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शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

एनडीए को कार्पोरेट-संप्रदायवादी माॅडल का सहारा

महेश राठी
एनडीए सरकार के प्रमुख घटक भाजपा के विकास माॅडल पर बेशक कोई विवाद हो परंतु वोटों के स्थायी ध्रुवीकरण का उसका गुजरात माॅडल निर्विवाद और भाजपा का एकमात्र अंतिम सहारा है। केन्द्र में सत्तासीन होने के बाद भाजपा का यह गुजरात माॅडल कर्नाटक, महाराष्ट्र से लेकर जम्मू कश्मीर और गुजरात से लेकर असम, अरूणाचल तक विभिन्न मुद्दों और नारों के रूप में वर्तमान समय में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। इस माॅडल में लोगों के क्षणिक आक्रोश से जन्में दंगो से उभरी सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काकर विभाजित करने और उस विभाजन को निरंतर बनाये रखने की सुनियोजित योजना का ताना बाना है। इस योजना में हरेक शहर में एक आभासी युद्ध जारी रखने के लिए कुछेक बस्तियों के हिंदुस्तान और पाकिस्तान रूपी नामकरण हैं और गलियों एवं सड़कों को सीमारेखा और एलओसी के रूप में बांटने की कल्पना है तो वहीं इस आभासी युद्ध को जारी रखने के लिए लगातार झूठे आंकड़ों पर आधारित अफवाहों का अभियान शामिल है।
पिछले आम चुनावों में विकास और सुशासन के नाम पर सत्ता में आई मोदी सरकार की चार महीनों में सामने आ रही विफलताओं के साथ ही उसकी वास्तविक राजनीति भी उजागर होने लगी है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की वर्तमान सरकार मंहगाई, काले धन की वापसी, भ्रष्टाचार जैसे ज्वलंत मुद्दों पर मीड़ियाई शोर के सहारे सत्ता में काबिज तो हो गई परंतु यह भी सच्चाई है कि इनमें से एक भी ऐसा मुद्दा नही है जिससे निपट पाने में इस सरकार को कामयाबी हासिल हुई हो। ऐसी स्थिति से निपट पाने में असफल भाजपा ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग नारों और सवालों के साथ सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने और आवश्यकतानुसार उन्माद को सांप्रदायिक दंगे की शक्ल देने का काम शुरू कर दिया है। भावुकतावादी राजनीति की इस पटकथा की असली लेखक आरएसएस है और संघ के इस सांप्रदायिक डिजायन को पूरे देश, विशेषकर हिंदी भाषी क्षेत्रों में क्रियान्वित करने का काम भाजपा और संघ के विभिन्न जन संगठन मिलकर कर रहे हैं। इस सांप्रदायिक डिजायन के क्रियान्वयन में जहां एक तरफ स्थानीय सामाजिक मनौविज्ञान का गहन विश्लेषण शामिल है तो वहीं प्रचार माध्यमों के सभी रूपों विशेषकर सोशल मीड़िया का भरपूर उपयोग भी है। भाजपा और संघ के पास अलग अलग क्षेत्रों के लिए अलग योजना, अलग नारे और अलग अलग कार्यक्रम हैं।
असम के बोड़ो क्षेत्र में और पश्चिमी बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में यह संघी योजना जहां बंग्लादेशी घुसपैठ को मुद्दा बनाती है तो वहीं पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण की इस योजना को वह लव जेहाद का नाम देते हैं और हरियाणा और दिल्ली में उसके सीमावर्ती विधानसभा क्षेत्रों में इसे गो-रक्षा के नाम पर आगे बढ़ाया जाता है। हाल ही में ऐसी घटनाओं को देश भर में विशेषकर हिंदी भाषी क्षेत्रों में योजनाबद्ध ढ़ंग से अंजाम दिया जा रहा है। जिसका मकसद लोगों के बीच में एक निरंतर सांप्रदायिक तनाव बनाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को तेज करना और स्थायी बनाना है।
हाल ही हरियाणा में चुनावों के मद्देनजर गो-रक्षा को एक राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश के तहत गो-रक्षा के नाम पर एक मुहिम की शुरूआत की गई है। यहां तक कि भाजपा ने इस मुद्दे को अपने घोषणापत्र में शामिल करते हुए यहां तक कह दिया कि गो-हत्या को मानव हत्या के समान माना जाएगा। इस मुहिम की कमान एक गो-रक्षा दल नामक संगठन ने संभाली है, जो पूरे प्रदेश भर में और उससे लगे पड़ोसी राज्यों तक में भी इस मुहिम को तेजी से फैला रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के सबसे करीबी माने जाने वाले भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह का पिछले दिनों दिया गया बयान कि हरियाणा के चुनावी नतीजे चैंकाने वाले होंगे, दरअसल इसी गो-रक्षक सांप्रदायिक तैयारी के विश्वास पर टिका है। उत्तर प्रदेश में तमाम सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की बिसात बिछाकर मुजफ्फरनगर के शामली में सम्मान के लिए वोट मांगने वाले हुए इन्ही अमित शाह ने उ.प्र. में भी इसी प्रकार का विश्वास भरा बयान चुनाव पूर्व दिया था। असल में यह बयान वोटों के ध्रुवीकरण के लिए भाजपा की चुनावी तैयारियों की निर्णायक गंूज की तरह है। गो-रक्षा के नाम पर हो रहे इस ध्रुवीकरण का प्रभाव और तैयारी केवल हरियाणा तक सीमित नही है भाजपा की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की इस रणनीति में अब धीरे धीरे देश की राजधानी को भी शामिल किया जा रहा है। पिछले दिनो ईद से पहले दिल्ली के बवाना क्षेत्र में इस तथाकथित गो-रक्षा दल ने आसपास के युवाओं को लेकर एक मेाटर बाईक रैली का आयोजन किया जिसमें सैंकड़ों मोटर बाईक वाले नौजवान शामिल थे और वह गो-रक्षा के नाम पर कथित रूप से भड़काउ नारे विशेषकर एक संप्रदाय विशेष को निशाना बनाकर लगा रहे थे। हालांकि यह मुहिम केवल बवाना तक सीमित नही है हरियाणा की सीमा से लगी दिल्ली विधानसभा की लगभग सभी सीटें भाजपा-संघ की इस रणनीति के निशाने पर हैं। बवाना, नरेला, किराड़ी, मुण्डका, मंगोलपुरी, नजफगढ़ आदि ऐसे दर्जन भर महत्वपूर्ण विधनसभा क्षेत्र हैं जो ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले जाट बहुल क्षेत्र हैं। दरअसल परंपरागत रूप से कृषि के पेशे से जुड़े रहे इस जाट बहुल क्षेत्र में हमेशा से आर्यसमाज का काफी गहरा प्रभाव रहा है और आर्यसमाजी मान्यताओं और कृषि की पृष्ठभूमि के कारण गाय इस इलाके में केवल एक दूधारू पशु ही नही बल्कि एक पवित्र जीव मानी जाती रही है। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली देहात की इसी सामाजिक मनोदशा को भांपकर भाजपा और संघ ने गो-रक्षा के नाम पर इस अभियान की शुरूआत की है। वैसे यह बात दीगर है कि इस अभियान में शामिल नौजवानों के परिवारों में कोई सर्वे कराया जाए तो इनमें एक भी ऐसा परिवार नही मिलेगा जो गाय के दूध देना बंद कर देने के बाद उसका पालन पोषण करता हो परंतु सवाल यर्थाथ से अधिक प्रचलित मान्यताओं और रूढ़ियों को मुद्दा बनाकर उससे राजनीतिक लाभ हासिल करने का है। एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने के लिए की जा रही इस मुहिम के ओर भी प्रभाव हरियाणा की सीमा से लगे दिल्ली के इलाकों में दिखाई देने लगे हैं। 4 अक्टूबर को मंगोलपुरी में बकरीद से पहले कुछ स्थानीय दबंग लोगों ने नमाज पढ़ने और कुबार्नी को लेकर पुलिस पर दबाव बनाया और स्थानीय अल्पसंख्यक समाज को लाउड स्पीकर, पार्क के प्रयोग और कुबार्नी आदि पर सशर्त बकरीद एवं नमाज की इजाजत दी गई और इस आशय का समझौता बाकायदा स्थानीय पुलिस इंचार्ज ने लिखित में अपने सामने कराया।
2002 के सांप्रदायिक नरसंहार के बाद गुजरात को दंगा मुक्त रखने का दावा करने वाली भाजपा के दावे वडोदरा और अहमदाबाद दंगो के बाद खोखले नजर आने लगे हैं। हाल ही में अहमदाबाद में हुए सांप्रदायिक तनाव और झड़प के पीछे नवरात्रों में गो-मांस के उपयोग और बूचड़खानों को बंद करने और गरबा में मुस्लिम युवको के भाग लेकर हिंदू लड़कियों के अकर्षित करने जैसे सवालों को भावनाएं भडकाने के लिए इस्तेमाल किया गया है। और इस अभियान में स्थानीय पुलिस और विश्व हिंदू परिषद का गठजोड़ साफ दिखाई देता है। अंग्रेजी के एक बड़े दैनिक के अनुसार अहमदाबाद के शाहपुरा में जब पुलिस गो-मांस और उसके व्यापार के संदेह के नाम पर तलाशी लेने गई तो उसके साथ विश्व हिंदू परिषद के स्थानीय कार्यकर्ता भी शामिल थे। इसी प्रकार का पुलिस का व्यवहार वडोदरा के दंगों में देखने में आया जहां पर नवाबगंज, याकूब पुरा के दंगा पीड़ित परिवारों ने पुलिस पर ही अभद्र भाषा के इस्तेमाल, गाली गलौच और उनकी गली में खड़ी बाइकों को नुकसान पहंुचाने के आरोप लगाए हैं। एक सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी के अनुसार गुजरात में इन दिनों ठीक उसी प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति हो रही है जैसे कि 2002 में हुए गोधरा कांड से पहले गोधरा और उसके आसपास में देखी गई थी। जिसमें गो-रक्षा और गो हत्या पर विश्व हिंदू परिषद द्वारा सीडी बनाकर बांटना गो-रक्षा के नाम पर 4-5 लोगों की 60 से अधिक टीमें तैयार करना और उसमें सबसे बड़ी और प्रभावी टीमों को मुस्लिम बहुल इलाकों में नियुक्त करना शामिल है।
हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी लगातार इस प्रकार की घटनाएं सामने आ रही हैं। गोरखपुर, बलिया, फैजाबाद, गोण्डा आदि जिले में रोजाना इस प्रकार की घटनाओं की चर्चा जन साधरण के बीच सुनने को मिलती हैं। 4 अक्टूबर को गोण्ड़ा में दुर्गा मूर्ति के विसर्जन के समय इसी प्रकार की घटना हुई। भारी पुलिस बल की मौजूदगी में हो रहे दुर्गा विसर्जन के समय कोई एक पत्थर भीड़ में आकर गिरा और पुलिस के रहते हुए ही दुर्गा विसर्जन के लिए आए लोगों ने अचानक आसपास के अल्पसख्ंयक समुदाय के घरों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बना लिया जिस कारण पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। इसके बाद शहर भर में तनाव व्याप्त हो गया और पुलिस को भारी सुरक्षा बलों के साथ शहर भर में मार्च करना पड़ा और 16 लोगों को इस सिलसिले में गिरफ्तार भी किया गया। परंतु उत्तर प्रदेश की स्थिति में एक गुणात्मक अंतर यह है कि यह सांप्रदायिक ताकतें अपने धार्मिक क्रिया कलाप के नाम पर उपद्रव करने की कोशिश करती हैं और इनको रोके जाने पर इनका पुलिस से टकराव होता है जिसमें ये पुलिस को ही सीधा चुनौती देते हैं और पुलिस को ही अपना निशाना भी बनाते हैं। इस प्रकार की अनियंत्रित घटनाओं में भाजपा के केन्द्र में सत्ता में आने के बाद अचानक और विस्फोटक रूप से वृद्धिं हुई है। जिसे हम पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोण्ड़ा, गोरखपुर, कुशीनगर, भदौही, मिर्जापुर जैसे जिलों में रोजाना घटने वाली घटनाओं में देख सकते हैं। ठीक यही कोशिश भाजपा और संघ लगातार बिहार में भी करने की कोशिश करता रहा है जिसमें पिछले दिनों छपरा में दुर्गा विसर्जन के समय हुई घटना शामिल है। जिससे संघी उपद्रवियों और पुलिस प्रशासन के बीच टकराव बढ़ा और कई दिनों तक शहर में शान्तिपूर्ण तनाव का माहौल व्याप्त रहा।
असल में भाजपा, संघ और संघ से जुड़े हुए तमाम जन संगठन एक खास रणनीति के तहत गो-रक्षा, गरबा में मुस्लिम युवको के प्रवेश, लव जेहाद, मस्जिद में लाॅउड-स्पीकर के इस्तेमाल और सड़क पर नमाज पढ़ने जैसी सामान्य घटनाओं का इस्तेमाल देश भर में भावनाओं को भड़काने के लिए कर रहे हैं और इस मुहिम को बेहद संगठित तरीके से अंजाम दिया जा रहा है। संघ और भाजपा ठीक इसी प्रकार की मुहिम को चलाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में सफल बना चुका है। समाज के अलग अलग समुदायों के बीच अविश्वास बनाना और उनके बीच एक लगातार बने रहने वाले तनाव की स्थापना करते हुए अपने वोट बैंक को स्थायी करना यही गुजरात का सांप्रदायिक माॅडल है जिसको संघ और भाजपा अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर देश में क्रियान्वित कर रहे हैं। संघ और भाजपा की इस अभियान में संलिप्तता इससे भी जाहिर होती है कि बेशक प्रत्येक संघी दंगाई नही हो परंतु हरेक दंगे में संघी जरूर होता है। आजाद भारत के इतिहास में 1984 के जिस दंगे को कांग्रेस प्रायोजित कहा गया उन दंगों के चल रहे मुकदमों में भी संघ से जुड़े हुए लगभग 45 लोगों की संलिप्तता इसी तथ्य को सिद्ध करती है।
दरअसल, राष्ट्रीय संपदा और प्राकृतिक संसाधनों की कार्पोरेट लूट को सुनिश्चित करने के लिए कार्पोरेट एजेंट सरकारों का सत्ता में बनाए रखने के लिए और आम जनता को उसके वास्तविक सवालों से दूर रखने की इस रणनीति के तहत ही तथाकथित विकास और सांप्रदायिक उन्माद के घालमेल का यह माॅडल पूरे देश में लागू किया जा रहा है। वास्तव में यह मोदी सरकार और दुनिया भर के नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के नीति निर्माताओं की तथाकथित विकास जनित विषमताओं और जनता के वास्तविक मुद्दो से ध्यान हटाने की यही सोची समझी रणनीति है।  

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