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बुधवार, 27 जून 2012

बाजार का ब्रांड बन रहा महानायक

महेश राठी 
बा जार व बाजार की नियंत्रक शक्तियां पूंजी संचयन के लिए किसी भी व्यक्ति व नाम के प्रयोग से परहेज नहीं करती हैं, इसे लाभ के प्रति तृष्णा कहें, अवसरवादिता की पराकाष्ठा या लाभ की नई नैतिकताएं। इसका सबसे बड़ा व विश्वव्यापी उदाहरण आज चे ग्वारा हैं। पूरी दुनिया में क्रांति, जुझारूपन व दुस्साहसिक संघर्षों के प्रतीक चे ग्वारा आज तमाम उत्पादों के विश्वव्यापी सुपर मॉडल चेहरा बनकर उभरे हैं। 

इसे विडंबना ही कहेंगे कि 14 जून 1928 को अर्जेंटीना में जन्मे पेशेवर क्रांतिकारी चे ग्वारा के संबंधियों को उनकी मौत के पैंतालिस वर्षों के बाद उनके सम्मान को बचाने की लड़ाई लडऩी पड़ रही है। एक क्रांतिकारी के सुपर ब्रांड बनने के तथ्य को जिस दुखद व मार्मिक ढंग से उनकी 51 वर्षीय बेटी अलेइदा ग्वारा ने बताया उसने पूरी दुनिया के सामने बाजार के इस क्रूर चेहरे को उजागर कर दिया है। 

चे ग्वारा पूरी दुनिया में संघर्ष व साहस की मिसाल हैं और हर दौर में नौजवानों के महानायक हैं परंतु त्रासदी यह है कि उनकी इस महानायक छवि को इस्तेमाल करने का लालच उनका सबसे बड़ा शत्रु पंूजीवाद भी नहीं छोड़ पाया। उनकी तस्वीरों से छपी टी शर्टों से पूरी दुनिया के बाजार अटे पड़े हैं, वहीं इंग्लैंड की वोदका, फ्रांस के शीतल पेय व स्विट्जरलैंड के मोबाइल फोनों पर चे ग्वारा के नाम का व्यावसायिक प्रयोग हो रहा है। इसी व्यावसायिक इस्तेमाल को बंद करने की अपील चे ग्वारा व क्यूबन क्रांतिकरी अलेइदा मार्क के चार बच्चों में से दो ने क्यूबन सरकार द्वारा आयोजित इंटरनेट प्रेस सम्मेलन के माध्यम से पिछले वर्षों में की थी। 

वह अत्यंत भावुक क्षण था चे के बच्चों व दुनिया के उन नौजवानों के लिए जिनके लिए चे हमेशा एक प्रेरणास्रोत व महानायक हैं जब उनके बच्चों को कहना पड़ा कि हमारे पिता का व्यावसायिक इस्तेमाल बंद करो हमें सम्मान चाहिए पैसा नहीं। चे जो क्यूबा में फिदेल कास्त्रो के बाद सबसे ताकतवर व्यक्ति थे आज उनके बच्चों को उनके सम्मान की रक्षा के लिए आगे आना पड़ रहा है। चे ग्वारा एक प्रशिक्षित चिकित्सक थे। उनका जन्म हालांकि एक संपन्न परिवार में हुआ उनका वास्तविक नाम अर्नेस्टो ग्वारा दे ला सेरना था चे उनका उपनाम था। अल्पायु में ही उन्होंने इतिहास व समाजशास्त्र का अध्ययन कर लिया था। चिली के कम्युनिस्ट कवि पाब्लो नेरुदा से वह विशेष रूप से प्रभावित थे। 

दरअसल चे इरादों के पक्के एक जुनूनी व्यक्ति थे। उन्होंने मेडिकल शिक्षा के दौरान कुष्ठ रोगियों के इलाज का विशेष प्रशिक्षण लिया और अपनी शिक्षा पूरी करने से पहले ही वो एक बार कुष्ठ रोगियों के इलाज के लिए मोटरसाइकिल पर लेटिन अमेरिका की यात्रा पर निकल पड़े। यही उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का पड़ाव था, उन्होंने जो लेटिन अमेरिका में गरीबी व भुखमरी के दर्शन किए, उसने उन्हें तोड़कर रख दिया। 

लौटकर अपनी मेडिकल डिग्री पूरी की व ग्वाटेमाला चले गए, मगर ग्वाटेमाला में वहां की चुनी हुई कम्युनिस्ट अरबेज सरकार के खिलाफ अमेरिकी साजिशों को देखकर इनका दिल अमेरिका के प्रति नफरत से भर गया। इनकी मुलाकात माक्र्सवादी हिल्डा से हुई। इसके बाद चे ग्वारा मेक्सिको चले गए, जहां इनकी मुलाकात कास्त्रो बंधुओं से हुई। इन्होंने मिलकर क्यूबा में क्रांति को अंजाम दिया। 1965 में चे अपने परिवार की जिम्मेदारियां फिदेल को सौंप कर अचानक गायब हो गए। 

वे कांगों में क्रांति की असफल कोशिश के बाद बोलिविया गए। वो बोलिविया को अपनी लेटिन अमेरिकी गुरिल्ला छापामार जंग का केंद्र्र बनाना चाहते थे। अन्तोगत्वा दो दिन बंधक रखने के बाद 9 अक्टूबर 1967 को रस्सियों में जकड़े चे ग्वारा को बोलिविया व सीआईए ने गोलियों से भून दिया। चे ग्वारा का व्यक्तित्व करिश्माई व जीवन बेहद रोमांचक था, जिसने उन्हें बीसवीं सदी का सबसे बड़ा महानायक बना दिया। चे ग्वारा की दुनिया के नौजवानों के दिल में वही जगह है जो एशियाई महाद्वीप व भारत में भगत सिंह के लिए है। 

जिस पूंजीवाद के खात्मे के लिए चे ग्वारा ने अपनी जिंदगी खत्म कर दी उसे चे को अपना सुपर ब्रांड बनाकर बेचने में कोई कशमकश और हिचक नहीं है। उपभोक्तावाद व बाजारीकरण का मूल मंत्र यही कमोडिटीफिकेशन है जो न चेहरा छोड़ता है, न परंपराएं, न ऐतिहासिक गौरव, न ही आपकी भावनाएं, विचार व वैचारिक प्रतिबिंब भी इसके हमले से अछूते नहीं हैं बेशक वो इस बाजार के स्वामियों के घोर शत्रु ही क्यों न हों। मुनाफे की होड़ में बाजार के स्वामी यह भूल गए हैं कि विकास की गति ऊपर की ओर चक्राकार होती है यदि चे का चेहरा दुनिया में जाएगा तो उनका विचार स्वत: ही उसके साथ चलेगा व चे ग्वारा की लड़ई व विरासत का फैलाव भी पूरी दुनिया में करेगा। 

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