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गुरुवार, 26 जून 2014

नया आपातकाल..............!


-महेश राठी 

तुम देखोगे
शब्दों का दम तोड़ जाना 
या उनका खड़ा हो जाना 
जनता के खिलाफ 

तुम देखोगे 
जनवाद के चेहरे वाली 
कुटिलता से मुस्कराती धूतर्ता
जनता का मजाक उडाती हुई

तुम देखोगे
अभिव्यक्ति की आजादी
सरकारी विज्ञप्तियों में लिपटी हुई
आजाद सोच की कब्र पर!

तुम्हे हक होगा
उनके सामने अपने माइक रखने का
उनके कहे शब्दों को
हू ब हू उतार देने का अपनी स्क्रीन/अखबार पर

तुम देखोगे
अपनी रिपोर्टिंग के बागी होने पर
अपने शब्दों के खिलाफ
कुछ नए शब्दों का युद्ध-घोष

तुम देखोगे
तुम्हारे कैमरे की फ्लैश को हक होगा
उनके उजले पुते चेहरों के फाटो खींचने का
वरना मानव रहित हो जायेगें
तुम्हारे कैमरे और माइक

तुम देखोगे
उडती हुई चिडिया,
आकाश का इन्द्रधनुष,
फूलों पर मंडराती तितलियां,
खुबसूरत लैण्डस्कैप तक सिमट जायेगी
तम्हारी सनसनीखेज खबरों की दुनिया

तुम देखोगे
फिर भी जनवाद जिंदा रहेगा
सरकारी भाषणों/दस्तावेजों में
तुम्हारे कहने से कोई नही कहेगा
नया आपातकाल इसे.........!

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