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मंगलवार, 24 मार्च 2015

खास राजनीति में आम तकरार

महेश राठी
मीड़िया में तमाम सुलह सफाई के दावों के बावजूद आम आदमी की तकरार है कि थमने का नाम नही ले रही है। विनम्रता और प्रतिबद्धता की सांत्वना वाले बयानों से भी वर्तमान भारतीय राजनीति का विलक्षण और अदभुत नवीन प्रयोग होने का दम भरने वाली पार्टी बिखराव और टूटन की तेज होती आहट को धीमा कर पाने विफल साबित हो रही है। देश की राजनीति में अपने विशिष्ट होने की दावेदारी मानों अब आम होने की दस्तक दे चुकी है।
आम आदमी पार्टी का यह आंतरिक संघर्ष वास्तव में बहुआयामी है। सामाजिक और आर्थिक संक्रमण के इस दौर में जहां सामाजिक जीवन पर जहां विज्ञान औरप्रौद्योगिकी की क्रान्ति के परिवर्तनों का प्रभाव स्प’ट दिखाई पड़ रहा तो वहीं राजनीतिक परिवेश भी उससे अछूता नही है। आम आदमी पार्टी का उदय यदि परिवर्तन की इसी एक आंकाक्षा को रेखांकित करता है तो उसके आंतरिक संघर्ष की आवाजों में भी इसकी आव”यकताओं को पढ़ा जा सकता है। आप का वर्तमान संघर्ष वास्तव में व्यक्तियों के आपसी टकराव और राजनीतिक आंकाक्षाओं के साथ ही राजनीति को मुद्दों तक सीमित रखने और आप की राजनीति का वैचारिक और नीतिÛत आधार बनाने के बीच का संघर्ष है। इस संघर्ष में जहंा एकतरफ तथाकथित आम आदमी में सत्ता से पैदा हुई हेकड़ी (ऐरोगेंस) है तो वहीं दूसरी तरफ स्थापित विद्वता और ज्ञान के पारदर्शिता और आंतरिक जनवाद के तर्क हैं। प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव पारदर्शिता और आंतरिक संघर्ष के तर्क के साथ यदि आप को राजनीतिक रूपांतरण का औजार बनाने की बात कर रहे हैं तो अरविंद केजरीवाल का खेमा आम आदमी पार्टी की राजनीति को केवल मुद्दों पर केन्द्रित रखते हु, सत्ता के विस्तार का पक्षधर है।
दरअसल प्रारंभ में केजरीवाल खेमे ने ऐसा पेश करने की कोशिश की कि यह केवल  योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण की राजनीतिक आंकाक्षा हैं जो संघर्ष को जन्म दे रही हैं। ऐसा सिद्ध करने के क्रम में केजरीवाल ने स्वयं को आप की राजनीतिक मामलों की कमेटी की बैठक से अलग भी कर लिया था। परंतु योगेन्द्र यादव को कमजोर करने के लि, केजरीवाल के करीबी विभव द्वारा एक पत्रकार के तथाकथित स्टिंग प्रकरण से केजरीवाल की भूमिका पर भी सवाल उठने आवश्यक थे। क्योंकि विभव से केजरीवाल की करीबी से पूरी आम आदमी पार्टी परिचित है और अरविंद केजरीवाल की अनुमति के बगैर ऐसा स्टिंग हो पाना असंभव था। पीएसी की बैठक के बाद हुए मतदान ने आम आदमी पार्टी के इस बंटवारे और इसकी व्यापकता को जहां पूरी तरह उजागर कर दिया तो मयंक गांधी के ब्लाॅग से भी यह स्पष्ट हो गया कि यह संघर्ष का निपटारा नही संघर्ष की शुरूआत है! अरविंद केजरीवाल बेशक यह सिद्ध करने का करने का प्रयत्न करें कि वे इस विवाद से अलग हैं परंतु प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव के बयान और केजरीवाल खेमे के प्रत्युतर में आने वाली उनकी प्रतिक्रिया सिद्ध करती हैं कि असली विवाद का केन्द्र दरअसल अरविंद केजरीवाल ही हैं।प्रशांत की पेशकश के बावजूद भी केजरीवाल का उनसे मिलने के लिए अपने मातहतों को भेजना और मिलने से बचना केजरीवाल को विवाद का केन्द्र होने और आप के शीर्ष  नेताओं के बीच की खटास को बयां करता है।
वास्तव में आप की राजनीति को मिलने वाले जन समर्थन में विज्ञान, सूचना और  में आई क्रान्ति का भारी योÛदान है। सूचना प्रौद्योगिकी ने उत्पादन को सामूहिक से बदलकर व्यक्ति केन्द्रित बना दिया है। जिस कारण से समाजिक विकास में एक व्यक्ति की भूमिका बढ़ी है और व्यक्ति उत्पादन समूह का हिस्सा नही होकर एक स्वतंत्र ईकाई बन रहा है। व्यक्ति की यही भूमिका उसे विकास में हस्तक्षेप की नई जिम्मेदारी के लिए जागरूक कर रही है। व्यक्तियों और व्यक्ति की यही जागरूकता नई राजनीति की आवश्यकता को जन्म दे रही है। इस आवश्यकता ने ही आम आदमी पार्टी की संकल्पना का आधार तैयार किया था। अब आप का कोई नेता बेशक वे अरविंद केजरीवाल ही हों इस व्यक्तिगत आजादी को अपने हितों के अनुरूप सोचने के लिए विवश करेगा तो उसके परिणाम विपरीत भी हो सकते हैं। जिसे इस समय सोशल मीड़िया पर आप कार्यकर्ताओं का व्यवहार रेखांकित कर रहा है। आम आदमी पार्टी के इस आपसी संघर्ष में आप की सबसे बड़ी ताकत बना सोशल मीड़िया ही उसके लिए नई मुसीबतें लेकर आ रहा है। केजरीवाल खेमे के आशीष खेतान और आशुतोष के बयानों के माध्यम से केजरीवाल जहां योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के विद्रोह को व्यव्यक्तिगत आकांक्षा सिद्ध करने की कोशिश कर रहे थे तो वहीं उन दोनों को सोशल मीड़िया पर आप कार्यकर्ताओं का मिल रहा समर्थन इस संघर्ष की नई इबारत लिख रहा है। सोशल मीड़िया पर योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण की आलोचना से अधिक उनका समर्थन छाया हुआ है। यह एक ऐसीचुनौती है जिसे समझकर यदि अरविंद केजरीवाल नए समय की राजनीतिक आवश्यकताओं के अनुसार इस राजनीति का दार्शनिक आधार तैयार नही करते हैं तो उनके लिए यह ना केवल जोखिम भरा बल्कि एक प्राणघातक कदम होगा। हालांकि उनके ऐसा नही समझने के भी अपने तार्किक कारण हैं।
बहरहाल, केवल मुद्दो से हटकर नई राजनीति के दार्शनिक आधार को तैयार करने में अभी तक सबसे बड़ी रूकावट स्वयं आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक केजरीवाल ही हैं। असल में आम आदमी पार्टी के उदय के कारण और उसके समर्थन आधार के बढ़ने विशेषकर युवा जन समर्थन के अलग  अलग  कारण हैं। आप को मिल रहा व्यापक जन समर्थन का आधार वास्तव में उस युवा वर्ग ने तैयार किया है जो नए विकास की वाहक सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोगकर्ता है और सूचना प्रौद्योगिकी केउपयोग से इस विकास एवं इसके नीति निर्धारण में अपनी हिस्सेदार चाहता है। यह युवा पारदर्शिता का हामी है। परंतु सूचना युग की नई पीढ़ी और उभरते हुए नए मध्य वर्ग  की आकांक्षाओं की स्वाभाविक राजनीति का अवतरण  अभी बाकी है। आम आदमी पार्टी का नए राजनीतिक दल के रूप में उदय वर्तमान भारतीय पूँजीवाद की प्रतिदवन्दिता  का परिणाम है। यह प्रतिदवन्दिता प्रतिस्पर्धी पूँजीवाद  और एकाधिकारी  पूँजीवाद के बीच की प्र प्रतिदवन्दिता है। इस  प्रतिदवन्दिता को आप को मिलने वाले चन्दे पर प्रशांत भूषण के सवाल भी रेखांकित करते हैं।
वास्तव में आने वाले दिनों में इस संघर्ष  में अभी कई आयाम जुड़ने बाकी हैं। मयंक गांधी  के ब्लॉग  पर अथवा उनके ब्लॉग के तेवरों पर अंजलि दामनिया की तुरंत प्रतिक्रिया और प्रशांत से बात होने के बाद अंजलि का तीखी आलोचना करते हुए पार्टी छोड़ना इस बात का पता दे रहा है कि ये खेल कितना सोचा समझा और व्यापक है। आप के विचारक और नीति निर्माता चेहरे रहे योगेंद्र यादव का कथन ‘‘ना छोड़ेंगे, ना तोड़ेंगे, सुधारेंगे और जरूरत हुई तो सुधरेंगे" को आम आदमी पार्टी के संभावित घमासान की पटकथा का “शीर्षक  समझाना जाना चाहिए। संभवतया इस लड़ाई से आम आदमी पार्टी को नीति आधारित राजनीतिक सीख मिले अथवा मुद्दों और नीतिगत राजनीति के इस संघर्ष में यह नवोदित पार्टी दो फाड़ हो जाए  परंतु दो कड़वी सच्चाई तो बनी ही रहेंगी। सत्ता कभी आम नही होती और आम जन को अब आम आदमी से इतर अपने लिए नई “शब्दावली ढ़ूढ़नी होगी।      

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