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मंगलवार, 29 जनवरी 2019

गन्ना किसानों की बदहाली और योगी सरकार की जुमलेबाजी

महेश राठी

गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान उत्तर प्रदेश विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश  के किसानों के बीच एक बडा और महत्वपूर्ण सवाल बनकर उभर रहा है। राज्य की योगी सरकार भुगतान को लेकर लगातार बयानबाजी और जुमलेबाजी कर रही है और साथ ही रिकाॅर्ड भुगतान के दावे कर रही है परंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही है। योगी सरकार और अधिकारी चाहे जितने भी दावे करें लेकिन हकीकत यही है कि गन्ना किसान बदहाली में जीने को मजबूर हैं। किसान फसल की बुवाई के लिए कर्ज लेता है, ट्रेक्टर पर कर्ज लेता है तथा फसल की कटाई तक वह कर्ज नहीं चुका पाता, बिजली बिल नही भर पाता है क्योंकि चीनी मिलें वक्त पर उसके बकाया का भुगतान नहीं करती।
अदालत ने इस बकाये पर ब्याज देने को कहा था। अदालत ने साल 2012-13 और 2013-14 और 2014-15 के जिस बकाये पर ब्याज देने को कहा है वो रकम करीब 2,500 करोड़ रुपये होती है। राज्य के करीब 50 लाख किसान परिवारों को ब्याज का भुगतान नहीं किया गया। अदालत की ये सख्ती किसानों को कितनी राहत दे पायी है ये साफ हो चुका है हालांकि किसानों का आरोप आज भी वही है कि केन्द्र और राज्य की सरकारों ने लगातार उनके हितों की अनदेखी ही की है।
कहने के लिए और राजनीतिक बयानबाजी में योगी सरकार लगातार निजी चीनी मिलों पर बकाए के भुगतान के लिए दबाव बढ़ा रही है लेकिन वास्तव में यह दबाव केवल राजनीतिक जुमलेबाजी भर ही है और उससे अधिक कुछ भी नही है। राज्य की 121 चीनी मिलों में 23 चीनी मिलें राज्य सरकार की हैं तो फिर क्यों नहीं योगी सरकार अपनी मिलों पर बकाये का भुगतान कर देती है। दरअसल, सरकार केवल बयानबाजी से ही गन्ना किसानों को बहकाना चाहती है और उसकी कथनी और करनी में बडा अंतर है। योगी-मोदी सरकार की वास्तविकता यह है कि चीनी मीलों पर गन्ना किसानों का बकाया अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच गया है। यदि देशभर के गन्ना किसानों की बात करें तो इतना बकाया पहले कभी नहीं था, देशभर में गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर करीब 19 हजार करोड़ रुपया बकाया है।
इसमें भी अकेले यूपी में करीबी 11 हजार करोड़ रुपये किसानों का बकाया है। उत्तर प्रदेश के किसानों का चीनी मीलों पर सबसे ज्यादा बकाया है। ये हाल तब है जब 2017 में यूपी चुनाव के वक्त सबसे बड़ा वादा यही था कि गन्ना किसानों का भुगतान समय से किया जाएगा, इस साल गन्ने की बंपर फसल के बावजूद भी किसान संकट में हैं क्योंकि चीनी मिल भुगतान नहीं कर रहे हैं। गन्ना किसानों के मसले पर जमकर सियासत हो रही है। विपक्ष का आरोप है कि अब तक 3104 करोड़ गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हुआ है। खाद महंगी हो गई है। वहीं सरकार का दावा है कि पिछली सरकारों में गन्ना मूल्य का भुगतान न होने के चलते किसान गन्ने की खेती से दूर हो गया। पिछली सरकार में 17 हजार करोड़ से ज्यादा गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हुआ। वहीं इस साल अब तक रिकाॅर्ड 33,186 करोड़ का भुगतान हो चुका है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है।
दरअसल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी और उनकी सरकार की प्राथमिकता में किसानों का सवाल ही नही है, उनकी प्राथमिकता भावनात्मक सवालों को उभारने और भावुकता की बांटने वाली राजनीति करने की है। हाल ही में यूपी के सीएम 23 दिसम्बर को गाजियाबाद के मोदीनगर इलाके के पतला गांव में चौधरी चरण सिंह की मूर्ति के अनावरण के लिए आए लेकिन यहां बड़ा सवाल ये है कि तो क्या किसान नेता की मूर्ति के अनावरण से गन्ना किसानों को उनका बकाया मिल पाएगा या फिर उनकी मुश्किल आसान हो पाएगी। किसान अब इस राजनीति को समझ रहे हैं और ऐसे में किसानों की नाराजगी लाजमी है और मोदीनगर के किसानों की इसी नाराजगी को कम करने के लिए हाल ही में जिला प्रशासन ने आनन फानन में मोदी शुगर मिल पर शिकंजा कस दिया और ये कार्रवाई सिर्फ इसलिए की गई ताकि सीएम योगी को अपने मोदीनगर दौरे के दौरान किसानों का विरोध न झेलना पड़े। बात अगर केवल मोदी मिल की करें तो अकेले मोदी मिल पर गन्ना किसानों का करीब 123 करोड़ रुपए का बकाया है हालत ये है कि इतनी बड़ी बकाया राशि के चलते मिल की करीब 2000 क्विंटल चीनी जब्त कर ली गई है फाॅर्म हाउस को कुर्क कर दिया गया है और दफ्तर को भी सील कर दिया गया है मोदी मिल के मालिक उमेश मोदी का पासपोर्ट जब्त करने के लिए डीएम और एसएसपी ने रीजनल पासपोर्ट अधिकारी को पत्र भेज दिया है लेकिन दिलचस्प ये है कि ये पूरी कार्रवाई सीएम के दौरे के मद्देनजर की गई न कि किसानों के भले के लिए।
जाहिर है कि चीनी उद्योग पर मंडरा रहा ये संकट बड़ा और बेहद गंभीर है। चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया जो अब तक 19000 करोड़ के करीब पहुंच गया है वो आगे और बढ़ता जाएगा। हाल ही में 3 राज्यों में चुनाव के दौरान किसानों के गुस्से के चलते ही भाजपा को तीनों राज्यों में सत्ता से बेदखल होना पड़ा और पष्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की नाराजगी के कारण ही लोकसभा उप चुनावों में भाजपा को कैराना की लोकसभा सीट गंवानी पडी थी। बहरहाल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान अभी भी योगी-मोदी सरकार से खासे नाराज नजर आ रहे हैं और इसकी कीमत भाजपा को 2019 के आम चुनावों में भी चुकानी पडेगी। इसस पहले जब पूर्व की अखिलेष सरकार ने कैबिनेट में बकाया भुगतान नहीं करने का प्रस्ताव पारित किया था तो अखिलेश सरकार को किसानों की बड़ी नाराजगी झेलनी पड़ी और उनकी पार्टी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और अब फिर से किसानों ने साफ कर दिया है कि अगर योगी सरकार ने भी किसानों के ब्याज के बकाया भुगतान पर टालमटौल का रवैया जारी रखा, तो उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतान पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर बकाया बढ़कर 6,600 करोड़ रुपये पहुंच गया है। बकाया भुगतान में देरी से राज्य के किसान चीनी मिलों के साथ ही राज्य सरकार से भी खफा है, तथा भुगतान की मांग को लेकर कई जगहों पर धरना-प्रदर्शन भी कर रहे हैं। शामली चीनी मिलों में 11 दिन चल रहे धरने के बाद बकाया भुगतान का आष्वासान मिला, जिसके बाद किसानों ने आंदोलन समाप्त किया।
राज्य की चीनी मिलों ने किसानों का पिछले पेराई सीजन 2017-18 का 1,210 करोड़ रुपये का भुगतान तो अभी तक किया भी नहीं है, साथ ही चालू पेराई सीजन का बकाया बढ़कर 5,400 करोड़ रुपये पहुंच गया है। ऐसे में कुल बकाया की राशि बढ़कर 6,610 करोड़ रुपये हो गई है।
पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 के दौरान बकाया की सबसे ज्यादा रकम निजी चीनी मिलों पर 4,961 करोड़ रुपये, सहकारी चीनी मिलों पर 411 करोड़ रुपये तथा निगम की मिलों पर 27.90 करोड़ रुपये हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश गन्ना एवं चीनी आयुक्त के अनुसार चालू सीजन में राज्य में गन्ने का उत्पादन 17 फीसदी बढ़कर 1,150 लाख टन होने का अनुमान है। ऐसे में चीनी का उत्पादन भी चालू पेराई सीजन में रिकार्ड 124 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में राज्य में केवल 121 लाख टन चीनी का उत्पादन ही हुआ था। चीनी के बंपर उत्पादन अनुमान से आगे गन्ना किसानों के बकाया की राशि और बढ़ सकती है जिससे किसानों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। पिछले पेराई सीजन में राज्य में 23 लाख हेक्टेयर में गन्ना की बुवाई हुई थी जबकि चालू पेराई सीजन में 28 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुवाई हुई है।
राज्य की चीनी मिलों ने चालू पेराई सीजन में 10,900 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है लेकिन इसमें भुगतान केवल 5,500 करोड़ रुपये का ही किया है। इसके अलावा पिछले पेराई सीजन 2017-18 में राज्य की चीनी मिलों ने किसानों से 35,483 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा था, लेकिन अभी तक भुगतान केवल 34,253 करोड़ रुपये का ही किया है।
बकाया भुगतान के साथ ही राज्य के गन्ना किसानों पर घटतौली के कारण भी दोहरी मार पड़ रही है। राज्य ने गन्ना एवं चीनी आयुक्त ने भी माना है कि राज्य में घटौतली हो रही है। गन्ना एवं चीनी आयुक्त द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार चालू पेराई सीजन 2018-19 में 8,79। गन्ना खरीद केंद्रों का निरीक्षण किया है, जिसमें 606 खरीद केंद्रों पर अनियमिततायें पाई गई। इसके अलावा राज्य में अवैध गन्ना खरीद केंद्र भी सक्रिय है। राज्य के गन्ना एवं चीनी आयुक्त ने चालू पेराई सीजन में अभी तक 7,18,935 रुपये का 2,308 क्विंटल गन्ना इन अवैध खरीद केंद्रों पर पकड़ा है।
16 जनवरी से षामली चीनी मिल में चल रहा गन्ना किसानों का आंदोलन षनिवार 26 जनवरी को खत्म हो गया। जिलाधिकारी की अध्यक्षता में हुई बैठक में किसान प्रतिनिधि मंडल को पिछले पेराई सीजन के बकाया 83 करोड़ रुपये के भुगतान का 11 फरवरी तक करने और 31 जनवरी तक नए पेराई सत्र के बकाया भुगतान का आष्वासन दिया गया है। राश्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह ने बताया कि किसानों को चालू पेराई सीजन का भी मिल पर 122 करोड़ रुपये बकाया हो चुका है।
बकाये का भुगतान न होने से किसानों को भारी परेषानियों का सामना करना पड रहा है। बिजली की बढ़ी दरों ने भी किसानों की कमर तोडकर रख दी है। बिल जमा न करने पर पावर काॅरपोरेषन किसानों पर एफआईआर दर्ज कर रहा है।उनके बिजली के कनेक्षन काटे जा रहे हैं। अखिल भारतीय किसान सभा, मेरठ से जुडे किसानों ने गत सप्ताह में मेरठ के जिलाधिकारी को एक ज्ञापन देकर किसानों के बिजली कनेक्षन काटे जाने और किसानों के षोशण किये जाने की षिकायत की है। किसान सभा के मंडलीय सचिव जितेन्द्र सिंह के अनुसार किसानों के बिजली के बिलों के 3000 से अधिक बकाया होने पर किसानों के बिजली के कनेक्षन काटे जाने के नाम पर बिलों में 500 रूपये अतिरिक्त बिजली काटने के और 500 रूपये फिर से बिजली जोडने के नाम पर उगाहे जा रहे हैं। जितेन्द्र सिंह का कहना था कि गन्ने के बकाये के भुगतान नही होने के कारण किसान बिजली बिल नही दे रहे हैं और ऐसे में बिजली विभाग बिजली काटने और फिर से जोडने के नाम पर किसानों की दोहरी लूट कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेष की आधी आबादी के लिए गन्ने की खेती जीने का सहारा है। लगभग 50 लाख से ज्यादा किसान परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। मगर फिर भी वोटों की राजनीति करने वालों को किसानों की दुर्दषा नहीं दिखाई देती है। ब्याज मुक्त कर्ज और टैक्स रियायतों के लिए सिर्फ चीनी मिलों को अरबों के पैकेज मिले मगर किसान के हाथ सिर्फ बदहाली ही आई।
उत्तर प्रदेष में गन्ना सिर्फ एक फसल नहीं है इसके और भी बहुत उपयोगी इस्तेमाल हैं। यहाँ पर गन्ने से चीनी, षीरा, इथेनोल, बिजली और खोई बनते हैं। ज्यादातर चीनी मिल समूह में गन्ने के षीरे से ही षराब का निर्माण करते हैं। गन्ने की हालत इस्ससे पता चलती है कि गन्ना की कीमत 300 रू. क्विंटल और खोई 350 पर बिकती है। यूपी को देष में सबसे ज्यादा गन्ना उत्पादक का दर्जा मिला है पर उसका किसान आज भी बेहाल है। यूपी विधानसभा चुनाव के समय गन्ना किसानों की हालत का मुद्दा काफी जोरों से उठाया गया था। हमेषा की तरह से मोदी और भाजपा ने किसानों को लेकर तमाम तरह की जुमलेबाजी की थी। वहीँ भाजपा ने अपने घोशणा पत्र में 14 दिन के अंदर गन्ना मूल्य के भुगतान का वादा किया था। वास्तव में 14 दिन में गन्ना भुगतान का प्रावधान एक्ट में दिया गया है। इसके साथ ही 15 प्रतिषत ब्याज की भी व्यवस्था है। परंतु जमीनी हकीकत इससे एकदम विपरीत है। 

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