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रविवार, 6 जनवरी 2019

बाबासाहेब और ज्योतिबा फुले महाराष्ट्र सरकार के कैलेंडर से गायब


महाराष्ट्र सरकार ने संविधान निर्माता बाबासाहेब बी आर आंबेडकर, लोकतांत्रिक सुधारक राजर्षि शाहू महाराज, समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले और छत्रपति शिवाजी की पुण्यतिथियां 2019 के कैलेंडर से पूरी तरह गायब हैं। मंत्रालय के सभी विभागों और राज्य भर के सभी सरकारी कार्यालयों व संगठनों को वितरित किए गए कैलेंडर में फुले (28 नवंबर) और अंबेडकर (छह दिसंबर) सहित इन दिग्गजों की पुण्यतिथियों का जिक्र किसी भी रूप में नहीं किया गया है।

हालांकि कमाल की बात यह है कि विश्व एड्स दिवस (एक दिसंबर) और विश्व विकलांग दिवस (तीन दिसंबर) जैसे अन्य तिथियों का उल्लेख किया गया है, लेकिन समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और भारतरत्न बाबासाहेब आंबेडकर की पुण्यतिथि कैलेंडर में नहीं होने पर महाराष्ट्र  और देश के वपक्षी दलों ने महाराष्ट्र  सरकार की इस करतूत पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। बहुजन राजनीति के दिग्गजों और विशेषज्ञों का मानना है कि आरएसएस-भाजपा की भगवा सरकार से इससे अधिक की उम्मीद ही नही की जा सकती थी। यूनाइटेड ओबीसी फोरम के मुलायम सिंह का मानना है कि यही महाराष्ट्र सरकार का ब्राहमणवादी चरित्र है और देश के मीड़िया का कुछ हिस्सा इसे चुक बताकर अप्रत्यक्ष रूप से महाराष्ट्र सरकार का बचाव कर रहा है।  

गौरतलब है कि बाबासाहेब आंबेडकर की पुण्यतिथि को ‘महापरिनिर्वाण दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है। लाखों दलित और बौद्ध अनुयायी उनकी याद में श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मुंबई के दादर में जुटते हैं। बहुजन राजनीति के जानकारों का कहना है कि शिवाजी महाराज, राजर्षि शाहू और फुले के नाम का इस्तेमाल सभी ब्राहमणवादी राजनेता अपने भाषणों और रैलियों में करते हैं। परंतु उनके जीवन से जुडी हुई तिथियों को भूल जाते हैं। इससे जाहिर है कि वह केवल बहुजन समाज सुधारकों के नाम का इस्तेमाल बहुजनों को भावनात्मक रूप से ठगने के लिए और उनके वोटों को हासिल करने के लिए करते हैं। इसके अलावा उन्हें ना उनके जीवन की तिथियों का मालूम है ना उनके संदेशों को वह जानना चाहते हैं बल्कि वह उनकी तस्वीरों पर माला चढ़ाने का नाटक करके बहुजनों को बरगलाना चाहते हैं। 

जेएनयू के छात्र नेता जयंत जिज्ञासु, अमित कुमार, अरविन्द यादव सहित कई बहुजन छात्रों का इस बारे में कहना था कि क्या सीएम देवेन्द्र फडणवीस क्या परशुराम जयंती, रामनवमी जैसे कपोल कल्पित दिनों और अपने देवी देवताओं के कोरे गप्पों को भी भूलते हैं जो यह बहुजन समाज सुधारकों की पुण्यतिथियों को भूल गये हैं। हालांकि, सरकार की ओर से इसपर अभी तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।  

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