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बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

सलीब !

महेश राठी

सलीब पर लटकने
सलीब बनाने में,
कोई ज्यादा फ़र्क़ नहीं होता !
जब हम नहीं बन पाते हैं,
जीसस !
तो ढूंढने निकल पड़ते हैं,
कोई शिकार
बनाने लगते हैं,
सलीब !
आखिर जिंदगी यही तो है
लटकना,
लटकाना,
सलीब पर ! 

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