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मंगलवार, 30 मई 2017

सेना प्रमुख के नाम एक खुला पत्र

थल सेना प्रमुख मि. रावत,
मैं आपको महामहिम, परम आदरणीय अथवा कोई ऐसा संबोधन नही लिख रहा हूँ जो गैर लोकतांत्रिक हो बल्कि मैं आपकों अपने इस विशाल लोकतंत्र का एक ऐसा सामान्य नागरिक समझकर पत्र लिख रहा हूँ जो एक निश्चित समय के लिए एक संवैधानिक उच्च पद पर विराजमान है। दरअसल, मैं यह खुला पत्र आपको आपके उस बयान के कारण लिख रहा हू जिसे मैंने पिछले दिनों विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और सोशल मीड़िया पर देखा और पढ़ा। प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार आपका कहना था कि सेना का भय जनता में से खत्म होने की आशंका हो गयी है।
मैं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का एक नागरिक होने के नाते आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप हमें भयभीत करना क्यों चाहते हैं। क्या देश में कुछ भी लोकतान्त्रिक संस्थानों और देश की जनता से बड़ा है अथवा कोई भी संस्था ऐसी है जो हमारी जनवादी प्रणाली की समीक्षा से बाहर है ! क्या भारतीय लोकतंत्र ने आपको यह नौकरी इसीलिए दी है कि आप हमारे भीतर भय पैदा कर सकें अथवा आप यह समझते हैं कि आप एक दैवीय साम्राज्य की सेना के दैवीय सेनापति हैं और यह पद आपको आपकी वंश श्रेष्ठता के कारण हासिल हुआ है। शायद आपका क्षत्रिय धर्म और जातीय भ्रम आपको ऐसा सोचने के लिए विवश करता है। मैं बचपन से आज तक भारतीय सेना और उसके सैनिकों का सम्मान करता था। हालांकि सेना में प्रतिनिधित्व को लेकर और उसकी जातीय बनावट और यदा कदा उस पर लगने वाले आरोपों को लेकर मेरे मन में कई आशंकाएं और सवाल जरूर थे। बावजूद तमाम बातों और तथ्यों के मैं फिर भी उससे भयभीत नही होता था परंतु आपके बयान ने मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या भारतीय सेना दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से और उस लोकतंत्र के प्रमुख भागीदार नागरिक से बड़ी और शक्तिशाली और जनता के मन में सुरक्षा नही भय पैदा करने वाली है।
आपने जनता में सेना का भय खत्म होने पर तो आशंका व्यक्त की है परंतु आपने  इस देश की उस बड़ी बहुजन आबादी के सेना में कम प्रतिनिधित्व पर सवाल नही खड़े किये। इस देश के दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की सेना में उनकी जनसंख्या के अनुपात में भागीदारी पर आपने कोई सवाल नही उठाया अथवा आप यह समझते हैं कि उन्हें सिर्फ अर्दली ही होना चाहिए और सैन्य अधिकारियों के जूते साफ करने, घर बुहारने अथवा बागवानी संभालने का ही काम करना चाहिए। क्या इस प्रकार की खामोशी के पीछे कोई योग्यता सरीखा तर्क है।
मानव शील्ड पर भी आपका बयान काबिले गौर है। परंतु शायद आप भूल गये हैं कि आपकी इस तथाकथित नई खोज और रणनीति के क्या खतरे हो सकते हैं। कोई भी इस प्रकार की रणनीति एकतरफा नही होती है। यह रणनीति सेना की संवैधानिक और सुरक्षात्मक रणनीति कम, अपराधिक अधिक जान पड़ती है। शायद सेना इस रणनीति का दोबारा उपयोग करे अथवा नही परंतु आतंकी गुटों को यह रणनीति खूब रास आने वाली है क्योंकि बुनियादी तौर पर यह रणनीति उनकी अपराधी मानसिकता के ज्यादा करीब है। आपने इसकी वकालत करके ना केवल आतंकी संगठनों के लिए संभावनाओं के नये द्वार खोल दिये हैं बल्कि सेना के जवानों और उनके परिवारों के लिए भी नये तरह के खतरों की पटकथा लिख दी है। क्योंकि उन जवानों और उनके परिवारों के पास आपके जैसी और आपके अन्य उच्च अधिकारियों और राजनीति मास्टर्स के जैसी सुरक्षा नही होती है।
मैं आपको मुबारकबाद देना चाहूंगा कि जहां आपकी लगातार बयानबाजी ने एक पूर्णकालिक रक्षामंत्री के खालीपन को भरा दिया है तो वहीँ अभी तक राजनीति से सेना की दूरी को भी खत्म कर दिया है। हालांकि मैं लोकतंत्र में आपकी इस भूमिका के खतरों पर अभी बात नही करना चाहूंगा क्योंकि पब्लिक डोमेन में आपकी मौजूदगी और सक्रियता को देखकर लगता है कि उसके अभी कई मौके मिलेंगे। फिर भी मैं अंत में यही कहकर अपनी बात समाप्त करूंगा कि हमारा देश भारत एक लोकतंत्र है, जिसमें सभी को बराबर अधिकार प्राप्त हैं। यह कोई ब्राहमणवादी राष्ट्र नही है कि इसमें बहुमत आबादी अर्थात बहुजन हमेशा डरे सहमें रहें और ब्राहमणवादी राष्ट्र का एक सेनापति उन्हें भयभीत करने के यत्न प्रयत्न करता रहे।
धन्यवाद सहित
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का एक नागरिक      

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