौटने की अपील भी की है। असल में अंगोला में भारतीय कामगारों की इस असहाय हालत ने विदेश में कार्यरत भारतीयों के हालात पर बहस की शुरुआत करते हुए उनके अधिकारों को सुरक्षित करने की एक सम्रग और कारगर व्यवस्था कायम करने का अवसर दिया है। अंगोला एकमात्र ऐसा उदाहरण नहीं है, जहां बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों का पासपोर्ट जब्त करके इस प्रकार बंधक बनाया गया हो। विदेशी प्रशासन और प्रबंधकों द्वारा इस प्रकार से बंधक और असहाय बनाने की कहानियां मध्य पूर्व से स्वदेश लौट रहे प्रत्येक भारतीय से सुना जा सकता है। ये कहानियां केवल बंधक बनाने और भारतीयों को असहाय कर देने भर की नहीं होतीं, बल्कि उनके साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार की भी होती है। ऐसा बर्ताव भारतीयों के साथ ही नहीं, बल्कि पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मजदूरों के साथ भी हो रहा है और इस तरह की घटनाएं अक्सर उन देशों के लोगों के लिए सामान्य हैं, जहां पर लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है और जिनके लिए लोकतांत्रिक मूल्यों का कोई अर्थ नहीं है। रोजगार की तलाश में विदेशों में गए इन भारतीय प्रवासियों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। केवल मध्य पूर्व, अफ्रीका और दक्षिण एशिया के कुछ देशों में ही भारतीय प्रवासियों की संख्या 28 लाख से अधिक है। अपने देश की इतनी बड़ी आबादी को निराश्रित और भाग्य के भरोसे छोड़ देना सरकार की संवेदनहीनता ही कही जाएगी। अब आवश्यकता ऐसी व्यवस्था कायम करने की है, जो भारतीय मजदूरों के अधिकारों की विदेशों के अंदर रखवाली तो करे ही साथ में भारत सरकार के समर्थन का भी सहारा उन्हें मिल सके। भारतीय उपमहाद्वीप के प्रवासी मजदूर शायद अकेले ऐसे हैं जिनके प्रति उनकी अपनी सरकार ही लापरवाही दिखाती है। यदि यूरोप या अमेरिका का कोई नागरिक भारत जैसे देश में गायब हो जाए तो उनकी सरकार किस कदर तूफान खड़ा कर देती है बताने की आवश्यकता नहीं। हमारे 1200 नागरिक अंगोला में लाचार, असहाय और दर्दनाक हालात में फंसे रहे और भारतीय दूतावास को खबर तक नहीं थी। असल में भारतीय प्रवासी कामगारों की सुरक्षा की यह व्यवस्था दो स्तरों पर तैयार करनी होगी पहले उन देशों पर दबाव बनाने के लिए जहां भारतीय प्रवासी मजदूर कार्यरत हैं और दूसरे अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन पर दबाव बनाकर ताकि वह इन देशों को प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने को बाध्य करें। इसके अलावा आवश्यकता कबूतरबाजों के नेटवर्क पर भी अंकुश लगाने की है, जो रोजगार दिलाने के नाम पर लोगों को विदेशों में फंसाने का काम करते हैं। यह सिलसिला काफी पुराना है। पहले पर्यटन वीजा से विदेशों में भेजने का यह कारोबार जर्मन और पूर्वी यूरोप के रास्ते धडल्ले से किया जाता था। पर्यटन वीजा पर जर्मन जैसे किसी देश में पहंुचकर वीजाधारक अपने पासपोर्ट को नष्ट कर देता था जिसके बाद वहां की सरकार उसे अवैध घुसपैठिया मानकर उस पर मुकदमा चलाती थी। मुकदमे की इस अवधि के दौरान वह उक्त देश में रहकर कोई रोजगार करता और कभी-कभी वहां अनुबंध शादी आदि के हथकंडे अपनाकर नागरिकता हासिल करने में भी कामयाब हो जाता था। इन्हीं तरीकों से कबूतरबाजों का यह नेटवर्क लोगों को विदेश भेजने के कारोबार से लाखों करोड़ों रुपये कमाने का अपना अवैध व्यवसाय चलाता है। दरअसल, इस पूरे व्यवसाय का पासपोर्ट विभाग में मिलीभगत होती है।
रोजगार की तलाश में देश छोड़ने को विवश प्रवासी मजदूरों को अक्सर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस संदर्भ में अंगोला में फंसे 1200 भारतीय श्रमिकों की भी ऐसी ही दर्दनाक कहानी है। इन भारतीय कामगारों की दयनीय स्थिति वास्तव में दुनिया भर में फैले भारतीय प्रवासी मजदूरों के बदतर हालात को बताता है। बगैर पासपोर्ट और वीजा के बडी संख्या में अधर में लटके इन भारतीय मजदूरों की हालत का पता जब दुनिया को चला तो सब हैरान रह गए। मध्य पूर्व और अफ्रीका के कई देशों में ऐसे असहाय भारतीय प्रवासियों की असंख्य दर्दनाक कहानियां हैं जो भारतीय दूतावासों की संवेदनहीनता के कारण अभी तक अज्ञात ही हैं। इस घटना की सबसे बडी त्रासदी यह है कि अंगोला की राजधानी से 300 किलोमीटर दूर सूंबे नामक कस्बे के सीमेंट प्लांट में फंसे इन भारतीय श्रमिकों की दास्तान मीडिया और नेताओं के कारण चर्चा का विषय तो बन गई परंतु अंगोला में स्थित भारतीय दूतावास को वहां फंसे अपने देश के 1200 नागरिकों की दयनीय हालत का पता नहीं चल पाया। इन मजदूरों में आंध्र प्रदेश, गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों के कामगार शामिल थे जिनके लिए गुजरात सरकार, बिहार सरकार और हैदराबाद में भाकपा महासचिव सुधारक रेड्डी ने अपने स्तर पर आवाज उठाया और केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की। वास्तव में यह घटना रोजगार की तलाश में विदेशों का रुख करने और वहां भारतीय प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा को तो रेखांकित करती ही है, साथ ही कबूतरबाजी के उस नेटवर्क को भी उजागर करती है, जो विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर लोगों को येन-केन-प्रकारेण विदेश में धकेल कर निश्चिंत हो जाता है। अंगोला में रोजगार की तलाश में पहुंचे इन श्रमिकों में बड़ी संख्या में वह लोग थे, जो पर्यटन वीजा पर अंगोला गए थे। वीजा की अवधि समाप्त होने पर इनके पयर्टन वीजा को वर्क वीजा में परिवर्तित करने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई जो खासी लंबी प्रक्रिया थी और उसमें छह महीने तक का समय लग सकता था। इस अवधि में उनको आसानी से कोई काम भी मिल पाना कठिन था और वह वापस अपने देश भी नहीं आ सकते थे, क्योंकि उनका पासपोर्ट भी जब्त हो चुका था। स्वाभाविक है, ऐसी स्थिति में यह भारतीय बेरोजगार और असहाय हो चुके थे। इसके आलावा एक दूसरी स्थिति भी थी, जिसमें अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत कर्मचारियों से सीमेंट प्लांट के प्रबंधकों ने उनके पासपोर्ट छीनकर उनको असहाय कर दिया। इस स्थिति में स्वतंत्र घूमने के कारण कम से कम 200 ऐसे भारतीय नागरिकों को 50 से 60 की संख्या में कमरेनुमा जेलों में कैद कर दिया गया। बाद में इसमें से प्रत्येक समूह में 10-15 लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह बिगड़ गया। अंगोला में स्थित भारतीय दूतवास ने पहल के तौर पर जहां 50 लोगों के पहले जत्थे को स्वदेश रवाना किया, वहीं संुबे सीमेंट प्लांट में कार्यरत भारतीयों से वापस काम पर लौटने की अपील भी की है। असल में अंगोला में भारतीय कामगारों की इस असहाय हालत ने विदेश में कार्यरत भारतीयों के हालात पर बहस की शुरुआत करते हुए उनके अधिकारों को सुरक्षित करने की एक सम्रग और कारगर व्यवस्था कायम करने का अवसर दिया है। अंगोला एकमात्र ऐसा उदाहरण नहीं है, जहां बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों का पासपोर्ट जब्त करके इस प्रकार बंधक बनाया गया हो। विदेशी प्रशासन और प्रबंधकों द्वारा इस प्रकार से बंधक और असहाय बनाने की कहानियां मध्य पूर्व से स्वदेश लौट रहे प्रत्येक भारतीय से सुना जा सकता है। ये कहानियां केवल बंधक बनाने और भारतीयों को असहाय कर देने भर की नहीं होतीं, बल्कि उनके साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार की भी होती है। ऐसा बर्ताव भारतीयों के साथ ही नहीं, बल्कि पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मजदूरों के साथ भी हो रहा है और इस तरह की घटनाएं अक्सर उन देशों के लोगों के लिए सामान्य हैं, जहां पर लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है और जिनके लिए लोकतांत्रिक मूल्यों का कोई अर्थ नहीं है। रोजगार की तलाश में विदेशों में गए इन भारतीय प्रवासियों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। केवल मध्य पूर्व, अफ्रीका और दक्षिण एशिया के कुछ देशों में ही भारतीय प्रवासियों की संख्या 28 लाख से अधिक है। अपने देश की इतनी बड़ी आबादी को निराश्रित और भाग्य के भरोसे छोड़ देना सरकार की संवेदनहीनता ही कही जाएगी। अब आवश्यकता ऐसी व्यवस्था कायम करने की है, जो भारतीय मजदूरों के अधिकारों की विदेशों के अंदर रखवाली तो करे ही साथ में भारत सरकार के समर्थन का भी सहारा उन्हें मिल सके। भारतीय उपमहाद्वीप के प्रवासी मजदूर शायद अकेले ऐसे हैं जिनके प्रति उनकी अपनी सरकार ही लापरवाही दिखाती है। यदि यूरोप या अमेरिका का कोई नागरिक भारत जैसे देश में गायब हो जाए तो उनकी सरकार किस कदर तूफान खड़ा कर देती है बताने की आवश्यकता नहीं। हमारे 1200 नागरिक अंगोला में लाचार, असहाय और दर्दनाक हालात में फंसे रहे और भारतीय दूतावास को खबर तक नहीं थी। असल में भारतीय प्रवासी कामगारों की सुरक्षा की यह व्यवस्था दो स्तरों पर तैयार करनी होगी पहले उन देशों पर दबाव बनाने के लिए जहां भारतीय प्रवासी मजदूर कार्यरत हैं और दूसरे अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन पर दबाव बनाकर ताकि वह इन देशों को प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने को बाध्य करें। इसके अलावा आवश्यकता कबूतरबाजों के नेटवर्क पर भी अंकुश लगाने की है, जो रोजगार दिलाने के नाम पर लोगों को विदेशों में फंसाने का काम करते हैं। यह सिलसिला काफी पुराना है। पहले पर्यटन वीजा से विदेशों में भेजने का यह कारोबार जर्मन और पूर्वी यूरोप के रास्ते धडल्ले से किया जाता था। पर्यटन वीजा पर जर्मन जैसे किसी देश में पहंुचकर वीजाधारक अपने पासपोर्ट को नष्ट कर देता था जिसके बाद वहां की सरकार उसे अवैध घुसपैठिया मानकर उस पर मुकदमा चलाती थी। मुकदमे की इस अवधि के दौरान वह उक्त देश में रहकर कोई रोजगार करता और कभी-कभी वहां अनुबंध शादी आदि के हथकंडे अपनाकर नागरिकता हासिल करने में भी कामयाब हो जाता था। इन्हीं तरीकों से कबूतरबाजों का यह नेटवर्क लोगों को विदेश भेजने के कारोबार से लाखों करोड़ों रुपये कमाने का अपना अवैध व्यवसाय चलाता है। दरअसल, इस पूरे व्यवसाय का पासपोर्ट विभाग में मिलीभगत होती है।
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