कथा श्री फेंकू "चाय वाला"
फेंकू साहेबजादे ने अपने पुराने राग फिर से अलापने शुरू कर दिए है ! जम्मू की रैली में धारा ३७० पर फेंकू के बयान के बाद अच्छा खासा बवाल हो रहा है ! चुनावो के ठीक पहले देखते जाइये अभी वह क्या क्या बोलते है ! देश की जनता खासतौर पर फेंकू समर्थक लोग भी अजीब है जो फेंकू कंपनी के इन हथकंडों को समझना ही नहीं चाहते हैं और फेंकू की ही तरह न इतिहास का ज्ञान है और न इन झूठ के नतीजो का ! १९४७ में जब देश आज़ाद हुआ तो कुछ रियासतों ने अलग आज़ाद देश बननें की कोशिश की थी जिसमे जम्मू कश्मीर रियासत भी थी! इन रियासतों को हिंदुस्तान के साथ रखने में किसी भारतीय राजनेता से बड़ी भूमिका अक्सर वहाँ की स्थानीय जनता ने निभायी है और आज उसी जनता कि भावना और उसके बलिदान को भुलाया जा रहा है भारतीय रियासतो के एकीकरण में जनता के इस योगदान को भुलाकर फेंकू परिवार फिर से एक बंटवारे की लड़ाई को नया रंग दे रहा है! कश्मीर के राजा हरी सिंह जब आज़ाद जम्मू कश्मीर की योजना बना रहे थे तो कश्मीर की जनता ने शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में उनकी कथित आज़ादी से अलग हिंदुस्तान में रहने का फैसला किया था ! यही हालात कमोबेश निज़ाम हैदराबाद के भी थे जो एक आज़ाद देश का सपना बुन रहे थे ! मगर उनकी रियासत की जनता का फैसला निज़ाम के सामंती शासन से आज़ादी पाने का था ! इसीलिए उनके खिलाफ तेलंगाना में एक जबर्दस्त आंदोलन हुआ और निज़ाम की लाखो एकड़ जमीन को छीनकर गरीब किसानो में बाँट दिया गया ! वह तेलंगाना का वह आंदोलन ही था जिसने निज़ाम और उसकी फ़ौज़ की कमर तोडकर उसे भारत में रहने के लिए मजबूर किया ! यही हाल केरल में त्रावणकोर की रियासत का भी वहाँ की बहादुर जनता ने किया ! कमोबेश ऐसे ही हालात जुनागढ़ की रियासत के भी हुए और कमाल यह है उस समय खामौश रहने वाली अथवा रजवाड़ों के साथ रहने वाली साम्प्रदायिक राजनीति आज जनता के उस समय के फैसले पर बहस करने की सीख देने की हिम्मत दिखा रही है !
१९५५ में नेहरू द्वारा हिन्दू कोड बिल में महिलाओ को समान अधिकार देने की कोशिशों का धर्मशास्त्रों के आधार पर विरोध करने वाले फेंकू परिवार के स्वंभू नेता का कश्मीर में महिलाओ की समानता का सवाल उठाना एकदम हास्यास्पद है ! फेंकू परिवार ने हिन्दू कोड बिल को हिन्दू धर्म पर एटम बम्ब की तरह बताया था ! गोलवलकर का फेंकू परिवार ही था जिसने महिलाओ के सम्पति में अधिकार का विरोध किया और आज उनका साहेबजादा कश्मीर की लड़कियों के बराबरी के अधिकार के लिए मरा जा रहा है जबकि झूठ के चैम्पियन साहेबजादे ने कश्मीरी लड़कियों की स्थिति पर जो ज्ञान दिया वर्त्तमान दौर में वह झूठ का पुलिंदा है ! और झूठ भी उस परिवार के साहेबजादे का है जिसने न केवल महिलाओ की समानता का विरोध किया है बल्कि दलितो और आदिवासियों को मताधिकार का विरोध भी फेंकू परिवार कर चूका है !
महिलाओ, दलितो और आदिवासियो के बाद हाल ही में फेंकूओ के गिरोह ने महाराष्ट्र में अंध विश्वास विरोधी कानून का विरोध करते हुए भी अपनी वास्तविकता फिर से दुनिया के सामने उजागर कर दी है ! फेंकू परिवार और उनके धर्मशास्त्र ना दलित, महिलाओ, आदिवासियो को समानता देना चाहते है ना समाज को अन्धविश्वासो से मुक्त करना चाहते है फिर भी विकास के ठेकेदार बने फिरते है ! अब समय आ गया है कि वह देश को बता दे उनका विकास किसके लिए है ! क्या केवल अदानी और अम्बानी का विकास ही देश का विकास है !
क्या अदानी, अम्बानी के हाथो देश की लूट ही उनका विकास है ?
क्या यही है उनकी
नई सोच !
नई उम्मीद !!
फेंकू साहेबजादे ने अपने पुराने राग फिर से अलापने शुरू कर दिए है ! जम्मू की रैली में धारा ३७० पर फेंकू के बयान के बाद अच्छा खासा बवाल हो रहा है ! चुनावो के ठीक पहले देखते जाइये अभी वह क्या क्या बोलते है ! देश की जनता खासतौर पर फेंकू समर्थक लोग भी अजीब है जो फेंकू कंपनी के इन हथकंडों को समझना ही नहीं चाहते हैं और फेंकू की ही तरह न इतिहास का ज्ञान है और न इन झूठ के नतीजो का ! १९४७ में जब देश आज़ाद हुआ तो कुछ रियासतों ने अलग आज़ाद देश बननें की कोशिश की थी जिसमे जम्मू कश्मीर रियासत भी थी! इन रियासतों को हिंदुस्तान के साथ रखने में किसी भारतीय राजनेता से बड़ी भूमिका अक्सर वहाँ की स्थानीय जनता ने निभायी है और आज उसी जनता कि भावना और उसके बलिदान को भुलाया जा रहा है भारतीय रियासतो के एकीकरण में जनता के इस योगदान को भुलाकर फेंकू परिवार फिर से एक बंटवारे की लड़ाई को नया रंग दे रहा है! कश्मीर के राजा हरी सिंह जब आज़ाद जम्मू कश्मीर की योजना बना रहे थे तो कश्मीर की जनता ने शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में उनकी कथित आज़ादी से अलग हिंदुस्तान में रहने का फैसला किया था ! यही हालात कमोबेश निज़ाम हैदराबाद के भी थे जो एक आज़ाद देश का सपना बुन रहे थे ! मगर उनकी रियासत की जनता का फैसला निज़ाम के सामंती शासन से आज़ादी पाने का था ! इसीलिए उनके खिलाफ तेलंगाना में एक जबर्दस्त आंदोलन हुआ और निज़ाम की लाखो एकड़ जमीन को छीनकर गरीब किसानो में बाँट दिया गया ! वह तेलंगाना का वह आंदोलन ही था जिसने निज़ाम और उसकी फ़ौज़ की कमर तोडकर उसे भारत में रहने के लिए मजबूर किया ! यही हाल केरल में त्रावणकोर की रियासत का भी वहाँ की बहादुर जनता ने किया ! कमोबेश ऐसे ही हालात जुनागढ़ की रियासत के भी हुए और कमाल यह है उस समय खामौश रहने वाली अथवा रजवाड़ों के साथ रहने वाली साम्प्रदायिक राजनीति आज जनता के उस समय के फैसले पर बहस करने की सीख देने की हिम्मत दिखा रही है !
१९५५ में नेहरू द्वारा हिन्दू कोड बिल में महिलाओ को समान अधिकार देने की कोशिशों का धर्मशास्त्रों के आधार पर विरोध करने वाले फेंकू परिवार के स्वंभू नेता का कश्मीर में महिलाओ की समानता का सवाल उठाना एकदम हास्यास्पद है ! फेंकू परिवार ने हिन्दू कोड बिल को हिन्दू धर्म पर एटम बम्ब की तरह बताया था ! गोलवलकर का फेंकू परिवार ही था जिसने महिलाओ के सम्पति में अधिकार का विरोध किया और आज उनका साहेबजादा कश्मीर की लड़कियों के बराबरी के अधिकार के लिए मरा जा रहा है जबकि झूठ के चैम्पियन साहेबजादे ने कश्मीरी लड़कियों की स्थिति पर जो ज्ञान दिया वर्त्तमान दौर में वह झूठ का पुलिंदा है ! और झूठ भी उस परिवार के साहेबजादे का है जिसने न केवल महिलाओ की समानता का विरोध किया है बल्कि दलितो और आदिवासियों को मताधिकार का विरोध भी फेंकू परिवार कर चूका है !
महिलाओ, दलितो और आदिवासियो के बाद हाल ही में फेंकूओ के गिरोह ने महाराष्ट्र में अंध विश्वास विरोधी कानून का विरोध करते हुए भी अपनी वास्तविकता फिर से दुनिया के सामने उजागर कर दी है ! फेंकू परिवार और उनके धर्मशास्त्र ना दलित, महिलाओ, आदिवासियो को समानता देना चाहते है ना समाज को अन्धविश्वासो से मुक्त करना चाहते है फिर भी विकास के ठेकेदार बने फिरते है ! अब समय आ गया है कि वह देश को बता दे उनका विकास किसके लिए है ! क्या केवल अदानी और अम्बानी का विकास ही देश का विकास है !
क्या अदानी, अम्बानी के हाथो देश की लूट ही उनका विकास है ?
क्या यही है उनकी
नई सोच !
नई उम्मीद !!
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