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सोमवार, 21 जुलाई 2014

कट्टरपंथी बर्बरता पर खामोशी क्यों?

महेश राठी
विचित्र विडम्बना है कि पश्चिमी एशिया की जमीन पर फिर से बर्बर नरसंहार की इबारत लिखी जा रही है और पूरा विश्व समुदाय इस पर खामोश है, लगता है कि मानो पूरी दुनिया को इजराइल से हमदर्दी रखने वाली सोच ने लील लिया है। पश्चिमी एशिया में शान्ति फिर से खतरे में है। इजराइली राजकीय आतंकवाद फिलिस्तीन पर कहर बरपाते हुए उसकी स्वायत्तता संप्रभुता व स्वतंत्र अस्तित्व को नकार व ललकार रहा है। इजराइली हमले जानबूझ कर गाजा के नागरिकों व नागरिक ठिकानों को निशाना बनाकर उन्हें ध्वस्त कर रहे हंै। गाजा पर यह इजराइली हमला न केवल फिलिस्तीन के अस्तित्व को चुनौती है वरन् इस क्षेत्र में वर्षों से शान्ति के लिए प्रयासरत दुनिया के तमाम देशों की शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व की सोच और कामना को भी खुली चुनौती ही है। फिलिस्तीन पर यह हमला फिलिस्तीनी स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत दो विरोधियों अल फतह और हमास की हालिया एकता से उपजी बौखलाहट का नतीजा है। फिलिस्तीन स्वतंत्रता के ऐसे दो पैरोकार जो परस्पर विरोधी भी थे और जिनका परस्पर विरोध एवं संघर्ष इजराइल को निश्चिंतता की नींद सुलाता था, उनकी एकता से इजराइल को बौखलाना स्वाभाविक ही था। दो परस्पर विरोधियों की यही एकता आधारभूत रूप से आक्रामक और साथ ही आतंक की ताकत पर मध्यपूर्व में अपना वर्चस्व बनाए रखने वाले देश के इस बर्बर और अमानवीय आक्रमण का कारण है। 
फिलिस्तीन पश्चिमी एशिया का एक बेहद कमजोर राष्ट्र है, जो निरंतर अपने एक स्वतंत्र व सम्प्रभु राष्ट्र होने की लड़ाई लड़ रहा है। इजराइल के उदय के साथ ही शुरू हो गए इस सत्ता संघर्ष में मरते हुए जीने के  इस फिलिस्तीनी संघर्ष का निकट भविष्य में कोई अंत न•ार नहीं आता है। इजराइली राजकीय आतंकवाद के कारण उसकी स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व विकास की विशेष परिस्थितियों में निहित है। गौरतलब है कि इजराइल की स्थापना जिओनवादी आतंकी संगठनों द्वारा की गई जिसमें इरगून, हगाना और स्ट्रेन मुख्य भूमिका में थे। इजराइल की स्थापना से पहले ये संगठन फिलिस्तीन के भीड़ भरे बाजारों, कैफे, दुकानों व बसों में बम विस्फोट करके आतंक पैदा करते रहे हंै। इजराइली राज्य की स्थापना से पहले ये संगठन एवं इनके मुखिया बड़े हत्याकांडों व युद्ध अपराधों के रचियता थे। निहत्थे फिलिस्तीनियों के विरूद्ध दर यासीन, क्रुक कासिम, तान्तुरा, साबरा और शातिला के नरसंहारों से लेकर अभी तक की संहारक आर्थिक व वित्तीय फिलिस्तीनी नाकेबंदी में इन नेताओं की भूमिका जगजाहिर है। 1944 में काहिरा में ब्रिटिश मंत्री की हत्या से लेकर येरूशलम के होटल में बमकाण्ड तक अनगिनत नरसंहारों में इजराइली आतंकवादी, राजनेताओं के हाथ रहे हैं। पहले इजराइली प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियॉन स्थापित आतंकवादी रह चुके ंहै। 1948 में यहूदी देश इजराइल की स्थापना से पहले शेरॉनवादी नारा ''बिना लोगों की जमीन बिना जमीन के लोगों के लिएÓÓ इजराइली घृणास्पद महत्वाकांक्षा व उनकी आतंकी मानसिकता व मन्सूबों को उजागर करता है। याद रहे इजराइल की स्थापना 500 फिलिस्तीनी गांव व कस्बों की नरसंहारक तबाही पर हुई है। इजराइल की स्थापना के बाद इन्हीं यहूदी आतंकी संगठनों ने संगठित होकर इजराइली सेना का रूप लिया अर्थात् स्वच्छन्द, निरंकुश, हिसंक, स्वतंत्र आतंकवादी अब वैतनिक या किराये के राजकीय आतंकी हो गए। आतंक अब इजराइली सेना में साकार होकर पड़ोसी अरब देशों को आतंकित करता रहा है। निहत्थे लोगों के कत्ल कर रहा है, उनके घरों को ध्वस्त कर रहा है, खेतों से फसल खुरच रहा है, उनके अमन-चैन पर निशाने साध रहा है। युद्ध अपराधी व जनसंहारों के लिए प्रतिबद्ध पूर्व आतंकवादी सेना से आशा भी क्या की जा सकती है। 
1948 के पूर्व ऐतिहासिक फिलिस्तीन का मात्र 22 फीसदी भू-भाग फिलिस्तीन के पास है। 1992 ओस्लो शान्ति समझौते के बाद फिलिस्तीन को आर्थिक, वित्तीय व सामरिक रूप से नाकेबंदी व किसी शहर की नगरपालिका से भी कम अधिकारों वाला अपना महज 22 फीसदी भाग देश के नाम पर मिला।  उस पर भी इजराइली आतंकी राज्य की रणनीति व कार्यनीति के रूप में लगातार जारी पूर्वनियोजित नरसंहार। फिलिस्तीन पिछले 58 वर्ष से इजराइली बर्बर आतंकी कब्जे में है, यानि इतिहास का सबसे लम्बा एवं भयावह सैनिक कब्जा। केवल फिलीस्तीन ही नहीं, लेबनान के दक्षिणी हिस्से का काफी बड़ा भू-भाग भी इजराइल के कब्जे में रहा है। इस सबके लिए इजराइल ने संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 194 सहित अनेकों अन्तरराष्ट्रीय कानूनों को अनदेखा किया है। असल में इजराइल की पड़ोसी अरब देशों के साथ शान्ति समझौतों में कोई दिलचस्पी नहीं है उसका एकमात्र हवाई गोल व लक्ष्य नील से फरात तक एक महानतम यहूदी साम्राज्य बनाने में है और उसकी इस मुहिम में उसके साथ है अमेरिकी सामरिक सहयोग व यहूदी धनकुबेरों के आधिपत्य वाला पश्चिमी मीडिया। संयुक्त राष्ट्र के शान्ति समाधानों वाले दसियों प्रस्तावों व ढेरों नियमों को धता बताने वाले इजराइल की ओर से कभी कोई शान्ति का प्रस्ताव नहीं दिया गया, बल्कि आंशिक व व्यापक हमले, धमकीपूर्ण आश्वासन व औपनिवेशिक प्रसार ही उसकी नीतियों का सार रहा है। वास्तव में इजराइली नागरिकों का विकास ही फिलिस्तीन व अरब की प्रत्येक वस्तु के विरूद्ध एक घृणास्पद सांस्कृतिक वातावरण में होता है।  घृणा का यह प्रशिक्षण अभियान इजराइली नागरिकों के बचपन से उनकी प्राथमिक शिक्षा के साथ शुरू होता है। यह अभियान उनमें धार्मिक उन्माद, आक्रमकता व घृणा का विस्तार करता है। इजराइली साहित्य अरब व मुस्लिमों को लुटेरा, हमलावर व यौन उन्मादी जीवों के रूप में महिमा मण्डित करने वाले अर्नथकारी व्याख्यानों से भरा पड़ा है। घृणा के इस वातावरण में पोषित इजराइली अरब व फिलिस्तीनी नागरिकों के प्रति आत्याधिक आक्रामक व हिंसक हो जाते है। वो गर्व से अपने आपको मारने के लिए जन्मने वाला बताकर अपनी घृणा को अभिव्यक्त करते है। इस इजराइली राजकीय आतंकवाद को संयुक्त राज्य अमेरिका व यूरोपीय संघ के सहयोग व विकसित पश्चिमी मीडिया के भेदभावपूर्ण झुकाव की सुविधा प्राप्त है। 
जियोनवादी इजराइल का जनवाद एक बड़ा मिथक है, वास्तव में इजराइल खतरनाक किस्म की धार्मिक रूढि़वादी सैद्धान्तिक आतंकशाही है। जिसकी आधारशिला ''प्रभु के चुने हुए लोगों को प्रभू की दी जमीनÓÓ के मिथ्यापूर्ण नारे पर टिकी है। लेबनान पर इजराइली हमलों के कारण पश्चिमी एशिया विस्फोट के कगार पर है। इजराइली अदूरदर्शिता व आक्रामकता सभी अन्तरराष्ट्रीय कानूनों व मानवीय मानदण्डों को अपने हमलों से उड़ा देने पर तुली है। वास्तव में इस आधारहीन कट्टरपंथी जंग का खामियाजा फिलिस्तीन व इजराइल के आम नागरिक भुगत रहे हैं। यह जंग यदि इसी तरह जारी रही तो इसकी लपटें दूसरे पड़ोसी मुल्कों को भी झुलसाना शुरू कर देंगी जो कि पूरे एशिया व विश्व की शान्ति के लिए बेहद खतरनाक स्थिति होगी।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सटीक और सच्ची बातें लिखी हैं आपने। यह आलेख उन जाहिल लोगों को आइना दिखाने के लिए काफी है, जो सिर्फ धर्म के आधार पर गजा के चिथड़े कर रहे इजारयल का समर्थन कर रहे हैं।

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