महेश राठी
लोकप्रिय नारों और लुभावने नामों के बीच इंकलाब के गीतों की गुनगुनाहट में व्यवस्था परिवर्तन के रूमानी अहसास को जगाने की कारोबारी कोशिश संभवतया समाजसेवा क्षेत्र का नया और ग्लैमरस चेहरा है। आर्थिक विकास की खगोलीय अवधारणा के प्रसार के साथ आई गैर-सरकारी संगठनों की बाढ़ से समाज में चेतना और भौतिक स्तर पर बेशक बदलाव नहीं हो सका हो, परंतु यह निर्विवाद सत्य है कि विकास की इस परिकल्पना ने परमार्थ को वित्तीय लाभ के व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया है। गैर-सरकारी संगठनों की समाजसेवा अब एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें सेवा का संतोष है, वित्तीय लाभ की गारंटी, देशाटन का सुख, क्रांतिकारी नारों की बुलंद आवाज और इंकलाबी स्वर लहरियों की आड़ में परिवर्तन के आश्वासनों के साथ अनियमितताओं से बचे रहने की आजादी भी है। दुनिया में सबसे अधिक गैर सरकारी संगठनों वाले देश में समाज सेवा का लंबा इतिहास रहा है परंतु 2000 के बाद देश में मानो गैर-सरकारी संगठनों की बाढ़ ही आ गई है। 2000 तक जहां भारत में इन गैर-सरकारी संगठनों की संख्या 12 लाख थी वहीं महज एक दशक में यह बढ़कर 33 लाख तक पहुंच गई थी। यह समाजसेवा का कारोबार में बदलने का ही परिणाम है कि एक दशक में 21 लाख गैर सरकारी संगठनों की बढ़ोतरी दर्ज की गई। गैर सरकारी संगठनों की यह संख्या 2010 तक के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर है। यदि 21वीं सदी के पहले दशक में एनजीओ और ट्रस्टों की बढ़ोतरी के इस रुझान को आधार मानकर आकलन करें तो वर्तमान में यह संख्या 37 लाख से भी अधिक होगी। किसी गरीब बस्ती के मदरसे या मंदिर के ट्रस्ट से शुरू होकर अंतरराष्ट्रीय शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, भुखमरी विरोधी अभियानों से लेकर विश्वविख्यात बाबाओं की कृपा वितरण तक यह व्यापार बेहद संगठित ढंग से फल-फूल रहा है। ऐसे किसी केंद्रीयकृत सरकारी विभाग के अभाव में जो इस कारोबार के लेन-देन का हिसाब रख सके समाजसेवा के इस व्यवसाय को मिलने वाले दान का आकलन हो पाना कठिन है। परंतु गैर-सरकारी संगठनों को 2010 तक विदेश से मिलने वाले दान को ही यदि आधार मानें तो स्थिति थोड़ी स्पष्ट हो सकती है। 2010 तक विदेश से दान प्राप्त करने की पात्रता रखने वाले संगठनों को कुल मिलाकर 10337 करोड़ रुपए दान स्वरूप प्राप्त हुए। जिसमें 133 संगठनों को 10 करोड़ से अधिक 179 को 5 से 10 करोड़ 1594 संगठनों को 1 से 5 करोड़ और 19602 करोड़ संगठनों ने 1 करोड़ से कम दान प्राप्त किया। विदेशों से प्राप्त दान राशि तो इस समाजसेवा क्षेत्र का एक बेहद छोटा भाग है परंतु समाजसेवा क्षेत्र को प्राप्त होने वाली घरेलू वास्तविक दान राशि का आकलन तो बगैर किसी सार्वजनिक कारगर निगरानी व्यवस्था के संभव ही नहीं है। फिर भी यदि विदेशों से प्राप्त धन को ही पैमाना मानकर इसे लोकसभा में चुनकर आए सांसदों को विकास फंड के रूप में वितरित करें तो प्रत्येक सांसद को लगभग 20 करोड़ रुपए अतिरिक्त विकास फंड प्राप्त होगा, जो उसे अभी मिलने वाले विकास फंड से कई गुणा अधिक है।
आधारभूत रूप से समाजसेवा का यह क्षेत्र दो प्रकार की अनियमितताओं का शिकार हैं एक नीतिगत भ्रष्टाचार और दूसरा व्यावहारिक भ्रष्टाचार। नीतिगत अनियमितता इसीलिए कि किसी भी परियोजना का 80 प्रतिशत प्रशासनिक मद में खर्च होता है और बाकी बचे 20 प्रतिशत में स्टेशनरी खर्च सरीखे गोलमाल की संभावनाओं वाले व्यय होते हैं, यदि ईमानदारी से इन प्रोजेक्ट के खर्च का सोशल ऑडिट किया जाए तो मालूम होगा कि लक्षित व्यक्ति समूहों पर महज 5 से 10 प्रतिशत ही खर्च हुआ है। दरअसल परमार्थ पर पलने का यह कारोबार बहुरंगी है, यह कारोबार एक तरफ ईश्वर की आराधना और खुदा की इबादत के बीच खड़े ट्रस्टी और इंतजामिया कमेटी के सदर को पालता है तो दूसरी ओर स्वास्थ्य, शिक्षा और बाल मजदूरी जैसे सामाजिक सवालों पर राज्य की जवाबदेही के आगे खड़े होकर परिवर्तन की मीठी बातें करने वाले नवोदित समाज सेवक के सुख की गठरी को बड़ा करता जाता है। मंदिर का पुजारी मस्जिद के मौलवी, सदर अथवा बाबाओं के कृपा बांटने और प्रार्थना भेजने के भगीरथी प्रयासों द्वारा कष्ट मुक्ति की कोई अविरल धारा कष्ट भोगते भक्तों के बीच बहे या नहीं परंतु आस्थाओं के जनसमूह के बीच से जरूर समृद्धि की कई धाराएं निकलकर इन बिचौलियों की तिजोरियों तक पहुंच जाती हैं। उदारीकरण के इस दौर में राजनीतिक जनांदोलनों को खत्म करने की शर्त पर फल-फूल रहे एनजीओ की समाजसेवा की दास्तान भी कमोबेश बाबाओं के धार्मिक परमार्थ सरीखी ही है। उदारवाद की विषमताओं और असमानताओं से आक्रोशित उबलते आम आदमी के आवेश पर उम्मीद और आश्वासनों का पानी डालकर यह परिवर्तन के नए चितेरे कम से कम अपने सपनों की सवारी के लिए पजेरो, फच्यूनर, मर्सिडीज, हवाई यात्राओं और विदेश भ्रमण का इंतजाम तो कर ही लेते हैं। दूसरे की लाचारी और सपनों की सवारी से अपने सुख के साधन जुटाने के समाज सेवा के कारोबार का यह एकदम नया उदारवादी रूप है।
अब राजनीतिक भ्रष्टाचार को निशाना बनाने वाली गैर-सरकारी संगठनों के गर्भनाल से जुड़ी स्वयंभू सिविल सोसायटी, अनियमितताओं की नींव पर खड़े रहने वाले इस समाज सेवा क्षेत्र को छोड़कर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की बात करेगी तो शर्तिया इस संघर्ष की नीयत पर उंगलियां उठती ही रहेंगी। यदि समाज सेवा के क्षेत्र को भ्रष्टाचार मुक्त और विश्वसनीय बनाना है तो इस क्षेत्र में पारदर्शिता कायम करने के लिए जरूरी है कि इसे सूचना अधिकार कानून के दायरे में लाया जाए और गैर सरकारी संगठनों की निगरानी के लिए एक कारगर व्यवस्था कायम की जाए परंतु यह भी ध्यान रखना होगा कि यह व्यवस्था ऐसी नहीं हो कि सरकार इसका दुरुपयोग करके गैर सरकारी संगठनों को अपनी कठपुतली बना कर कुछ मौलिक काम करने वाले संगठनों के काम में बाधा डाले। आवश्यक है कि समाज सेवा क्षेत्र में ईमानदारी से काम करने वाले संगठन एवं लोग आगे आकर इस क्षेत्र में पारदर्शिता लाने और निगरानी व्यवस्था बनाने की पहल करें।
"अब राजनीतिक भ्रष्टाचार को निशाना बनाने वाली गैर-सरकारी संगठनों के गर्भनाल से जुड़ी स्वयंभू सिविल सोसायटी, अनियमितताओं की नींव पर खड़े रहने वाले इस समाज सेवा क्षेत्र को छोड़कर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की बात करेगी तो शर्तिया इस संघर्ष की नीयत पर उंगलियां उठती ही रहेंगी।"---एकदम सटीक विश्लेषण किया है।
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