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मंगलवार, 22 मई 2012

कायम रहेगा गंगा का निर्मल अविरल बहाव


विशेष सेवा एवं फीचर

महेश राठी*
      गंगा की स्‍वच्‍छता, प्रदूषण रहित निर्मल अविरल प्रवाह फिर से चर्चाओं में है। अपने अस्तित्‍व पर लगातार खतरे झेल रही भारत की इस जीवन रेखा को बचाने की मुहिम संभवतया अभी तक के अपने सबसे गंभीर मुकाम पर है।      
      दरअसल गंगा अस्तित्व को खतरा पैदा करने वाले कारणों को हम तीन भागों में बांट सकते है, गंगा के उद्भव की अवस्‍था के मूल कारण, औद्योगिक विकास जनित और जनसंख्‍या विस्‍फोट के कारण बढ़ता दबाव। गंगा को अपने उद्गम स्‍थल और पूरे उत्‍तराखण्‍ड में अभी तक भी एक स्‍वच्‍छ और निर्मल जलधारा के रूप में जाना जाता है। यदि प्रत्‍यक्ष रूप से देखें तो गंगा की सभी सहयोगी जलधाराऐं स्‍वच्‍छ और निर्मल दिखाई देती हैं परन्‍तु उत्‍तराखण्‍ड के किसी मूल निवासी से इसके बारे में जानने की कोशिश की जाए तो इस स्‍वच्‍छता की वास्‍तविकता और पिछले वर्षो में इसमें आई गिरावट को आसानी से समझा जा सकता है। वास्‍तव में यदि देखा जाए तो गंगा एक मैदानी नदी ही है क्‍योंकि गंगा देवप्रयाग में संगम के बाद ऋषिकेश में प्रकट होने के समय ही गंगा कहलाती है। इससे पहले गंगा अपनी सहयोगी जलधाराओं भगीरथी, नन्‍दाकिनी, पिण्‍डार, अलकनन्‍दा या मंदाकिनी के नाम से ही जानी जाती है। परन्‍तु अपने बेसिन में संभवतया दुनिया की सबसे बड़ी आबादी को आश्रय देने वाली आस्‍था और जीवन की प्रतीक इस नदी की यह सबसे बड़ी विडम्‍बना ही कही जाएगी कि यह महानदी गंगा बनने से पहले ही भारी प्रदूषण का शिकार हो रही है। गंगा का उद्गम स्‍थल पहाड़ी राज्‍य उत्‍तराखंड विकास के नाम पर अवैध खनन और अतिक्रमण का शिकार होकर भारी पर्यावरण क्षति का शिकार हो रहा है और इसका दुष्‍प्रभाव लगातार घटते ग्‍लेशियरों और दरकते हुए पहाड़ों में साफ तौर पर दिखाई देता है, जिस कारण गंगा और उसकी सहायक नदियों में लगातार पानी में कमी हो रही है पिछले पांच दशक में गंगा की समुंद्र में पानी की हिस्‍सेदारी में 20 प्रतिशत से भी अधिक गिरावट आई है। पानी की इस कमी के लिए विकास के नाम पर उत्‍तराखंड में हो रहे अंधाधुंध बांध निर्माण की भी एक महत्‍वपूर्ण भूमिका रही है। इस समय उत्‍तराखंड में तैयार हो चुके, निर्माणाधीन और छोटे-बड़े प्रस्‍तावित बांधों की संख्‍या 300 से भी अधिक है। उत्‍तराखंड जैसे छोटे से पहाड़ी राज्‍य के लिए बेशक ये आंकड़ा हैरान देने वाला है। हालांकि अभी प्रस्‍तावित बांधों की बड़ी संख्‍या न्‍यायालय के हस्‍तक्षेप के कारण वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार कमेटी के पास विचाराधीन है। फिर भी अभी तक बन चुके छोटे-बड़े अनेकों बांधों ने इस प्रदेश के सामाजिक, सांस्‍क़तिक और पर्यावरणीय जीवन और परिस्थितिकी को बुरी तरह प्रभावित करके इस पूरे क्षेत्र पर निर्णायक अमिट छाप छोड़ दी है।
      गंगा के प्रदूषण का दूसरा मुख्‍य स्रोत औद्योगिक इकाईयों द्वारा छोड़े जाने वाला औद्योगिक कूड़ा और भारी मल है। गंगा नदी के किनारे कम से कम 29 बडे शहर, 70 कस्‍बे और हजारों गांवों स्थित है, जिनसे लगातार इस मल एवं अपव्‍यय का उत्‍सर्जन होता रहता है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2010 तक गांव और शहरों के द्वारा छोड़े जाने वाले इस मल अपव्‍यय की मात्रा 13 करोड़ लिटर रोजाना आंकी गई थी। इसके अलावा इस रिपोर्ट में औद्यो‍गिक अपव्‍यय का अनुमान भी 260 मिलियन के आसपास किया गया था। गंगा के प्रदूषण में नगर निकायों की हिस्‍सेदारी सबसे बड़ी 80 प्रतिशत थी, तो वहीं औद्योगिक इकाईयों की हिस्‍सेदारी 15 प्रतिशत ही मानी गई थी। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी को आश्रय देने वाली इस महानदी के बेसिन में औद्योगिक इकाईयों की संख्‍या भी बेहद विशाल और बेतरतीब है। एक अनुमान के अनुसार ऋषिकेश से प्रयागराज तक विभिन्‍न प्रकार की 146 औद्योगिक इकाईयों विद्यमान थी, जिसमें 144 उत्‍तरप्रदेश में और 2 उत्‍तराखंड में  स्थित थी। गंगा को बड़े स्‍तर पर प्रदूषित करने वाली इन इकाईयों में कानपुर में स्थित चमड़ा उद्योग का एक बड़ा योगदान रहा है। हालांकि उत्‍तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण् बोर्ड ने पिछले कई सालों में कई इकाईयों को बंद करवाया या बंद करवाने की प्रक्रिया शुरू की है। इसके अलावा इन औद्योगिक इकाईयों की सघनता को कन्‍नौज और वाराणसी के बीच में स्थित 170 कारखानों और चर्मशोधन संयंत्रों की संख्‍या से ही समझा जा सकता है। इन औद्योगिक इकाईयों द्वारा पैदा किया जा रहा रसायनिक अपव्‍यय लगातार गंगा के पानी को प्रदूषित कर रहा है और इस बढ़़ते प्रदूषण के कारण भारत की इस धार्मिक आस्‍थाओं की प्रतीक पौराणिक नदी का पानी ना लोगों के पीने योग्‍य बचा है, ना ही स्‍नान करके पाप धोने लायक ही। इसके अतिरिक्‍त लगातार बढ़ती जनसंख्‍या का दबाव और लोगों की जीवन शैली में आ रहा परिवर्तन भी गंगा प्रदूषण को बढ़ा रहा है। बढ़ते शहरीकरण के कारण गंगा में गिरने वाले मल अपव्‍यय की मात्रा रोजाना बढ़ रही है। इस तेज होते शहरीकरण में नदी तट पर होने वाले अतिक्रमण और नदी में से अवैध रेत खनन जैसे कारोबार अराजक ढंग से बढ़ावा दिया है। इसके साथ ही भारतीय जीवन में गंगा नदी की धार्मिक महत्‍ता भी गंगा के अस्तित्‍व के लिए संकट का कारण बन रही है। गंगा किनारे अंतिम संस्‍कार इस दृष्टि से एक बड़ा संकट है, जिससे गंगा के प्रदूषण में इजाफा होता है। यदि वाराणसी को इसका एक उदाहरण माने, तो इस संकट को आसानी से समझा जा सकता है। वाराणसी में ही हर साल 40 हजार से अधिक शवों का अंतिम संस्‍कार हो रहा है और गंगा का हर किनारा इस धार्मिक और सामाजिक विधान के लिए महत्‍वपूर्ण है। अब एक शहर के उदाहरण से शव दहन की इस प्रक्रिया की विशालता को समझा जा सकता हैं। यह एक ऐसे प्रमुख कारक हैं जो लगातार गंगा के अस्तित्‍व को चुनौती दे रहा हैं।
      भारत सरकार ने गंगा के निर्मल, स्‍वच्‍छ और निर्बाध प्रवाह को बनाए रखने के लिए 1986 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में गंगा एक्‍शन प्‍लान की शुरू हुई, जिसमें 25 प्रथम श्रेणी शहरों में गंगा को प्रदूषण मुक्‍त करने का अभियान चलाया गया बाद में 2000 में आधिकारिक रूप से दस गंगा एक्‍शन प्‍लान को बंद कर दिया, परन्‍तु उससे पहले उस एक्‍शन प्‍लान के अनुभवों के आधार पर 1993 में एक्शन प्‍लान फेज 2 को अनुमति प्रदान की गई जिसके तहत गंगा और उसकी सहायक नदियों यमुना, दामोदर, गोमती और महानंदा को भी इसके दायरे में लाया गया। इसके अलावा सरकार ने गंगा और उसके महत्‍व को ध्‍यान में रखते हुए पर्यावरण सुरक्षा कानून 1986 के अंतर्गत प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में नेशनल रिवर गंगा बेसिन ऑथोरिटी का 20 फरवरी 2009 को निर्माण किया गया। इस ऑथोरिटी में संबंधित सभी राज्‍यों के मुख्‍यमंत्रियों को भी शामिल किया गया। इसी के साथ भारत सरकार ने गंगा को राष्‍ट्रीय नदी भी घोषित किया गया। हाल ही में 17 अप्रैल को संपन्‍न नेशनल रिवर गंगा बेसिन ऑथोरिटी की तीसरी बैठक में प्रधानमंत्री ने सभी संबंधित राज्‍य सरकारों से कहा कि वह सभी अपने राज्‍यों में प्रदूषण की स्थिति पर रिपोर्ट जमा करायें ताकि शीघ्र ही गंगा को प्रदूषण मुक्‍त करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जा सकें। नेशनल रिवर गंगा बेसिन ऑथोरिटी ने गंगा को प्रदूषण मुक्‍त बनाने और संरक्षित करने के लिए स्‍पष्‍ट तौर पर अपने लक्ष्‍य निर्धारित किए। इसमें प्रमुखतया गंगा बेसिन प्रबंधन योजना तैयार करना, गंगा बेसिन राज्‍यों में नदी के पर्यावरण की रक्षा के उपाय करने के साथ ही वहां पर पानी की शुद्धता बनाए रखने और प्रदूषण रोकने के लिए गंगा बेसिन में गतिविधियों का नियमांकन, गंगा नदी में पर्यावरणीय बहाव को बनाए रखना, नदी में प्रदूषण की रोकथाम के लिए सीवरेज शोधन ढ़ांचे का निर्माण करना, बाढ़ आशंका वाले क्षेत्रों की सुरक्षा और लोगों में जागरूकता लाने के लिए आवश्‍यक योजना बनाने और उसको कार्यरूप देने के लिए वित्‍त की व्‍यवस्‍था करना, गंगा में प्रदूषण से संबंधित जानकारी जुटाना और उनका विश्‍लेषण करना, नदी में प्रदूषण के कारणों और उनसे बचाव के उपायों की जांच एवं उस पर शोध करना, जल संरक्षण और उसके पुनर्प्रयोग को बढ़ावा देना, प्रदूषण को रोकने और उससे बचाव के लिए जारी कार्यक्रमों की निगरानी करना आदि है।
      वर्तमान संसद सत्र में सांसदों के प्रश्‍नों को जवाब देते हुए पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने कहा कि 714 ऐसी औद्योगिक इकाईयों की पहचान की गई है, जो मुख्‍य रूप से गंगा में प्रदूषण के लिए दोषी है और राज्‍य सरकार ऐसे प्रदूषण फैलाने वाले दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही कर रही हैं अथवा नहीं उसकी निगरानी के लिए केन्‍द्र सरकार एक निगरानी व्‍यवस्‍था तैयार कर रही है। पर्यावरण मंत्री ने कहा है कि गंगा में प्रदूषण का 20 प्रतिशत औद्योगिक इकाईयों के कारण, जबकि 80 प्रतिशत प्रदूषण शहरी सीवेज के कारण है और केन्‍द्र ने सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट स्‍थापित करके अपने जवाबदेही पूरी कर दी हैं परन्‍तु इन शहरों में सीवर व्‍यवस्‍था ही नहीं, जिसके बनाने की जिम्‍मेदारी स्‍थानीय शहरी निकायों की है, राज्‍य सरकारों को चाहिए की शहरों में सीवर व्‍यवस्‍था का निर्माण करायें। साथ ही उन्‍होंने यह भी कहा कि गंगा एक्‍शन प्‍लान विफल नही रहा है और गंगा की स्थिति उतनी भी खराब नही हैं जैसे आंकड़े सांसद दे रहे है। सांसदों ने कहा है कि गंगा पर 400 बांध परियोजनाओं का कार्य चल रहा है जबकि वास्‍तविकता यह है कि इनकी संख्‍या केवल 70 ही हैं, जिसमें से 17 निर्मित हो चुके हैं, 14 निर्माणधीन हैं और 39 केवल कागजी योजनाओं तक ही सीमित हैं। पर्यावरण मंत्री ने कहा कि गंगा गौमुख से लेकर बंगाल में अंतिम मुहाने त‍क पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र है और सरकार उसकी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं परन्‍तु राज्‍य सरकारों को गंगा संरक्षण के लिए आवंटित धन सही ढ़ंग से और समय पर खर्च करना चाहिए क्‍योंकि उनका मंत्रालय भी आव‍ंटित धन को एक सीमा से अधिक अपने पास नही रख सकता हैा इसके अतिरिक्‍त लोकसभा अध्‍यक्ष मीरा कुमार ने भी लोकसभा को आश्‍वस्‍त किया कि गंगा की रक्षा की जाएगी और उसका निर्मल अविरल बहाव कायम रखा जाएगा।

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